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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ दशम अध्याय ॥पान ७८९ ॥ SANTOPRAKAPOONGAROONPRASNAPostgasprosagaPORN नयकी अपेक्षा क्षेत्रसिद्ध दोयप्रकार हैं, जन्मते संहरणते। तहां संहरणसिद्ध अल्प हैं, थोरे हैं । इनतें संख्यातगुणा जन्मसिद्ध हैं । बहुरि क्षेत्रनिका विभागवि ऊर्ध्वलोकतें सिद्ध भये अल्प हैं। तिनके संख्यातगुणा अधोलोकतें सिद्ध भये हैं । तिनतें संख्यातगुणा तिर्यग्लोकसिद्ध हैं। बहुरि सबतें थोरा समुद्रते सिद्ध भये हैं, तिनतें संख्यातगुणा द्वीपतें सिद्ध हैं । ऐसें सामान्य । इनका विशेष सर्वते स्तोक लवणसमुद्रते भये सिद्ध हैं । तिगते संख्यातगुणा कालोदसमुद्रते भये सिद्ध हैं। तिनतें संख्यातगुणां जंबूद्वीपते भये सिद्ध हैं । तिनतें संख्यातगुणा धातकीद्वीपतें भये सिद्ध हैं। तिन संख्यातगुणा पुष्करा ते भये सिद्ध हैं । ऐसेंही कालआदिका विभाग अल्पबहुत्व जानना ।। तहां कालका विभाग उत्सर्पिणीकालमें सिद्ध भये तिनते अवसर्पिणीमें भये विशेषकरि अधिक हैं । बहुरि उत्सर्पिणी अवसर्पिणी विना सिद्ध भये ते तिनतें संख्यातगुणे हैं । बहुरि प्रत्यु. त्पन्ननयापेक्षाकरि एकसमये सिद्ध भये इस अपेक्षामें अल्पबहुत्व नाहीं है । बहुरि गतिविणे प्रत्यु. त्पन्ननयकी अपेक्षा तो अल्पबहुत्व नाहीं । बहुरि भूतनयापेक्षातें अनंतर अपेक्षा तौ मनुष्यगतिही है। तहां अल्पबहुत्व नाहीं । बहुरि एकगतिका अंतर अपेक्षा तिर्यंचगतिके आये मनुष्य होय | सिद्ध भये तो सर्वते स्तोक हैं । तिनत संख्यालगनुष्यगतिते मनुष्य होय सिद्ध भये हैं । बहुरि CAPIOPORNFOPANAPOPoorgappsOPoogPasCIOPARNAGAOPAN For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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