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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वराज्य-विजयम् (काव्य) - ले.- द्विजेन्द्रनाथ मिश्र। रचना-काल, 1960 ई.। इसमें 18 सर्ग हैं जिनमें भारत की ई. । इसम 18 पूर्व समृद्धि का वर्णन, विदेशियों के आक्रमण, राष्ट्रीय काँग्रेस का जन्म, तिलक, सुभाष, गांधी, पटेल आदि महान राष्ट्रीय उन्नायकों के कर्तृत्व का वर्णन तथा क्रांतिकारियों व आतंकवादियों के पराक्रम का निर्देश किया गया है। स्वरूपसंबोधनम् - ले.- अकलंक देव। जैनाचार्य। स्वरूपाख्यानस्तवटीका - ले.- नन्दराम । स्वर्गलक्षणम् - श्लोक- 2501 स्वर्गवाद - विषय- स्वर्गवाद, प्रतिष्ठावाद, सपिण्डीकरणवाद इ.। स्वर्गसाधनम् - ले.- रघुनन्दन भट्टाचार्य। (प्रसिद्ध रघुनन्दन से भिन्त्र) विषय- श्राद्धाधिकारी,अन्त्येष्टिपद्धति, अशौचनिर्णय, वृषोत्सर्ग, षोडश श्राद्ध, पार्वणश्राद्ध आदि। स्वर्गारोहणचम्पू - ले.- नारायण भट्टपाद । स्वर्गीयप्रहसनम् - ले.-डॉ. सिद्धेश्वर चट्टोपाध्याय। (श. 20) संस्कृत साहित्य परिषद् द्वारा प्रकाशित । रवीन्द्रनाथ ठाकुर के स्वर्गीय प्रहसन का अनुकरण। नये दल-नायक तथा गणेशों द्वारा स्वर्ग में राजनीतिक उठापटक का दृश्य। देवराज बनने की इच्छा से बृहस्पति की कुटिल चालें दर्शित। अशोक और अकबर महत्त्वपूर्ण विभागों के मंत्रिपद की इच्छा रखते हैं। श्रमिक तथा किसानों के नेता नरक के प्रतिनिधि बन आते हैं। देवराज कौन बने, जनसंख्या कैसे कम हो, नरक और स्वर्ग का भेद कैसे मिटे आदि समस्याओं पर उन में चलने वाली बेतुकी चर्चा से हास्योत्पादकता इसकी विशेषता है। स्वर्णतन्त्रम् - श्लोक- 1000। स्वर्णपुर-कृषीवल - ले.- लीला राव-दयाल (श. 20)। तीन दृश्यों में विभाजित एकांकी रूपक। स्वर्णपुर के किसानों का भूमि-कर ने देने का सत्याग्रह और अंग्रेजी शासन द्वारा किये गये अत्याचारों का वर्णन। इस सत्याग्रह की अग्रणी हे रेखा नामक विधवा। रागबद्ध नौ गीत। कौटुंबिक कुचक्र में छत्रसाल के पिता की हत्या तथा छत्रसाल का दक्षिण की ओर प्रस्थान वर्णित । प्राकत का अभाव। स्वातंत्र्य-यज्ञाहुति (रूपक) - ले.- नारायणशास्त्री कांकर । संस्कृतरत्नाकर दिल्ली से सन् 1956 में प्रकाशित । विषयसन् 1942 के स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान की कथा । स्वातंत्र्यलक्ष्मी - ले.- श्रीराम वेलणकर। रेडियो नाटक । दिसम्बर 1963 को आकाशवाणी, दिल्ली से प्रसारित । अंकसंख्यातीन। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का चरित्र।। स्वातंत्र्य-सन्धिक्षण - ले.- जीव न्यायतीर्थ (जन्म 1894) संस्कृत साहित्य परिषद् की पत्रिका में सन् 1957 में प्रकाशित एकांकी प्रहसन। विभाजित भारत की राजनीतिक दशा का चित्रण। अंग्रेजों की कुटिलता का निदर्शन। स्वाधीनभारत-विजयम् - ले.- जीव न्यायतीर्थ (जन्म 1894) सन 1964 में कलकत्ता से प्रकाशित। स्वानुभूतित्रिवेणी - ले.- मेलकोटे (कर्नाटक) निवासी श्री अरैयर, जो नित्य पदयात्रा के कारण 'पदयात्री अरैयर" नाम से प्रसिद्ध सर्वोदयी कार्यकर्ता हैं। आपके स्वानुभूतित्रिवेणी नामक काव्य में आधारयमुना, विचारगंगा और भक्तिसरस्वती नामक तीन सगों के अंत में ताम्रपर्णीप्रसाद नामक चतुर्थ सर्ग है। आधारयमुना नामक प्रथम सर्ग में आहारशुद्धि, आचारशुद्धि, आतपस्नान, शीतलोदकसान, हिताशन, जैसे विविध सर्वोदयी विषयों का 264 श्लोकों में परामर्श लिया है। विचारगंगा नामक द्वितीय सर्ग में 489 श्लोकों में, मौन,अर्थशुद्धि, यज्ञचक्र, विश्वनीड, प्रवृत्तिशुद्धि इत्यादि विषयों का परामर्श लिया है। भक्तिसरस्वती-सर्ग में 374 श्लोकों में आधुनिक दृष्टि से भक्ति का प्रतिपादन किया है। ताम्रपर्णीप्रसाद नामक 260 श्लोकों के अंतिम सर्ग में भक्ति-प्रधान अवांतर विषयों का अन्तर्भाव हुआ है।प्रकाशक- अमदाबाद जिला सर्वोदय मंडल। यह समग्र काव्यरचना श्री अरैयरजी ने अपनी पदयात्रा में की है। अपने काव्य में प्रतिपादित सर्वोदयी सिद्धान्तों के अनुसार लेखक का व्रतस्थ तपस्वी जीवन है। स्वानुभूतिनाटक - ले.- अनंत पंडित। ई. 17 वीं शती। वाराणसी-निवासी। अंकसंख्या - पांच। विषय- शंकराचार्य के केवलाद्वैत सिद्धान्त का प्रतिपादन। शांकर मत का प्रतिपादन करते हुए नाटक में उपनिषदों, भगवद्गीता ब्रह्मसूत्रभाष्य, योगवासिष्ठ, अष्टावक्तगीता, नैष्कर्म्यसिद्धि संक्षेपशारीरक, आदि ग्रंथों से वचन उद्धृत किये है। स्वानुभूत्यभिधा - ले.- अनन्तराम। स्वायंभुव आगम - श्रीकण्ठ मत से यह दश (10) रुद्रागमों में अन्यतम है। इस पर सेटपाल विरचित व्याख्या है। स्वायंभुवरामायणम् - रूढ परंपरानुसार रचनाकाल मन्वंतर का HdHHEEFTHE स्वर्णाकर्षणभैरवी - श्लोक- 1001 स्वर्णाकर्षण भैरवतन्त्रम् - श्लोक- 3821 स्वरूपाख्यस्तोत्रटीका (आनन्दोद्दीपिनी) - लें.- ब्रह्मानन्द सरस्वती। यह फेत्कारिणी तंत्र में उक्त प्रकृतिस्वरूप के निरूपक स्तोत्र का व्याख्यान है। स्वस्तिवाचनपद्धति - ले.- जीवराम। स्वातंत्र्यचिन्ता - ले.- श्रीराम वेलणकर । 'सुरभारती', (भोपाल) द्वारा 1969 में प्रकाशित। एकांकी रूपक। कुल पात्र-पांच। आकाशवाणी के हेतु लिखित। 11 रागमय पद्य। राणा प्रताप तथा मानसिंह की कमल मीर से मिलने की कथा। स्वातंत्र्य-मणि - ले.- श्रीराम वेलणकर (श. 20) रेडियो-नाटक। 424/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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