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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इससे यह सिद्ध हुआ कि अवधारण शब्दके प्रयोगसे अन्यकी निवृत्ति वा अभाव नहीं होता क्योंकि निश्चयवाचक एव शब्दके रहनेपर भी अन्यकी निवृत्ति नहीं है. और न होनेपर भी 'गाम् आनय' इसमें अन्यकी निवृत्ति देखी गई है । इस हेतुसे अन्वय व्यतिरेकसे निश्चयवाचक शब्दको अन्यकी निवृत्ति में कारणता नहीं है । और भी अन्यकी निवृत्ति करता हुआ एवकार अन्य एवकार अर्थात् निश्चयबोधक दूसरे एव शब्दकी अपेक्षा रखता है वा नहीं? यदि प्रथम पक्ष है अर्थात् अन्य एव शब्दकी अपेक्षा रखता है तब तो अनवस्था दोष आवेगा । क्योंकि जैसे 'अस्ति' इत्यादि शब्द अपने अर्थको निश्चय वा पुष्ट करानेकेलिये एव शब्दकी अपेक्षा रखते हैं ऐसे ही एव शब्द भी अपने अर्थको दृढ करानेकेलिये दूसरे एव शब्दकी अपेक्षा करेगा और दूसरा एव शब्द भी अपने अवधारणरूप अर्थको दृढ करानेकेलिये तीसरे एव शब्दकी अपेक्षा करैगा । इस प्रकार अनवस्था होगी और द्वितीय अर्थात् एवकार दूसरे एवकार की अपेक्षा अपने अर्थके बोध करानेमें नहीं रखता तो जैसे एवकारके प्रयोगमें दूसरे एवकारके अभावमें भी प्रकरण आदिसे अन्यकी निवृत्तिका लाभ होता है. ऐसे ही सब शब्दोंके प्रयोगमें भी एवकारके विना ही प्रकरण आदिसे अन्यकी निवृत्तिके लाभका संभव होनेसे 'स्यादस्ति एव' इस भङ्गमें भी एवकारका प्रयोग व्यर्थ ही है ॥ मैवम् । यतश्शब्दाम्नायपरिपाटी विरुद्धयते । तत्र हि ये शब्दास्स्वार्थमात्रेऽनवधारिते सङ्केतितास्ते तदवधारणविवक्षायामेवकारमपेक्षन्ते । तत्समुच्चयादिविवक्षायां चकारम् । यथाघटमेवानय, पटं चानय, इति । यस्त्ववधारणे सङ्केतितस्तस्य च नावधारणबोधन एवकारान्तरापेक्षा । यथा-चकारस्य समुच्चयबोधने न चकारान्तरापेक्षा ॥ . ऐसी शङ्का नहीं कर सकते क्योंकि शब्दशास्त्रकी पद्धति रीति वा सम्प्रदायका इसमें विरोध आता है। शब्दशास्त्रमें अर्थात् शब्दोंकी शक्ति तथा शब्दकी व्युत्पत्तिकारक व्याकरण आदि शास्त्रमें जो शब्द निश्चयरहित केवल स्वार्थमात्रमें जैसे घट पट अस्ति आदि कम्वुग्रीवादि व्यक्तिमें संकेतित हैं वे ही अवधारण अर्थक कथनकी वक्ताकी इच्छा होनेपर एवकार की अपेक्षा करते हैं और वे ही शब्द पदार्थान्तरके संग्रहकी विवक्षामें चकारकी अपेक्षा रखते हैं जैसे 'घटमेवानय, पटं चानय' घट ही लाओ और पट भी लाओ इन दोनो वाक्योंमें घट पट शब्द अपने अर्थ कम्बुग्रीवादिमान् पदार्थ, तथा तन्तुओंकी रचना विशेष मात्रमें संकेतित हैं, इस हेतुसे वे निश्चयकेलिये एव शब्द तथा सैंमुच्चयबोधक चकारकी अपेक्षा करते हैं और जो शब्द अवधारणरूप अर्थमें ही संकेतित हैं अर्थात् जिसका अवधारणरूप ही अर्थ है उसको पुनः अवधारणरूप अर्थबोध करानेकेलिये दूसरे एवकार शब्दकी आकांक्षा नहीं है ऐसे ही समुच्चयरूप अर्थबोधक चकार भी दूसरे चकारकी अपेक्षा नहीं रखता १ अपने अर्थ. २ निश्चयरूप अर्थ. ३ बोधित. ४ समूहकेलिये. ५ निश्चयकरण. ६ वाक्यमें कथितसे अनेक संग्रह. For Private And Personal Use Only
SR No.020654
Book TitleSaptabhangi Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimaldas, Pandit Thakurprasad Sharma
PublisherNirnaysagar Yantralaya Mumbai
Publication Year
Total Pages98
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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