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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्तत धर्मसत्र में वर्णित विषय इस प्रकार हैं- चारों वर्ण व उनकी प्राथमिकता, आचार्य की महत्ता व परिभाषा, उपनयन, उपनयन के उचित समय का अतिक्रमण करने पर प्रायश्चित्त का विधान, ब्रह्मचारी के कर्तव्य, आचरण, उसके दण्ड, मेखला, परिधान, भोजन एवं भिक्षा के नियम, वर्णों के अनुसार गुरुओं के प्रणिपात की विधि, उचित तथा निषिद्ध भोजन एवं पेय का वर्णन, ब्रह्महत्या, नारी-हत्या, गुरु या क्षत्रिय की हत्या के लिये प्रायश्चित्त, सुरा-पान तथा सुवर्ण की चोरी के लिये प्रायश्चित्त, पर- नारी के साथ संभोग करने पर प्रायश्चित्त, गुरु-शय्या अपवित्र करने पर प्रायश्चित्त और विवाहादि के नियम आदि। यह ग्रंथ हरदत्त की टीका के साथ कुंभकोणम् से प्रकाशित हो चुका है। आपस्तंबपद्धति - ले- गागाभट्ट काशीकर । ई. 17 वीं शती। पिता- दिनकर भट्ट। आप्तपरीक्षा (स्वोपज्ञवृत्तिसहित) - ले. विद्यानन्द । जैनाचार्य। ई. 8-9 वीं शती। आप्तमीमांसा - ले. समन्तभद्र। जैनाचार्य। ई. प्रथमशती (अन्तिम भाग) पिता- शान्तिवर्मा। आप्पाशास्त्रि-चरितम् - ले- पं.वा.ना. ओदंबरकर। विषयसंस्कृत के प्रख्यात पत्रकार पं. आपाशास्त्री राशीवडेकर का विस्तृत एवं अधिकृत चरित्र । शारदा प्रकाशन, पुणे-30 । आप्पाशास्त्रि-साहित्य-समीक्षा- ले. डॉ. अशोक अकलूजकर, कॅनडा में व्हँकूवर विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग के अध्यक्ष। इनका अध्ययन पुणे में हुआ। संस्कृत पत्रकरिता के इतिहास में आप्याशास्त्री राशीवडेकर का नाम अग्रगण्य माना जाता है। उनकी विविध प्रकार की रचनाएं, उनके द्वारा संपादित पत्रिका चन्द्रिका में निरंतर प्रकाशित होती रहीं। डॉ. अशोक अकलूजकर ने उन सभी लुप्तप्राय पत्रिका के अंकों का अन्वेषण कर आप्पाशास्त्री के साहित्य की सराहनीय समीक्षा इस निबंध ग्रंथ में की है। शारदा प्रकाशन, पुणे- 30। आमोद - ले- शंकरमिश्र। ई. 15 वीं शती। आम्नाय - श्लोकसंख्या 2601 विषय- तंत्रशास्त्र के अन्तर्गत पूर्वाम्नाय, दक्षिणाम्नाय, पाश्चिमानाय, उत्तराम्नाय, उर्ध्वाम्नाय, मानवौघ, उद्वौघ, परौघ, कामराजौघ, लोपामुद्रौघ, कामराज-विद्याचरणवासना, लोपामुद्रा-विद्याचरणवासना, स्रोतश्चरणवासना, शाम्भवचरणविद्या, शाम्भवचरणवासना,परापादुकाक्रम, लोपामुद्रापादुकाक्रम महापादुका, सत्ताईस रहस्य, पांच अम्बाएं, नौ नाथ, आधार विद्याएं, छह आधारविद्याएं, छह अध्वरविद्याएं, छह दर्शन, आठ वाग्देवता, छह योगिनियों की विद्याएं, नित्या के मन्त्र, पांच पंचिकाएं, अनेक देवी-देवताओं के मन्त्र आदि। आम्नायपद्धति - ले. भास्करराज । विषय- धर्मशास्त्र।। आम्नायमंजरी - यह संकटतन्त्रराज पर अभयगुप्त की टीका है। आयर्वेद-चन्द्रिका - ले- हरलाल गप्त। ई. 10 विषय- आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति की जानकारी। आयुर्वेद-दीपिका - ले- चक्रपाणि दत्त। ई. 11 वीं शती। चरक संहिता पर भाष्य। आयुर्वेद-परिभाषा - ले- गंगाधर कविराज। 1798-1885 ई.। (अप्रकाशित)। आयुर्वेदभावना - ले- मथुरानाथ तर्कवागीश। पिता- रघुनाथ । आयुर्वेद-महासम्मेलनम् - सन् 1913 में दिल्ली में चेतनानन्द चित्काशि के संपादकत्व में अ.भा. आयर्वेद संघ की इस मासिक पत्रिका का प्रकाशन हुआ। आयुर्वेदरसायनम् - ले- हेमाद्रि। ई. 13 वीं शती। पिताकामदेव। आयुर्वेद-संग्रह - ले- गंगाधर कविराज। 1789-1885 ई। अप्रकाशित। आयुर्वेदसुधानिधि - ले- सायणाचार्य। ई. 13 वीं शती । विषय- धर्माचरण के लिये आयुर्वेद विषयक आवश्यक रहस्यों का संग्रह। आयुर्वेदीय पदार्थविज्ञानम् - ले- डॉ. चिं. ग. काशिकर, पुणे-निवासी । विषय- आयुर्वेद की संकल्पना का विस्तृत विवेचन. आयुर्वेदोद्धारक - सन् 1887 मे मथुरादत्त राम चौबे के संपादकत्व में संस्कृत-हिन्दी भाषा में यह मासिक पत्रिका मथुरा से प्रकाशित की गयी। आरम्भसिद्धि (व्यवहारचर्या) - इसकी रचना ज्योतिष-शास्त्र के आचार्य उदयप्रभदेव की है जिनका समय 1220 के आसपास है। इस ग्रंथ में लेखक ने प्रत्येक कार्य के लिये शुभाशुभ मूहूतों का विवेचन किया है। इस पर रत्नेश्वर सूरि के शिष्य हेमहंसगणि ने वि.सं. 1514 में टीका लिखी थी। इस ग्रंथ में कुल 11 अध्याय हैं जिनमें सभी प्रकार के मुहूर्तो का वर्णन है। व्यावहारिक दृष्टि से यह ग्रंथ 'मुहूर्तचिंतामणि' के समान उपयोगी है। आरण्यक-विलास - श्री यादवेन्द्र राय कृत खण्डकाव्य । आरब्यामिनी - मूल 'अरेबियन नाईटस्' का अनुवाद अनुवादकजगबन्धु। आराधना - ले. अमितगति (द्वितीय) जैनाचार्य । ई. 10 वीं शती। आराधना - सन् 1956 से हैदराबाद में प्रकाशित होने वाली त्रैमासिक पत्रिक। संपादक जी. नागेश्वरराव । आराधनासार - ले- देवसेन । जैनाचार्य । ई. 10 वीं शती। आराधनासार-समुच्चय - ले- रविचन्द्र। जैनाचार्य ई. 13 वीं शती। आरामोत्सर्गपद्धति - ले. नारायणभट्ट। ई. 16 वीं शती। पिता- गमेश्वर भट्ट। विषय- धर्मशास्त्र । संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड /29 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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