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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥पान ३१२ ॥ वारंवार वृत्तिके कहनेवि वचन है । सो चौडाईके दृणापणा कहनेके अर्थि है । आदि जो जंबूद्वीका विस्तार है तातें दूणा लवणसमुद्रका है। तातें दूणा दूसरा धातकीखंडद्वीप है । तातें दृणा दूसरा कालोदधि समुद्र है । ऐसें जाननां । बहुरि पहले पहले ऊपरि परिक्षेपि कहिये बैड्या है, ग्राम नगरादिकीज्यों अवस्थान मति जाणु । बहुरि वलयाकृति कहिये गोल कडाकीज्यों आकार है, चोकूणां आदि आकार नांहीं है ॥ आगें पूछे है, जंबूद्वीपका ठिकाणा आकार चौडाईका प्रमाण कह्या चाहिये । जाते अगिले द्वीप समुद्रनिका विस्तारादिकका ज्ञान जाकरि होय । ऐसें पूछे सूत्र कहै हैं-- ॥ तन्मध्ये मेरुनाभिर्दत्तो योजनशतसहस्रविष्कम्भो जम्बूद्वीपः ॥९॥ याका अर्थ-- तिनि द्वीप समुद्रीनकै बीचि जंबूद्वीप है सो गोल है । ताकै बीचि मेरुपर्वत नाभिकीज्यों है । बहुरि लाख योजनका चौडा है ॥ तिनिपूर्वक बीप समुद्रनिकै मध्य जंबूवृक्षकरि लक्षित जंवूनामा बीप है। सो कैसा है ? मेरु तो जाकै नाभिकीज्यों है । बहुरि सूर्यके विमानकीज्यों गोलाकार है । बहुरि शतसहस्र कहिये एक लाख योजनका विष्कंभ कहिये चौडा है । | बहुरि उत्तरकुरु भोगभूमिविर्षे अनादिनिधन पृथ्वीकायरूप अकृतिम परिवारवृक्षनिसहित जंबू For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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