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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विमलयतीन्द्रम् (नाटक) - ले.-यतीन्द्रविमल चौधुरी। 1961 में अखिल भारतीय वैष्णव सम्मेलन में प्रथम अभिनय । अंकसंख्या सत्रह। रामानुजाचार्य का चरित्र वर्णित । कथासारकांचीपुर के यादव प्रकाश ने किसी शिष्य को उपनिषद् के मंत्र का अर्थ गलत बताया। लक्ष्मण (रामानुजाचार्य) के सही अर्थ बताने पर ईर्ष्यावश यादवप्रकाश उसका वध करने की योजना बनाते हैं। परंतु वे बाद में ब्रह्मसूत्र का वैष्णव भाष्य लिखने की तथा द्राविडाम्नाय के प्रचार की प्रतिज्ञा करते हैं। परन्तु अनादर होने से वे संन्यास लेकर "विमलयतीन्द्र" नाम धारण करते है। फिर यादव प्रकाश उनका शिष्यत्व स्वीकारते हैं। यज्ञमूर्ति और गोष्ठीपूर्ण भी उनके शिष्य बनते हैं। फिर रामानुज दिग्विजय हेतु शिष्य कूरेश के साथ निकलते हैं। चोल-नरेश शैव होने के कारण उन पर अत्याचार करते है। फिर भी उनका कार्य चलते रहता है। विमलातन्त्रम् - हर गौरी संवादरूप। 7 पटलों में पूर्ण । विषय- वीरों का नित्य कृत्य। 7 पटलों के विषय (1) ग्राम्यव्यवहार से स्वकीय स्त्री द्वारा शक्तिसाधना, (2) परकीय स्त्री द्वारा साधना, (3) योगाचार कथन, (4) गौरी-स्तवक्रम के संबंध में प्रश्न और उत्तर। (5) प्रचण्डचण्डिका कवच, (6) कुलाचार के विषय में प्रश्नोत्तर, (7) कुलाचारविवेक। विमलावती - विषय- पूजा, पवित्र, दान, दीक्षा, प्रतिष्ठा इत्यादि विदि। विमलोदयमाला - (या विमलोदय-जयन्तमाला) - यह आश्वलायनगृह्यसूत्र की टीका है। विमानपंक्तिकथा - ले.-श्रुतसागरसूरि। जैनाचार्य। ई. 16 वीं शती। विमुक्ति (प्रहसन)- ले.- डॉ. वेंकटराम राघवन्। रचना सन 1931 में। प्रथम अभिनय मद्रास के धर्मप्रकाश थियेटर में "संस्कृतरंग" के चतुर्थ स्थापना दिवस पर, सन 1963 में। अंकसंख्या- दो। कथासार- पुरुष को पंच तत्त्व, मन, इन्द्रियां तथा आशापाश के द्वारा प्रकृति परवश बनाती है, यही तत्त्व मानवोचित प्रतीकों द्वारा दर्शाया गया है। “विमुक्ति" से आशय है पुरुष का प्रकृति से विमुक्त होना। नायक है ब्राह्मण आत्मनाथ। अन्य पात्र- उसके छह दुःशील पुत्र उलूकाक्ष, कण्डूल, शुण्डाल, चलप्रोथ, दीर्घश्रवा और लटकेश्वर । भरतवाक्यों में प्रतीकों का रहस्योद्घाटन किया है। वियोग-वैभवम् - ले.-म.म. हरिदास सिद्धान्त-वागीश। ई.1876-1961। खण्डकाव्य । विरहवैक्लव्यम् - मूल शेक्सपियर का सानेट क्र. 73 1 अनुवादक महालिंगशास्त्री। विरहिमनोविनोदम् - कवि विनायक। विराविवरणम् - ले.-रामानंद। ई. 17 वीं शती। विराज-सरोजिनी (नाटिका) - ले.-हरिदास सिद्धान्तवागीश । (1876-1961)। रचनाकाल- सन 1900। कलकत्ता से (बंगाब्द 1317 में) प्रकाशित। प्रमुख रस-शृंगार। सरल, नाट्योचित भाषा। सूक्तियों तथा लोकोक्तियों का प्रचुर प्रयोग । "विक्रमोर्वशीय" से प्रभावित। नृत्य-संगीत का बाहुल्य, सभी गीत संस्कृत में। कथासार- मालव-नरेश हरिदश्व, गंधर्वकन्या सरोजिनी पर मोहित है। दानव राजा सुबाह् उससे प्रणय निवेदन करता है। नायिका भयभीत है, इतने में हरिदश्व का सेनापति वीरसिंह पहुंचता है। सुबाहु डरकर भागता है और हरिदश्व का सरोजिनी से समागम होता है। विरुद्धविधिविध्वंस - ले.-लक्ष्मीधर । पिता- मल्लदेव। माताश्रीदेवी। गुरु- भगवद्बोधभारती। गोत्र- काश्यप। सन 1526 में लिखित । ग्रंथ अनेक अधिकरणों में विभाजित है। विषयश्राद्ध, प्रायश्चित्त आदि धार्मिक नियमों के संबंध में विवाद । विरूपाक्षपंचाशिका - श्लोक- 69। विरूपाक्षवसंतोत्सवचंपू • ले.-अहोबल सूरि। ई. 14 वीं शती (उत्तरार्ध)। इन्होंने रामानुजाचार्य के जीवन पर 16 उल्लासों के “यतिराजविजयचंपू' की रचना की थी। प्रस्तुत चंपूकाव्य खंडित रूप में प्राप्त है, और आर.एस. पंचमुखी द्वारा संपादित होकर मद्रास से प्रकाशित हुआ है। ग्रंथ के अंतिम परिच्छेद के अनुसार इसकी रचना पामुडिपट्टन के प्रधानमंत्री के आग्रह पर हुई थी। प्रस्तुत चंपू काव्य 4 कांडों में विभक्त है। इसमें विरूपाक्ष महादेव के वसंतोत्त्सव का वर्णन है। प्रथमतः विद्यारण्य यति (स्वामी) का वर्णन किया गया है, जो विजयनगर साम्राज्य के संस्थापक थे। फिर काश्मीर के भूपाल एवं प्रधान पुरुष राशिदेशाधिपति का वर्णन है। कवि माधव नवरात्र में संपन्न होने वाले विरूपाक्ष महादेव के वसंतोत्सव का वर्णन करता है। प्रारंभिक 3 कांडों में रथयात्रा तथा चतुर्थ कांड में मृगया व माधवोत्सव वर्णित है। अवांतर कथा के रूप में एक लोभी व कृपण ब्राह्मण की रोचक कथा का वर्णन है। इस काव्य में स्थान स्थान पर बाणभट्ट की शैली का अनुकरण किया गया है, किंतु इसमें स्वाभाविकता व सरलता के भी दर्शन होते हैं। नगरों का वर्णन प्रत्यक्षदर्शी के रूप में किया गया है। व्यंगात्मकता एवं वस्तुओं का सूक्ष्म वर्णन इस काव्य की अपनी विशेषता है। विलापकुसुमांजलि - ले.-यदुनंदनदास। विषय- कृष्णकथा। विलापतरंगिणी- ले.- कृष्णम्माचार्य। पिता- रंगनाथ । विलास - ले.-लक्ष्मीनृसिंह। सिद्धान्तकौमुदी पर टीका। विलासकुमारी - ले.-चक्रवर्ती राजगोपाल। एक दीर्घकथा । विलासगुच्छ - ले.- गंगाधरशास्त्री मंगरुलकर, नागपुर निवासी। विवरणम् - ले.-वरदराजाचार्य। प्रक्रियाकौमुदी की टीका। विवरणटीका - ले.-पद्मपादाचार्य। ई. 8 वीं शती। 338 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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