SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२ प्रतिओनी शुद्धाशुद्धिनो विचार-क-ख-ग-घ अने दुसंज्ञक प्रतिओमां थोडे अशुद्धिओ तो दरेकमां छे ज, तो पण परस्पर तारतम्यतानो विचार करतां बधीये प्रतिओमां क अने घ आ बे प्रतिओ सौ करतां सारामां सारी छे. बाकीनी खग अनेड आ त्रण प्रतिओमां ख प्रति सारी छे अने गङ आ वे प्रतिओमांथी ग प्रति सारी छे. अर्थात् एक बीजाथी उत्तरोत्तर अधिक अशुद्ध छे. आभार- ---आ विभागनुं संपादन करती वखते उपरनी पांच प्रतिओनो उपयोग करवामां आव्यो छे. ए पांचे प्रतिओना जुदा जुदा मालिकोए प्रतिओ आपी अमारा संशोधनना कार्यमा जे सुगमता करी आपी छे ते बदल ए महाशयोना उपकारने कोई रीते पण भूली शकाय तेम नथी. वळी आ भागनुं संपादन करती वखते पं. सुखलालजीए हिंदी भाषामा करेला नवीन चार कर्मग्रंथना अनुवादनो अने तेनी प्रस्तावनानो कोई कोई ठेकाणे आश्रय लीघेलो होवाथी तेमनो पण उपकार मानुं छं. अने छेवटमां मारा विद्वान् शिष्य मुनि श्री पुण्यविजयजीए आ विभागना प्रत्येक फॉर्मनुं अंतिम प्रुफ तपासी अपी अने संपादन लगता बीजा कार्यने अंगे जोइती मदद आपी मारा कार्यने जे सरल करी आप्युं छे ते माटे तेओनो पण आ ठेकाणे उपकार मानुं ए सर्वथा उचित लेखाशे. उपरोक्त पांचे प्रतिओना आधारे बहु ज सावधानता पूर्वक आ विभागनुं संशोधन कर्यु छे तो पण कोइक ठेकाणे दृष्टिदोष आदिना कारणे त्रुटि रहेवा पामी होय तो वाचक महाशयो सुधारी वांचे ए अंतिम प्रार्थना साथै विरमुं छु. मुनि चतुरविजय. For Private and Personal Use Only
SR No.020663
Book TitleSatikachatvar Karmgrantha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChaturvijay
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1934
Total Pages286
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy