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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जटिला और भारुण्डा द्वारा विघ्न डालने से वे असफल हो है। यह ग्रंथ बुद्धकथाओं के विस्तार का संक्षिप्त इतिहास ही है। जाते हैं। द्वितीय अंक में कंस के द्वारा प्रेषित शंखचूड राधा इसके तीसरे अध्याय में बुद्ध के काल, देश, स्थान और का अपहरण करता है। श्रीकृष्ण शंखचूड को मार कर राधा जाति में अवतारवरद के उदय पर विशेष रूप से प्रकाश की रक्षा करते हैं। तृतीय अंक में कंस के आदेश से अक्रूर डाला गया है। इसमें बताया गया है बुद्ध सृष्टि के हर एक श्रीकृष्ण और बलराम को लेकर मथुरा जाते हैं। कृष्ण के परिवर्तनकाल में केवल जम्बुद्वीप में ही अवतार लेते हैं। विरह से गोपियां रोने लगती हैं। विरहाकुल राधा विशाखा के मध्यदेश उसके अवतार हेतु उपयुक्त स्थान है। वहां वे ब्राह्मण साथ यमुना में कूद कर प्राण त्याग करती है और सूर्यलोक अथवा क्षत्रिय कुल में वे अवतीर्ण होते हैं। वैकुंठ से अवतीर्ण में चली जाती है। चतुर्थ अंक में कृष्ण कंसवध करके द्वारका होने के पूर्व जिस प्रकार विष्णु स्वर्गीय देवताओं से विचार जाते हैं। इधर गोकुल से चन्द्रावली को उसका भाई रुक्मी विमर्श करते हैं, उसी प्रकार बुद्ध भी अवतीर्ण होने के पूर्व कुण्डनीपुर ले जाते है। तभी नरकासुर सोलह हजार गोपियों तृषित लोक में सभी देवी-देवताओं, नाग, बोधिसत्व, अप्सरा का अपहरण करके उन्हें कारागार में डाल देता है। पंचम आदि गणों से विमर्श कर अपने अवतार की सिद्धता उन्हें अंक में श्रीकृष्ण चन्द्रावली का अपहरण करके उससे विवाह देते हैं। विष्णु की भांति ही बुद्ध के अवतार ग्रहण करने पर करते हैं। षष्ठ अंक में भगवान् सूर्य राधा को सत्यभामा के ___ भूतल पर मनोरम, चैतन्यमय व सुख का वातावरण छा जाता है। रूप में सत्राजित को देते हैं। सत्राजित् उसे रुक्मिणी (चन्द्रावली) ___ "ललितविस्तर" में अनेक स्थानों पर बुद्ध को नारायण का के पास रख देते हैं और उसे स्यमंतक मणि की प्राप्ति तक अवतार बताया गया है। इस ग्रंथ की गाथाओं और कथाओं गुप्त रूप में रहने को कहते है। सप्तम अंक में सूर्य के के आधार पण ही अश्वघोष ने बुद्धचरित नामक प्रख्यात श्वसुर विश्वकर्मा द्वारका में नववृन्दावन का निर्माण कर राधा महाकाव्य की रचना की है। की प्रतिमा बनाते हैं जिसे देख कृष्ण मुग्ध हो जाते हैं। अष्टम ललितविस्तर - ले.-हरिभद्रसूरि । ई. 8 वीं शती। अंक में रुक्मिणी, सत्यभामा और कृष्ण के प्रेम को देखकर ललिता - ले.- वेंकटकृष्ण तम्पी। सन 1924 में प्रकाशित । सत्यभामा से ईर्ष्या करने लगती है। श्रीकृष्ण द्वारा स्यमन्तक इस आख्यायिका में राजपूत व इस्लामी युग का अंकन आधुनिक मणि के प्राप्त होने पर सत्यभामा अपने भेद को खोलकर शैली में किया है। स्वयं को राधा बताती है। चन्द्रावली यह जानकर प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण के साथ उसका विवाह कर देती है। नंद, यशोदा ललिताक्रम (नामान्तर -ललितापद्धति) - श्लोक- लगभगऔर देवता भी आकर इन दोनों को आशीर्वाद देते हैं। 7801 __ललितमाधव में कुल 42 अर्थोपक्षेपबक हैं। इनमें 8 ललिताक्रमदीपिका - ले.- योगीश । श्लोक- लगभग- 1080 । लिपिकाल 18171 वि. विषय- ललिता देवी की पूजाविधि विष्कम्भक और 34 चूलिकाएं हैं। का विस्तारपूर्वक प्रतिपादन । ललितराघवम् - कवि- श्रीनिवास रथ । ललितातिलकम् (सटीक) - ले. काशीनाथ । श्लोक- लगभगललितविग्रहराज - ले.-सोमदेव । पिता- राम । ई. 11 वीं शती।। 17951 ललितविस्तरम् (अपरनाम वैपुल्यसूत्रः महानिदान, महाव्यूह) ललितात्रिशती - श्रीशंकराचार्यकृत टीका सहित। - लेखक- अज्ञात। रचनाकाल सम्भवतः ई. पू. प्रथम शती। ललितानित्यपूजाविधि - ले.-सहजानन्दनाथ। श्लोक 500। चीनी तथा तिब्बती भाषा में अनेक रूपान्तर उपलब्ध हैं। प्रथम ललितानित्योत्सवनिबन्ध - ले.- उमानन्दनाथ। भारतीय संस्करण राजेन्द्रलाल मित्र द्वारा कलकत्ता से। द्वितीय एफ, लेफमेन द्वारा दो भागों में। यह महायान सम्प्रदाय की ललितापरिशिष्टम् - त्रिपुरा के मन्त्र और उनके ऋषि, देवता, श्रेष्ठ कृति है। वर्ण्य विषय- लोकोत्तर जीव के रूप में बुद्ध विनियोग आदि का प्रतिपादन करते हुए मन्त्रों के नाम दिये गये हैं। जीवन का वृत्तान्त । गद्यपद्यमय रचना। इसमें प्राचीन तथा ललितापूजनपद्धति (कादिमतानुसार) - श्लोक- 400। नवीन अंशों का संयोजन होने से यह एक लेखक की कृति ललितापूजनविधि - श्लोक- 500। नहीं मानी जाती। यह विशद संग्रह के रूप में है। आचार्य ललितापूजा - ले.-उमानन्दनाथ। श्लोक - लगभग 400। नरेंद्रदेव के मतानुसार यह ग्रंथ हीनयानीयों के किसी प्राचीन ललितार्चनचन्द्रिका - ले.-सच्चिदानन्दनाथ (अथवा सुन्दराचार्य) ग्रंथ का रूपांतर है। इस ग्रंथ से बुद्ध के जीवन के क्रमिक 25 प्रकाशों में पूर्ण। श्लोक- 5000। विषय- प्रातःकाल विकास का पता चलता है। गौतम बुद्ध के जन्म से लेकर निष्क्रमण विधि, तान्त्रिक स्नान, संध्यावन्दन, सूर्यार्थ्यदान द्वारा धर्मचक्र प्रवर्तन की घटनाओं का इसमें समावेश है। इसमें पूजा आदि की विधि, पूजा प्रारंभ, भूतशुद्धि, परिवर्त नामक 27 अध्याय हैं। बुद्ध को अवतारी पुरुष माना प्राण-प्रतिष्ठा,मातृकान्यास, श्रीचक्रन्यास आदि न्यासविधियाँ, गया है। इस ग्रंथ पर वैष्णव अवतारवाद का पर्याप्त प्रभाव करशुद्धि, मूलविद्या, महाषोढान्यास, मुद्राविचार, पात्रासादन, संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 315 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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