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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा विषय पत्र १३ भव्यमार्गणामां भव्य अभव्यनी व्याख्या .१३८ १३ सम्यक्त्वमार्गणाना उत्तरभेदो पैकी वेदकसम्यक्त्वनी व्याख्या ... १३८ १३ सम्यक्त्वमार्गणाना उत्तरभेदो पैकी क्षायिकसम्यक्त्वनुं स्वरूप .१३८ १३ सम्यक्त्वमार्गणाना उत्तरभेदो पैकी औपशमिकसम्यक्त्व, तेना बे भेदो अने प्रन्थिभेदतुं स्वरूप १३९ १३ सम्यक्त्वमार्गणाना उत्तरभेदो पैकी मिथ्यात्व, मिश्र, त्रण पुञ्ज अने सासादननुं स्वरूप १४१ १३ संज्ञिमार्गणामां संज्ञि असंज्ञिनी व्याख्या १४२ १४ आहारकमार्गणाना भेद अने मार्गणस्थानमां जीवस्थान . १४२ १४ आहारक अनाहारकनी व्याख्या अने चौदमूलमार्गणाना बासठ उत्तरभेदोनां नाम १४२ १४-१८ मार्गणस्थानना उत्तरभेदो पैकी कया कया भेदमां कयां कयां जीवस्थान होय ? तेनुं स्वरूप १४२-४६ अपर्याप्तसंझिने औपशमिक सम्यक्त्व न होवाना अने । होवाना मतनुं निरूपण १४२-४३ सम्मूछिममनुष्यनी उत्पत्तिना स्थानो . १४४ बादर अपर्याप्तने तेजोलेश्या केम सम्भवे ? ए शङ्कानुं निवारण १४४ १९-२३ चौदमार्गणास्थानना उत्तरभेदोमां कयां कयां गुणस्थान होय ? १४७-४९ २४ योगोनी सङ्ख्या अने मार्गणास्थानमा योग १५० २४. सत्यमनोयोग आदि पंदर योगोनुं सप्रमाण स्वरूपनिरूपण .. २४ कार्मणशरीर गत्यंतरमा साथे जाय छे तो केम देखातुं नथी ? ए शङ्कानुं समाधान १५४ तेजसने शरीर मान्युं छे तो तेने योगमां केम गण्डे नथी ? . एनुं समाधान १५४ २४-२९ चौद मार्गणास्थानना उत्तरभेदोमां कया कया योगो होय ? तेनुं स्वरूप .१५४-६० २९ वैक्रियलब्धिवाळा अने मिश्रगुणस्थानवाळा मनुष्यतिर्यश्चोने वैक्रियना आरंभनो सम्भव होवा छतां वैक्रियसिम केम न होय ? ए शङ्कानुं समाधान १५८ तेनुं स्वरूप For Private and Personal Use Only
SR No.020663
Book TitleSatikachatvar Karmgrantha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChaturvijay
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1934
Total Pages286
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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