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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करणः प्रतियोगिव्यधिकरणो योऽभावः, न तावदस्तित्वाभावरूपं नास्तित्वं, तस्य प्रतियोगिनाऽस्तित्वेन समानाधिकरणत्वात् । किन्त्वन्याभावः, तदप्रतियोगित्वं चास्तित्वे निर्बाधमिति॥ कदाचित् ऐसी शंका करो कि घटत्व समानाधिकरण जो अत्यन्ताभाव अर्थात् जिस अधिकरणमें घटत्व धर्म रहता है उसीमें रहनेवाला जो अत्यन्ताभाव ऐसा कहनेपर अस्तित्वका अभाव भी हो सकता है क्योंकि अस्तित्वका अत्यन्ताभाव जो नास्तित्व है वह भी परकीय रूपादिसे है ? तो उस अस्तित्वके अत्यन्ताभावकी अप्रतियोगिता अस्तित्वमें बाधित है इस रीतिसे पूर्वोक्त 'स्यादस्त्येव घट' वाक्यसे अस्तित्वका अभाव जो नास्तित्व है उससे घटमें निषेध प्राप्त होता है तो इसका उत्तर देते हैं, यहांपर, अभावका अप्रतियोगी इस पदसे प्रतियोगिव्यधिकरण जो अभाव अर्थात् जिस अधिकरणमें प्रतियोगी है उसीमें उसका अभाव भी हो ऐसा नहीं किन्तु प्रतियोगीके अधिकरणमें न रहनेवाला जो अभाव उस अभावका अप्रतियोगित्वरूप इस स्थलमें एवकारका अर्थ है. इस प्रकार प्रतियोगिव्यधिकरण अभावमें उद्देश्यतावच्छेदक समानाधिकरणताका लाभ उद्देश्यबोधक घट आदि पदके सन्निधानसे होता है । जैसे 'शङ्खः पाण्डुः एव' इत्यादि उदाहरणमें प्रतियोगिव्यधिकरण अभावके अप्रतियोगित्वरूप एवकारके अर्थके एक देशरूप अभावमें शंखत्व समानाधिकरणताका शंख पदके सन्निधानसे लाभ होता है । ऐसा स्वीकार करनेसे प्रकृतस्थल 'स्यादस्त्येव घट:' में भी एवकारका अर्थ प्रतियोगी व्यधिकरण अभावका अप्रतियोगित्वरूप है. इस प्रतियोगी व्यधिकरण अभावमें घटत्व समानाधिकरणताका लाभ तो घट पदके सन्निधानसे होता है तो इस रीतिसे घटत्व समानाधिकरण तथा प्रतियोगी व्यधिकरण जो अभाव है वह अस्तित्वका अभाव नास्तित्व नहीं हो सकता है क्योंकि उसी अस्तित्वके अभावका प्रतियोगी अस्तित्व भी घटरूप अधिकरणमें है किन्तु अस्तित्वके अभावसे अन्य पटत्व आदिका अभाव रह सकता है उसके अभावके प्रतियोगी पटत्व आदि होंगे और अप्रतियोगित्व अस्तित्वमें विना किसी बाधाके सिद्ध है उस अस्तित्वसहित घट यह अर्थ सिद्ध होगया. अत्र प्रतियोगिवैयधिकरण्याप्रवेशे पूर्वोक्तरीत्या सर्वप्रकारेणाप्यस्तित्वप्रसक्त्या नास्तित्वनिषेधे प्राप्तेऽस्तित्वैकान्त्यनिवृत्तिपूर्वकमनैकान्त्यद्योतनाय स्यात्कारः। स्यात्कारप्रयोगाधीनमेवैवकारार्थे प्रतियोगिवैयधिकरण्यं पूर्व प्रवेशितम् ।। इस पूर्वोक्त उदाहरणमें प्रतियोगिव्यधिकरण ऐसा प्रवेश न करनेपर पूर्व कथित रीतिसे सर्व प्रकारसे अस्तित्वके प्रसंगसे नास्तित्वका निषेध प्राप्त होनेपर अस्तित्वकी १ जिसमें उसका प्रतियोगी है उस अधिकरणमें न रहनेवाले. २ जहां घटत्व रहता है उसी अधिकरणमें स्थिति. ३ समीपता. ४ जिस अधिकरणमें घटल है उसीमें रहनेवाला. ५ अपने प्रतियोगीके अधिकरणमें न रहनेवाला. For Private And Personal Use Only
SR No.020654
Book TitleSaptabhangi Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimaldas, Pandit Thakurprasad Sharma
PublisherNirnaysagar Yantralaya Mumbai
Publication Year
Total Pages98
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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