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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (जीमूतवाहनावदान) जोडकर भूमिका लिखी। तिब्बती अनुवाद सहित इसका संपादन शरच्चन्द्रदास तथा हरिमोहन विद्याभूषण ने किया है। नवीनतम संस्करण डॉ.पी.एल. वैद्य द्वारा प्रकाशित रचना का प्रारम्भ कवि के प्रिय बन्धु रामयश तथा काश्मीरी बौद्ध मिक्षु के आग्रह पर हुआ। यह कृति तिब्बत में विशेष लोकप्रिय हुई। इसकी अत्यन्त सरस कथाएं अन्यत्र भी प्राप्त हैं एवं बहुतांश कथाएं चरित्र प्रधान हैं न कि घटनाप्रधान। लेखक प्रभावी हास्यकथा में प्रवीण है। ग्रंथ शुद्ध सरल संस्कृत भाषा में है। रचनाहेतु-बौद्धधर्म की प्रतिष्ठापना और लोगों में सत्कर्म का प्रचार है। अवदानशतकम् - आचार्य नन्दीश्वर द्वारा संकलित अवदान साहित्य का यह सर्वप्राचीन संग्रह है। इन कथाओं में बुद्धत्व' प्राप्ति के हेतु सम्बद्ध शुभ गुण तथा दुष्कर्म के कारण प्राप्त होने वाली यातनाओं का वर्णन है। इसकी 100 कथाएं दस वर्गों में विभक्त हैं। प्रत्येक वर्ग स्वतंत्र तथा वैशिष्ट्यपूर्ण हैप्रथम तथा तृतीय वर्ग में प्रत्येक बुद्ध का भविष्य कथन, दूसरे और चौथे वर्ग में बुद्ध का अतीत जीवन, पंचम वर्ग में व्रतकथाएं हैं। छठे में सत्कर्म का पण्य फल, सात से दस तक के वर्गों में कथानायकों के अर्हत्व की प्राप्ति का निवेदन है। अंतिम कथा अशोक एवं उपगुप्त के काल से संबद्ध है। इस ग्रंथ का प्रथम अनुवाद चीनी भाषा में ई. 223-253 में हुआ। यह ग्रंथ हीनयान तथा थेरवादी सम्प्रदाय से सम्बद्ध होने से महायान सम्प्रदाय के सिद्धान्तों का इसमें सर्वथा अभाव है। इन कथाओं में कर्मसिद्धान्त, दानमहिमा तथा बुद्धभक्ति का प्रतिपादन प्रमुखता से है। ___ अवदानसाहित्य में बौद्धों के कथा-साहित्य का समावेश होता है। अवदान का अर्थ है संकेत से कथा । अवदानशतक, दिव्यावदान, कल्पद्रुमावदानमाला, अशोकावदानमाला, द्वाविशत्यवदानमाला, भद्रकल्पावदान, विचित्रकर्णिकावदान, अवदानकल्पलता आदि ग्रंथों का अवदानसाहित्य में समावेश है। अवदानशतक हीनयानों का प्राचीन कथासंग्रह है। अवधूतगीता - ले.- गोरखनाथ (गोरक्षनाथ) ई. 11-12 वीं शती। नाथ सम्प्रदाय में प्रमाणभूत ग्रंथ । अवधूतोपनिषद् - एक संन्यासप्रतिपादक उपनिषद् । इसमें 36 मंत्र हैं। सांकृति और दत्तात्रेय के संवादों में यह निर्माण हुआ है। विषय- अवधूत का लक्षण एवं अवधूतचर्या का वर्णन । अवसरसार - ले.-क्षेमेन्द्र । पिता-प्रकाशेन्द्र । पुत्र-सोमेन्द्र । काश्मीर के राजा अनंत की स्तुति में लिखा हुआ यह एक लघुकाव्य है। 3-अविमारक-भासकृत नाटक। संक्षिप्त कथा - नाटक के प्रथम अंक में पुत्री के विवाह के कारण चिंतित राजा कुन्तिभोज, काशिराज द्वारा अपनी कन्या की मंगनी के प्रस्ताव के बारे में निश्चय नहीं कर पाते। तभी उन्हें अंजनगिरि के उद्यान भ्रमण के लिए गई राजकुमारी को उन्मत्त हाथी से बलशाली और स्वयं को अत्यंज कहने वाले किसी युवक द्वारा बचाए जाने का समाचार प्राप्त होता है। द्वितीय अंक में कुरंगी की दासी नलिनिका और धात्री, अत्यंज युवक अविमारक के पास जाकर उसका कुरंगी के साथ मिलन का प्रयत्न करती है। अविमारक रात में राजकल में जाने का निश्चय करता है। तृतीय अंक में चोर वेष में प्रविष्ट अविमारक और कुरंगी का समागम होता है। चतुर्थ अंक में राजा को उक्त प्रणय का भेद खुल जाने के कारण, अविमारक लज्जित होकर पर्वत शिखर से कूद कर आत्महत्या करना चाहता है, किंतु विद्याधर मिथुन उसे रोक कर अपनी अंगूठी देते हैं, जिसे पहन कर अविमारक अदृश्य हो सकता है। पंचम अंक में अदृश्य रूप में अविमारक वियोगी व्याकुला प्राणत्याग के लिए तत्पर कुरंगी की रक्षा करता है। षष्ठ अंक में सौवीरराज का पता लगा कर कुन्तीभोज उन्हें अपने दरबार में बुलाते हैं। सौवीरराज चंडभार्गव के शाप से एक वर्ष तक अत्यंज बन कर रहने की कथा बताते हैं। तभी देवर्षि नारद उपस्थित होकर सौवीर राजकुमार जयवर्मा के साथ करेंगी की बहन का विवाह कराते हैं। इनमें 3 प्रवेशक, 4 चूलिकाएं और 1 अंकास्य है। "अविमारक" में कुल 8 अर्थोपक्षकों का प्रयोग हुआ है। इस नाटक में विष्कम्भक नहा है। अशेषांक रामायणम् - ले.- सुब्रह्मण्य सूरि। इसमें 199 आर्याएं हैं। प्रत्येक आर्या के तीन चरणों मे राम कथा का अंश बताकर अंतिम चरण में तात्पर्य रूप में नीति सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है। अशोक-कानने-जानकी - ले.-सुरेन्द्रमोहन। 20 वीं शती। "मंजूषा" पत्रिका में क्रमशः प्रकाशित यह बालोचित लघुनाटक है। सुबोध भाषा में सीता, मन्दोदरी, त्रिजटा, विकटा और संकटा का संवाद इसमें मिलता है। अशोकावदानमाला - इसका प्रथम कथाभाग अशोक की कथा से युक्त है तथा शेष में उपगुप्त द्वारा अशोक को धार्मिक कथाओं के माध्यम से महायान संप्रदाय की शिक्षा दी है। समय- ई. 6 वीं शती। अशोकारोहिणी कथा - ले. श्रुतसागरसूरि। जैनाचार्य। ई. 16 वीं शती। अशौचदीपिका - ले. गागाभट्ट काशीकर। ई. 17 वीं शती। पिता-दिनकरभट्ट। विषय-धर्मशास्त्र । अशौचनिर्णय - ले. नागोजी भट्ट। ई. 18 वीं शती। पिताशिवभट्ट। माता- सती। विषय- धर्मशास्त्र। अशौचसागर - ले- कुल्लूकभट्ट। ई. 12 वीं शती। विषयधर्मशास्त्र। संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड/19 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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