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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३ और न्यायशास्त्रकी रीतिसे उसी शब्दके अनन्तर एकार्थबोधक वही शब्द जैसे 'एव एव' वा 'चच' ऐसा रखनेसे शाब्दबोध भी नहीं होगा. जैसे 'घटो घट:' घडा घडा, इस वाक्यका अर्थबोध नहीं होता. क्योंकि शाब्दबोधमें एक शब्दके उच्चारणके पश्चात् उसी अर्थबोधक उसी शब्दको कारणता नहीं मानी गई है। इस हेतुसे भी एव शब्द दूसरे एव शब्दकी अपेक्षा अपने अर्थ बोध कराने में नहीं रखता. न च निपातानां द्योतकत्वादेवकारस्य वाचकत्वं न सम्भवतीति वाच्यम् । निपातानां द्योतकत्वपक्षस्य वाचकत्वपक्षस्य च शास्त्रे प्रदर्शनात् । “द्योतकाश्च भवन्ति निपाताः” इत्यत्र 'च शब्दाद्वाचकाश्च' इति व्याख्यानात् ॥ कदाचित् यह कहो कि निपातोंको तो द्योतकता है नकि वाचकताका संभव है । तब एवकारका प्रयोग व्यर्थ ही है. सो ऐसा नहीं कह सकते. क्योंकि निपातोंका द्योतकत्व तथा वाचकत्व दोनो पक्ष शास्त्रों में देखे जाते हैं। 'द्योतकाश्च भवन्ति निपाता' निपात द्योतक भी होते हैं इस वाक्यमें च शब्दसे वाचकताका भी व्याख्यान किया गया है । यदि निपात केवल द्योतक ही होते तो 'द्योतकाच' द्योतक भी यहांपर समुच्चयार्थक 'च' शब्दका प्रयोग क्यों किया ? केवल 'द्योतका इतना ही कहना पैर्याप्त था. च शब्दसे यह बोधित होता है कि द्योतक तथा वाचक भी निपात हैं । परे तु-"निपातानां द्योतकतया न द्योतकस्य द्योतकान्तरापेक्षेत्यवधारणद्योतने नैवकारस्यैवकारान्तरापेक्षा; यथा प्रदीपस्य न प्रदीपान्तरापेक्षा, वाचकस्य च घटादिपदस्य युक्ताऽवधारणबोधनायैवकारापेक्षा, ननु द्योतकस्यापि द्योतकान्तरापेक्षा दृश्यते, एवमेवेत्यादौ एवमितिमान्तनिपातस्यैवकारापेक्षणात् ; तथा च सर्वोऽपि द्योतको द्योत्यार्थे द्योतकान्तरापेक्षस्स्यादित्यनवस्थादुर्निवारेति चेन्न, तत्र एवं शब्दस्य स्वार्थवाचकत्वादन्यनिवृत्तौ द्योतकापेक्षोपपत्तेः, निपातानां वाचकत्वस्यापि शास्त्रसम्मतत्वात् , अतएव उपकुम्भमित्यादावुपशब्देन कुम्भशब्दस्य समासः सङ्गच्छते, अन्यथा-उपशब्दस्य द्योतकत्वेन समासो न स्यात्, द्योतकेन समासासम्भवात्" इत्याहुः ॥ __ अन्य तो ऐसा कहते हैं कि,-निपातोंको द्योतकत्व होनेसे एक द्योतकको दूसरे द्योतककी अपेक्षा नहीं रहती. इस लिये अवधारणरूप अर्थ द्योतित होनेकेलिये एक एवकार शब्दको दूसरे एवकार शब्दकी अपेक्षा ऐसे नहीं रहती जैसे एक दीपकके प्रकाशित होनेके लिये दूसरे दीपककी अपेक्षा नहीं रहती और वाचक जो घट तथा अस्ति आदि शब्द हैं उनके अवधारणरूप अर्थ जनानेकेलिये एवकारकी अपेक्षा योग्य ही है । कदाचित् यह कहो कि एक द्योतकको भी दूसरे द्योतककी अपेक्षा होती है जैसे 'एवम् एवं' ऐसा ही, यहांपर एवम् यह जो मकारान्त निपात है उसको एवकी अपेक्षा है तो इस रीतिसे सब द्योतक १ शब्दजन्यज्ञान. २ घट शब्दके आगे घट वा कलश शब्द. ३ किसी पदके संयोगमें उसीके अर्थकी प्रकाशकता. ४ काफी. ५ प्रकाशक. निश्चय, ७ प्रकाशित. ८ म जिसके अन्त में. ९ प्रकाशक. For Private And Personal Use Only
SR No.020654
Book TitleSaptabhangi Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimaldas, Pandit Thakurprasad Sharma
PublisherNirnaysagar Yantralaya Mumbai
Publication Year
Total Pages98
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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