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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६२ उत्सूत्रतिरस्कारनामा-विचारपटः सातंदुलेहिं जिणपडिमाणं पुरतो अट्ठमंगलए आलिहति सोत्थियसिरिवच्छ जाव दप्पण अट्ठमंगलगे आलिहति आलिहित्ता कयग्गाहम्महितकरतलपभट्ठविप्पमुकेणं दसद्धवन्ने कुसुमेणं मुकपुप्फपुंजोक्यारकलितं करेति २ त्ता चंदप्पभवइ वेरुलियविमलदंड कंचणमणिरयणभत्तिचित्तं कालागुरुपवरकुंदुरुक्कतुरुक्कधूवगंधुत्तमाणुविद्धं धूमवटि विणिम्मुयंत वेरुलियामयं कडुच्छुयं पग्गहित्तु पयत्तेण ध्रुवं दाऊण जिणवराण अट्ठसयविसुद्धगंथजुत्तेहिं महावित्तेहिं अत्थजुत्तेहिं अपुणरुत्तेहि संथुणइ २ ता सत्तकृपयाई ओसरति सत्तहपयाई ओसरित्ता वामं जाणुं अंचेइ २ ता दाहिणं जाणु धरणितलंसि णिवाडेइ तिक्खूत्तो मुद्धाणं धरणियलंसि णमेइ नमित्ता ईसि पच्चुण्णमति २ ता कडयतुडियथंभियाओ भुयाओ पडिसाहरति २ त्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी-णमोऽत्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं जाव सिद्धिगइणामधेयं ठाणं संपत्ताणं तिकट्ठ वंदति णमंसति ॥" इसीपरि सूरियाभनउ पुण आलावउ छइ ॥ एवं वैजयंत जयंत अपराजित ए आलावा सरीषा जाणिवा । सम्यगदृष्टी थुइ मंगलादि करणी करइ, ते श्रावक साधु पुण करइ, इहां संदेह न करिवउ कांई, जेह भणी एहनउं फल वीतरागे कार्ड तेहभणी अनई जे पुष्पादि छइ ते उपदेश माहि नथी जाणिउं॥ तथा श्रावकनइ अधिकारि श्रीउपासकदशांगि जिम आणंदनउ अधिकार तिम तदादि श्रावक दशनउ अधिकार जाणि For Private And Personal Use Only
SR No.020656
Book TitleSaptapadi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherMandal Sangh
Publication Year1940
Total Pages291
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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