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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्यश्रीभ्रातृचंद्रसरि ग्रन्थमाला पुस्तक ५१, मुं १६३ वउ । इणिपरि एकलाख उगुणसहि सहस्र श्रावकनइ अधिकारि सम्यक्त्वोच्चार चरितानुवादि उपदेश सरीषउ जाणिवउ । तथा श्रीउववाई उपांगि अंबडपरिव्राजक तथा तेहना शिष्य ७०० परिव्राजकनउ सम्यक्त्वनइ उच्चारि श्रीमहावीरनउ भाषित अंबड श्रमणोपासकनइ विधिवादि उपदेश छइ । तउ इम जाणियइ श्रीवीतरागि परिव्राजकानुष्टान सर्वबीजां परिवाजका सरीषां कह्यां । तिहां जाणीइ छइ अंबडनई ए परिब्राजकानुष्टानविधि छइ । परं जे इम काउं “अंबडस्सणं नोकप्पति अजप्पमिति अन्नउथिए वा, अन्नउथ्थिय देवयाणि वा, अन्नउथियपरिग्रहियाई चेइयाणि वा, वंदित्तए वा नमंसित्तए वा, पज्जुबासित्तए वा, ननथ्य अरिहंते वा अरिहंतचेइयाणि वा ॥" ए अनुष्शन बीजापरिव्राजकथकी विपरीत दीसइ छइ ।। तथा १२ व्रत ए पुण अनेरापरिव्राकनउ कर्त्तव्य न बोल्यउ । तिणि कारणि जाणिज्यो (जु) अरिहंतचैत्य कहतां श्रीअरिहंतनी प्रतिमा तेहनउ वंदनादिक अधिकार श्रमणोपासकनउ कर्त्तव्य छ।।। यद्यपि अंबडना नाम लीधाभणी चरितानुवाद किवारइ मनमाहि आवइ, परं श्रीवीर भाषित भणी विधिवाद सरीषउ छइ । तथा वली छेदग्रंथमाहिगाथा-पुणोवि वीयरागाणं, पडिमाउ चेइयालए । पत्तेयं संथुणे वंदे, एगग्गो भत्तिनिप्भरं ॥१॥ तथा वली उपधान वह्या अनंतर गुरु श्रावकनई काजि त्रिकालचैत्यवांदिवा उपदेश देवाना अक्षर छेद ग्रंथमाहि छ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020656
Book TitleSaptapadi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherMandal Sangh
Publication Year1940
Total Pages291
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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