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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्मृत्यर्थसागर - ले.- छल्लारि नृसिंहाचार्य। नारायण के पुत्र।। मध्वाचार्य की सदाचारस्मृति पर आधारित। इसका कथन है कि मध्वाचार्य का जन्म 1120 (शकसंवत्) में हुआ था। कमलाकर एवं स्मृतिकौस्तुभ का उल्लेख है। सन् 1675 ई. के उपरान्त लिखित। स्मृत्यर्थसार- ले.- नीलकण्ठाचार्य। (2) ले.- श्रीधर । दाक्षिणात्य। इस ग्रंथ में कलिवर्ण्य, संस्कारों की संख्या, उपनयन, ब्रह्मचारी के कर्त्तव्य, अनध्याय के दिन, विवाह तथा उसके प्रकार, गोत्रप्रवर, शौच, दंतधावन, पंचयज्ञ, संध्या, पूजा आदि आह्निक कर्मों, संन्यासधर्म, पाप-दोष तथा प्रायश्चित्तों का विवेचन है। निर्माणकाल- ई.स. 1150 से 1200 के बीच। (3) ले.- मुकुन्दलाल। स्मृत्यर्थसारसमुच्चय - शौच, आचमन, दन्तधावन आदि पर 28 शास्त्रकारों के दृष्टिकोणों के सार दिये हुए हैं। पाण्डुलिपि की तिथि है संवत् 17431 28 ऋषि ये हैं- मनु, याज्ञवल्क्य, विश्वामित्र, अत्रि, कात्यायन, वसिष्ठ, व्यास, उशना, बोधायन, दक्ष, शंख, लिखित, आपस्तम्ब, अगस्त्य, हारीत, विष्णु, गोभिल, सुमन्तु, मनु स्वायंभुव, गुरु, नारद, पराशर, गर्ग, गौतम, यम शातातप, अंगिरा और संवर्त । स्यमन्तक (नाटक) - ले.- जगु श्री बकुलभूषण बंगलोरनिवासी। स्यमन्तकचम्पू - ले.-नारायणभट्टपाद । स्यमन्तकोद्धार - ले.- कालीपद (1888-1972) सन् 1933 में लिखित व्यायोग। अंकसदृश पांच दृश्यों में विभाजित। वनदेवी, ऋक्षराज, विष्णुशक्ति आदि मानवी पात्र के रूप में प्रदर्शित । प्रधान रस-वीर। अंगरस-शृंगार । गीतों की भरमार । गद्योचित प्रसंग भी पद्यों में ग्रंथित। सभी पात्र संस्कृत में बोलते हैं। सूक्तियों का बाहुल्य। श्रीकृष्ण के स्यमन्तक-विषयक प्रवाद से जाम्बवती के साथ विवाह तक का कथानक इसमें ग्रथित है। स्याद्वादरत्नाकर - ले.- देवसूरि। ई. 11-12 वीं शती। विषय- जैन दर्शन। स्रग्धरास्तोत्रम् (अन्य नाम- आर्यतारास्रग्धरास्तोत्र) - ले.सर्वज्ञमित्र । स्रग्धरा छंद में 37 श्लोक। परिष्कृत रचना तथा सुन्दर शैली। तारा जो अवलोकितेश्वर बुद्ध की स्त्री-प्रतिमूर्ति तथा मुक्तिदात्री देवी है, का स्तवन कर, कवि ने अपने साथ 100 व्यक्तियों को नरबलि होने से बचाया। बुद्धस्तोत्रसंग्रह के प्रथम भाग में सतीशचन्द्र विद्याभूषण द्वारा संपादित । स्वच्छन्दतन्त्रम् - १ पटलों में पूर्ण। यह काश्मीर संस्कृत सीरीज में 7 मार्गों में छप चुका है। श्लोक- 11001 स्वच्छन्दपद्धति - ले.- चिदानन्द। गुरु-विमलानन्द। श्लोक- 4001 श्रीविद्याराधन में बालकों के प्रवेश के निमित्त सिद्धसरणि की यह संक्षिप्त पद्धति चिदानन्द द्वारा रची गई है। स्वच्छन्दोद्योत (स्वच्छन्दनय की टीका) - ले.- राजानक क्षेमराज। गुरु-राजानक अभिनवगुप्त। श्लोक- 1194 | स्वतंत्रतंत्रम् - श्लोक- 332। स्वत्वरहस्य (या स्वत्वविचार) - ले.- अनन्तराम । स्वत्वव्यवस्थार्णवसेतुबन्ध - ले.- रघुनाथ सार्वभौम । विभागनिरूपण, स्त्रीधनाधिकारी, अपुत्रधनाधिकार पर 6 परिच्छेद । स्वप्नवासवदत्तम् (नाटक) - ले.- महाकवि भास। संक्षिप्त कथा- नाटक के प्रथम अंक में मंत्री यौगन्धरायण वासवदत्ता और स्वयं के जलने का प्रवाद फैला देता है और परिव्राजक वेष धारण कर वासवदत्ता को अपनी प्रोषितपतिका बहन (अवन्तिका) के रूप में मगधराज की बहन पद्मावती के संरक्षण में रख देता है। द्वितीय अंक में पद्मावती के साथ उदयन का विवाह निश्चित होता है। तृतीय अंक में अपने पति उदयन का पद्मावती से विवाह होने के कारण वासवदत्ता अन्तद्वंद्व में है। चतुर्थ अंक में विदूषक और राजा के संवाद से वासवदत्ता को ज्ञात होता है कि पद्मावती से विवाह होने पर भी राजा वासवदत्त पर बहुत प्रेम करते हैं। पंचम अंक में राजा के स्वप्रदर्शन का दृश्य है जहां स्वप्रावस्थित राजा और वासवदत्ता का मिलन होता है। षष्ठ अंक में महासेन द्वारा भेजे गये चित्रफलक से अवन्तिका का वास्तविक स्वरूप प्रकट होता है। यौगन्धरायण भी परिव्राजक वेष छोड कर अपनी योजना का रहस्योद्घाटन करता है। इस प्रकार राजा और वासवदत्ता के मिलन से नाटक का अंत सुखमय होता है। इस नाटक में कुल 6 अर्थोपक्षेपक हैं जिन में विष्कम्भक, 3 प्रवेशक, चूलिका और। अंकास्य है। संस्कृत नाट्यक्षेत्र के उत्कृष्ट नाटकों में इस नाटक की गणना होती है। वाराणसी के नारायणशास्त्री खिस्ते ने इस की टीका लिखी है। स्वप्नाध्याय - उत्तर तंत्र में उक्त। पार्वती-महादेव संवादरूप। विषय- स्वप्नों के फलाफल का वर्णन । स्वप्रकाशरहस्यविचार - हरिराम तर्कवागीश। स्वमतनिर्णय - ले.- प्रज्ञाचक्षु गुलाबराव महाराज । लेखक ने अपने अनेक ग्रंथों में प्रतिपादित निजी सिद्धान्तों का स्पष्ट कथन किया है। स्मरदीपिका (रतिरत्नदीपिका)- ले.- मीननाथ । विषय- नायक नायिका भेद, नायक लक्षण, आभ्यन्तररति, स्वान्यदाराधिकार, वारनार्यधिकार आदि। स्वरप्रक्रिया-व्याख्या - ले.- रामचंद्र। सिद्धान्तकौमुदी के वैदिकी स्वरप्रक्रिया अंश की व्याख्या। स्वरमेलकलानिधि - ले.- रामामात्य। रचना सन् 1250 में। कर्नाटक पद्धति के रागों का विवरण। 5 अध्याय। 72 मेलकता में रागों का वर्गीकरण लेखक ने किया है। संस्कृत वाङ्मय कोश- ग्रंथ खण्ड/423 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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