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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३२० ॥ पाठमैं दोय दोय मैं पहली कही जो नदी, ते पूर्वदिशा के समुद्रकूं गई हैं । इहां पहली कही सात नदी पूर्वदिशा गई होयगी ऐसा नांही है । जातें दोय दोयमैंसूं पहली पहली लेणी ऐसें जानना ॥ आगें, पहली पहली तौ पूर्वदिशां गई बहुरि अन्य किसि दिशाकूं गई ? तिनिकी दिशाका विभागकी प्रतिपत्तिकै अर्थि सूत्र कहै हैं- ॥ शेषास्त्वपरगाः ॥ २२ ॥ याका अर्थ -- दोय दोयमें जो अवशेष रही ते नदी पश्चिमके समुद्रकूं गमन करे हैं, ऐसी प्रतीति करनी ॥ तहां पद्मद्रहके पूर्वद्वारतें निकसी जो गंगानदी सो तौ भरतक्षेत्र में होय पूर्वसमु द्र गई । बहुरि पश्चिमारतें निकसी सिंधू सो भरतक्षेत्र में होय पश्चिमदिशाके समुद्रकूं गई । बहुरि उत्तरद्वारतें निकसी रोहितास्या सो हैमवतक्षेत्र में होय पश्चिमकै समुद्र में गई । बहुरि महापद्म के दक्षिणद्वारतें निकसी रोहित नाम नदी सो हैमवतक्षेत्र में होय पूर्वदिशा के समुद्रमैं गई । बहुरि महापद्म के उत्तरद्वारतें निकसी हरिकांता नाम नदी सो हरिक्षेत्र में होय पश्चिम के समुद्रकूं गई । बहुरि तिछि द्रहके दक्षिणद्वारतें निकसी हरितनदी सो हरिक्षेत्र में होय पूर्वदिशा के समुद्रकं गई । बहुरि तिगिंछ द्रहके उत्तरद्वारतें निकसी सीतोदा नदी सो विदेहक्षेत्र में होय पश्चिमसमुद्रकं गई । For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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