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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1924 से कुछ समय तक पाक्षिक रूप में प्रकाशित होने के बाद इसका स्वरूप पुनः मासिक हो गया, और लगभग दस वर्षों तक इसका प्रकाशन होता रहा। इसका वार्षिक मूल्य दो रु. था और प्रकाशन स्थल- सुप्रभात कार्यालय ढेढी नीम काशी था। प्रारंभ में इसके संपादक देवीप्रसाद शुक्ल थे किन्तु उनके निधन के बाद उनके पुत्र गिरीश शर्मा इसका संपादन करने लगे। चार वर्षों बाद संपादन का दायित्व केदारनाथ शर्मा सारस्वत ने निभाया। इसमें उच्च कोटि के विद्वानों की रचनाएं प्रकाशित होती थीं। इसके कुछ उल्लेखनीय विशेषांक भी प्रकाशित हुए। सुप्रभातस्तोत्रम् (उषःकालीन बुद्धस्तोत्र) - ले.- सम्राट हर्षवर्धन । जीवन में बौद्ध मत स्वीकृति के पश्चात् अन्तिम दिनों में रचित भगवान् बुद्ध की 24 श्लोकों में प्रशंसा । तिथियां इ.। सुन्दरीमहोदयार्चनपद्धति - श्लोक- 1000। सुन्दरीयजनक्रम - ले.-सच्चिदानन्दनाथ (रामचंद्र भट्ट) श्लोक30001 सुन्दरीरहस्यवृत्ति - ले.-रत्ननाभागमाचार्य। पितामह- मुकुन्द । पिता- नारायण। पटल- 101 विषय- त्रिपुरा की पूजा का सविस्तर वर्णन। सुन्दरीशक्तिदानस्तोत्रम्- आदिनाथ महाकाल द्वारा विरचित महाकालसंहिता के अन्तर्गत काली-काल संवादरूप यह सुन्दरीशक्तिदान नामक कालीस्वरूप मेघासाम्राज्य स्तोत्र है। श्लोक- 5001 विषय- काली की स्तुति । सुन्दरीशक्तिदानाख्य-कालिकासहस्रनाम - सुन्दरीसपर्या - ले.-सभारंजक रामभट्ट। गुरु-श्रीकृष्ण भट्ट। सुपद्मव्याकरणम् - ले.- हृषीकेश भट्टाचार्य। मैथिल पण्डित । यह पद्मनाभ रचित व्याकरण पर टिप्पणीसहित भाष्य है। इसमें शास्त्रीय और लौकिक व्याकरण पद्धति का समन्वय किया है। इस टीका से सुपद्म व्याकरण को प्रतिष्ठा प्राप्त हुई। सप्रकाश-तत्त्वार्थदीप-निबंध - इस ग्रंथ में पांच लेखकों के निबंधों का संग्रह किया गया है। उनका विषय है भागवत की प्रमाणता तथा महापुराणता के विषय में किए जाने वाले संदेहों का निराकरण। निबंध (1) श्रीमद्भागवतस्वरूप विषयक शंकानिरासवादः लेखक- पुरुषोत्तम गोस्वामी (2) श्रीमद्भागवतप्रमाणभास्कर लेखक- अज्ञात। (3) दुर्जनमुखचपेटिका- लेखक गंगाधरभट्ट । इस पर गंगाधर भट्ट के पुत्र कन्हैयालाल ने प्रहस्तिका नामक व्याख्या लिखी है। दुर्जनमुखचपेटिका नामक अन्य एक निबंध रामचंद्राश्रम ने लिखा है। (4) श्रीमद्भागवतनिर्णयसिद्धान्त- लेखक- दामोदर। (5) श्रीमद्भागवताविजयवाद। लेखक- रामकृष्ण भट्ट। वल्लभ सम्प्रदाय में भागवत की मान्यता अत्यधिक है। अतः उसकी प्रमाणता तथा महापुराणता के विषय में प्रस्तुत किये जाने वाले संदेहों का निराकरण विद्वानों ने बड़ी निष्ठा तथा दृढता से किया है। प्रस्तुत कृति भी इसी विषय के लघुकलेवर ग्रंथों में से एक है। इसके लेखक हैं पुरुषोत्तम गोस्वामी। इसमें भागवत के अष्टादश पुराणों के अंतर्गत होने के मत का प्रतिपादन तथा विरुद्ध मत का निरसन किया गया है। इसी प्रकार के 5 अन्य लघु ग्रंथों के साथ इसका प्रकाशन 'सप्रकाशतत्त्वार्थ-दीप-निबंध' के द्वितीय प्रकरण के परिशिष्ट के रूप में किया गया है। प्रकाशन मुंबई में। 1943 ई.। सुप्रभा - ले.-अनन्त। पिता सिद्धेश्वर। विषय- गोविन्द के कुण्डमार्तण्ड नामक ग्रंथ पर एक टीका । 1692 में लिखित । सुप्रभातम् - वाराणसी से सन 1923 में इस पत्र का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। यह अ.भा. साहित्य सम्मेलन का मुख्य पत्र था। सुप्रभातस्वयंवरम्(रूपक) - ले.-डॉ. वीरेंद्रकुमार भट्टाचार्य। कलकत्ता निवासी। सुप्रभा तथा अष्टावक्र की महाभारतीय प्रणयकथा वर्णित। सुप्रभेदप्रतिष्ठातन्त्रम् - श्लोक- 300। इसके चर्या, ज्ञान और क्रिया नाम के तीन पाद हैं। विषय- बलिस्थापन आदि । सुबर्थतत्त्वालोक- ले.-विश्वनाथ सिद्धान्तपंचानन। विषयव्याकरण शास्त्र। सुबोधसंस्कृत-लोकमान्य-तिलक-चरितम्- ले.-कृष्ण वामन चितले। सुबोधा - ले.- भरत मल्लिक। ई. 17 वीं शती। इसी एक मात्र नाम से लेखक ने रघुवंश, मेघदूत, नैषधीयचरित, शिशुपालवध, कुमारसम्भव, किरातार्जुनीयम् तथा गीतगोविन्द पर सुबोध टीकाएं लिखी हैं। सुबोधिनी- (भागवत की टीका) ले. महाप्रभु वल्लभचार्य। पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक। सुबोधिनी संपूर्ण भागवत पर उपलब्ध नहीं। उपलब्ध है केवल प्रथम, द्वितीय, तृतीय, दशम एवं एकादश (पंचम अध्याय के चतुर्थ श्लोक तक) स्कंधों के उपर ही। सुबोधिनी के गंभीर अनुशीलन से ही अन्य स्कंधों पर भी व्याख्या लिखने का संकेत मिल सकता है। यह टीका बडी विशद, विशाल एवं विविध प्रमेय बहुल है। शुद्धाद्वैत के सिद्धान्तों का भागवत के श्लोकों द्वारा समर्थन एवं पुष्टीकरण ही सुबोधिनी का मुख्य उद्देश्य है। यह बड़ी ही गंभीर एवं विवेचनात्मक व्याख्या है। सुबोधिनी की विशिष्टता उसकी अंतरंग परीक्षा से स्पष्ट होती है। श्रीधर ने प्रत्येक स्कंध के आरंभ में उसके मूल विषय का निरूपण किया है, तो वल्लभाचार्य ने किया है उसका विपुल विस्तार। यही नहीं, स्कंधों में निर्दिष्ट अवांतर प्रकरणों का भी बडी गंभीरता से इसमें अध्यायपूर्वक निर्देश किया गया है। सुबोधिनी के अनुसार भागवत के स्कंधों का संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड/413 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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