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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थासद्धिवचनिका पंडित जयचंद जीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३११ ॥ | फेरि उपपीठ है सो एक योजनका लांबा चौडा है, दोय कोस ऊंचा है । ताकै बीचि जंबू. वृक्ष है । सुदर्शन है नाम जाका स्कंध दोय योजन ऊंचा है । छह छह योजन ऊंचा डाहला है । बीचि छह योजन चौडा मंडल है । आठ योजन लंबा है । ताकै चौगिरिद इस वृक्षतें आधे प्रमाण लीये एकसो आठ छोटे जंबूवृक्ष हैं । तिनिकरि बैड्या है । देवदेवांगनाकरि सेवनीक है । यह वर्णन तत्त्वार्थवार्तिकतें लिख्या है। अर त्रिलोकसारविर्षे याका वर्णन विशेषकरि है । तथा किछू विवक्षाकाभी विशेष है । सो तहांतें जानना । ऐसे वृक्षके योगते जंबूद्वीप नाम है । यह वृक्ष पृथिवीकाय है, वनस्पतिकाय नांही है । बहुरि लवणरससारिखा जलके योगते लवणोद जाननां ॥ आगें इनि द्वीप समुद्रनिका विष्कंभ कहिये चौडाई तथा सन्निवेश कहिये अवस्थानविशेष संस्थान कहिये आकार इनिके विशेषनिकी प्रतिपत्तिकै अर्थि सूत्र कहै हैं ॥ हिडैिर्विष्कम्भाः पूर्वपूर्वपरिक्षेपिणो वलयाकृतयः ॥ ८॥ याका अर्थ- जंबूद्वीपते लगाय सर्वद्वीप समुद्र दूणे दृणे विस्तार हैं । बहुरि यह पहले पहले | ऊपरि परिक्षेपी कहिये वेढे हैं । वलय कहिये गोल कडाकी आकृति हैं । दिदि ऐसा वीप्सा कहिये For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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