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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३१९ ॥ एक पल्यकी आयु है । बहुरि सामानिक जातिके देव बहुरि पारिषदजातिके देव तिनिकरि सहित वर्ते हैं । तिस कमलके परिवारकमल हैं । तिनिकै ऊपरि महल हैं। तिनिविर्षे सामानिक देव वसै हैं। तथा पारिषद देव वसै हैं । आगें, जिनि नदीनिकरि ते क्षेत्र भेदे ते नदी कहिये हैं-- ॥ गङ्गासिन्धूरोहिद्रोहितास्याहरिदरिकान्तासीतासीतोदानानिरकान्तासुवर्णरूप्य कूलारक्तारक्तोदाः सरितस्तन्मध्यगाः ॥२०॥ याका अर्थ- तिनि क्षेत्रनिके मध्य गमन करै ऐसी चौदह नदी हैं । तिनिके नाम गंगा सिंधू रोहित् रोहितास्या हरित् हरिकांता सीता सीतोदा नारी नरकांता सुवर्णकूला रूप्यकूला रक्ता रक्तोदा ऐसें । सरित् कहनै तौ वापी नांही है । बहुरि तन्मध्य कहनेतें इत उत नाही गई हैं। आगें, सर्वनदीनिका एक जायगा प्रसंगके निषेधकू दिशाका विशेषकी प्रतिपत्तिकै अर्थि सूत्र कहै हैं. ॥ द्वयोईयोः पूर्वाः पूर्वगाः ॥ २१ ॥ याका अर्थ-- दोय दोय नदी एक एक क्षेत्रविर्षे हैं ! ऐसे वाक्यविशेष जोडनेतें सर्वका एक जायगा प्रसंगका निषेध है । बहुरि पूर्वाः पूर्वगाः ऐसें वचनतें दिशाका विशेषकी प्राप्ति है । तहां जे For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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