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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org राममिलन, राम-लक्ष्मण-सोता की प्रशंसा, जाम्बवंत की शौर्य गाथा आदि का समावेश है। सौहार्दरामायणम्- रूढ परंपरानुसार वैवस्वत मन्वंतर के नवम त्रेतायुग में शरभंग नामक ऋषि ने इसकी रचना की। इसमें कुल 40 हजार श्लोक हैं जिनमें दण्डकारण्य की उत्पत्ति, उसे मिला शाप, राम का दण्डकारण्य गमनोद्देश्य, शूर्पणखा का आगमन, खर-दूषण से युद्ध, रावणमारीच संवाद, कांचनमृग के लिये सीता का हठ, सीता हरण, जटायु युद्ध, रामविलाप, पशुपक्षियों वानरों से संवाद आदि विषयों का समावेश है। स्कन्दपुराणम् - अठारह पुराणों में से एक। यह आकार में सबसे बड़ा है। इसकी श्लोक संख्या 81 हजार है। इसके दो संस्करण उपलब्ध हैं। खंड परम्परा में माहेश्वर, वैष्णव, ब्रह्म, काशी, रेवा, तापी व प्रभास ये सात खंड हैं। इस पुराण के निर्माण विषयक जानकारी प्रभासखंड में बताई है। तदनुसार प्राचीन काल में कैलास शिखर पर शंकर ने पार्वती और ब्रह्मादि देवताओं को स्कंद पुराण सुनाया। बाद में पार्वती ने उसे स्कंद को, स्कंद ने नंदी को, नंदी ने दत्त को, दत्त ने व्यास को और व्यास ने सूत को सुनाया। संहिता परम्परा में सनत्कुमार, सूत, शंकर, वैष्णव, बाह्य तथा सौर संहिताएं हैं। इनमें सूतसंहिता, शिवोपासना विषयक स्वतंत्र ग्रंथ ही है । इसके पूर्वार्ध के तांत्रिक विषयक भाग पर माधवाचार्य ने तात्पर्यदीपिका नामक टीका लिखी है। सूतसंहिता के चार खण्ड हैं- (1) शिव-माहात्म्यखंड, (2) ज्ञानयोगखंड, (3) मुक्तिखंड और (4) यज्ञवैभवखंड। इनमें यज्ञवैभवखंड सर्वाधिक बडा है जिसके पूर्व भाग में 47 अध्याय और उत्तर भाग में 20 अध्याय हैं। उत्तर भाग के प्रथम 12 अध्यायों में ब्रह्मगीता का समावेश है। ज्ञानयोग खंड में हठयोग का विशेष निरूपण है । खण्ड परम्परा में माहेश्वर खंड के दो भाग हैं- केदार खंड और कौमारिका खंड केदारखंड में लिंगमाहात्य, समुद्रमंथन, वृत्रासुरवध, शिवगौरीविवाह, कार्तिकेयजन्म, शिवपार्वती की द्यूत-क्रीडा तथा कौमारिका खंड में महीसागर के संगम का महत्त्व, अप्सराओं का उद्धार, पार्वतीजन्म, सोमनाथ की महत्ता, कौरवपाण्डवयुद्ध, महिषासुरवध, सीताहरण, छावारूप सीता आदि कथाएं हैं। वैष्णवखंड में जगन्नाथ क्षेत्र का महत्त्व, बदरिकाश्रम, तुलसीविवाह, एकादशी, भागवत, वैशाख, अयोध्या, लक्ष्मीनारायण वासुदेव आदि की महत्ता बतलायी गई है। ब्रह्मोत्तर खंड में उज्जयिनी के महाकाल, गोकर्ण क्षेत्र एवं शिवरात्रि व्रत का माहात्म्य, सीमंतिनी व भद्रायु के आख्यान हैं। प्रभासखंड में प्रभास व सोमनाथ क्षेत्र का महत्त्व, रेवाखंड में नर्मदा की उत्पत्ति और उसके तटवर्ती तीर्थक्षेत्रों की जानकारी दी गई है। इस पुराण की रचना इ.स. 7 वीं शताब्दी से 9 वीं शताब्दी के बीच होने का अनुमान विद्वानों द्वारा लगाया गया है। इ.स. 17 वीं शताब्दी में शंकरसंहिता का तामिल भाषा में अनुवाद 1 किया गया। स्कन्दसद्भव- शिवप्रोक्त। श्लोक- 1300 । अध्याय- 18 । प्रमुख विषय- स्कन्द की उत्पत्ति की कथा । इसमें प्रथम अध्याय में शास्त्रसंग्रह हैं, द्वितीय में उत्पत्ति, तृतीय में तन्लोद्धार, चतुर्थ में पूजाविधि, पंचम में अग्निकार्य, षष्ठ में दीक्षाविधि, सप्तम में आचार आदि विषय वर्णित हैं। स्कन्दानुष्ठानसंग्रह इसके लेखक क्रियासंग्रहकार के पौत्र हैं। श्लोक- 4775 | विषय - स्कन्द की पूजा का सविस्तर वर्णन । स्तवकदम्ब - ले. रघुनन्दन गोस्वामी । ई. 18 वीं शती । स्तवचिन्तामणि- (वृत्तिसहित)- मूलकार- भट्टनारायण । वृत्तिकार क्षेमराज विषय- शैव तन्त्र Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्तुतिकुसुमांजलि ले. जगदरभट्ट शैवाचार्य 38 स्तोत्रों का संग्रह । श्लोकसंख्या- 1425। - | - स्तुतिमालिका ले तिरुवेंकट तातादेशिक नेलोर निवासी। स्तुतिमुक्तावली ले. पं. तेजोभानु ई. 20 वीं शती । स्तुतिस्त्रटीका ले परमहंस पूर्णानन्द विषय ककारादि क्रम से पढे गये काली के सहस्र नामों के अर्थ । स्तोत्रकदम्ब ले. प्रा. कस्तूरी श्रीनिवास शास्त्री। स्तोत्रमाला ले. शितिकण्ठ । स्तोत्र रखम् (अपरनाम आलवंदारस्तोत्रम्) ले. आलवंदार ( यामुनाचार्य) यामुनाचार्य के ग्रंथों में यही सबसे अधिक लोकप्रिय ग्रंथ है। इस स्तोत्र में 70 पद्य हैं जिनमें भगवान् के प्रति आत्मसमर्पण के सिद्धान्त का मनोरम वर्णन है। इस स्तोत्र के सरस पद्यों में कविहृदय की भक्ति भावना कूट-कूट कर भरी प्रतीत होती है। विनयपरक सुललित पद्यों के कारण, यह स्तोत्र, वैष्णव समाज में स्तोत्रम् के नाम से विख्यात है। - For Private and Personal Use Only - या 1 स्थललक्षणम्-ले विश्वकर्मा बंगाल में शांतिनिकेतन के विश्वभारती ग्रंथालय में सुरक्षित विषय शिल्पशास्त्र । स्थालीपाकप्रयोग- ले. कमलाकर। (2) ले. नारायण। स्वानविधिसूत्र परिशिष्टम् (अपरनाम स्त्रानसूत्र त्रिकाण्डिकासूत्र) ले. कात्यायन इस पर निम्ननिर्दिष्ट टीकाएँ लिखी है (1) स्नानसूत्रपद्धति कर्कद्वारा (2) खानसूत्रदीपिका, महादेव के पुत्र गोपनाथ द्वारा टीका की टीका- कृष्णनाथ द्वारा । ( 3 ) छाग- याज्ञिकचक्रचूडाचिन्तामणि द्वारा । (4) त्रिमल्लतनय (केशव) द्वारा (5) महादेव द्विवेदी द्वारा। (6) स्नानपद्धति या स्नानविधिपद्धति, याज्ञिक देव द्वारा। (7) खानसूत्रपद्धति हरिजीवन मिश्र द्वारा (लेखक का कथन है कि उसने इस ग्रंथ में अपने भाष्य का आधार लिया है) (8) स्नानव्याख्या एवं पद्धति, अग्निहोत्री हरिहर द्वारा । स्नुषा - विजयम् (एकांकी रूपक) ले सुन्दरराज (जन्म 1841 मृत्यु 1905 ई. में) कथावस्तु उत्पाद्य । समस्याप्रधान । संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड / 419
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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