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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 2) ले.- नारायण। पिता- रामेश्वर । 3) ले.- शंकर । पिता- बल्लालसूरि । ई. 18 वीं शती। रुद्रानुष्ठानप्रयोग- ले.- खण्डभट्ट अयाचित । पिता - मयूरेश्वर । रुद्रार्चनचन्द्रिका- ले.- शिवराम। रुद्रार्चनमंजरी- ले.- वंदारूराय। रुद्रोपनिषद्- इस शैव उपनिषद् में शिवोपासना की ऐसी महिमा बतायी गयी है कि शिवलिंग की पूजा करने वाला चांडाल, पूजा न करने वाले ब्राह्मण से श्रेष्ठ है। शिव को विश्वव्यापी पुरुष, प्राण, गुरु और संरक्षक बताया गया है। रूपनारायणीय-पद्धति - ले.- उदयसिंह रूपनारायण । शक्तिसिंह के पुत्र। ई. 15-16 वीं शती। इसमें तुलापुरुष आदि षोडश महादानों, कूप, वापी, तडाग, विविध नवग्रहहोम, अयुतहोम, लक्षहोम, दुर्गोत्सव का वर्णन है। रूपनिर्झर काव्यम्- ले.- हरिचरण भट्टाचार्य । जन्म- 1878।। रूपमाला - ले.- विमल सरस्वती। विषय-व्याकरण। ई. 15 वीं शती। रूपसिद्धि - ले.- मुनि दयालपाल। शाकटायन व्याकरण सूत्रों के आधार पर रचित एक ग्रंथ। समय वि. सं. 1082 के लगभग। इसके अतिरिक्त शाकटायन टीका (भावसेन विद्यदेव कृत) तथा प्रक्रियासंग्रह (अभयचन्द्राचार्य कृत) ये दो प्रक्रिया ग्रंथ अप्राप्य हैं। रूपावतार - ले.- धर्मकीर्ति । विषय - पणिनीय व्याकरण।। रुबायत ऑफ उमरख्ययाम् - संस्कृत अनुवाद कर्ता- हरिचरण भट्टाचार्य। 2) ले.- प्रा. एस. आर. राजगोपाल । 1940 में लिखित । रेखागणितम् - ले.- नृसिंह (बापूदेव) शास्त्री । ई. 19 वीं शती। रोगनिदानम्- ले.- धन्वतरि।। रोगशान्ति - बोध्यायन कथित । श्लोक 198 | विषय- प्रतिपद् आदि तिथियों और भिन्न नक्षत्रों के दिन आदि की उत्पत्ति होने पर कितने दिनों तक रोग भोग करना पड़ता है इसका प्रतिपादन किया गया है और प्रत्येक रोग की शान्ति का प्रकार भी बतलाया गया है। रोगहरचिन्तामणि - इस में वे मन्त्र प्रतिपादित हैं जिनके जप से रोगों की निवृत्ति होती है। ये मन्त्र वामकेश्वर तन्त्र से गृहीत हैं। रोचनानन्दम् (रूपक)- ले.- वल्लीसहाय। ई. 19 वीं शती। इसमें रूक्मवान् (कृष्ण के श्यालक) की कन्या रोचना तथा कृष्णपौत्र अनिरुद्ध की प्रणयकथा वर्णित है। रुक्मवान् कृष्ण का वैरी होने का कारण विवाह में बाधा डालता है, इसके अनन्तर का अंश अप्राप्य । संस्कृत के साथ प्राकृत का यथोचित प्रयोग किया है। रोमावलीशतकम् - ले.- विश्वेश्वर पाण्डेय। पटिया (अलमोडा जिला) ग्राम के निवासी। ई. 18 वीं शती। पूर्वार्ध काव्यमाला में प्रकाशित। लंकावतारसूत्रम् (सद्धर्मलंकावतारसूत्रम्) - ले.- अज्ञात । दूसरे परिवर्त की पुष्पिका में इसे “षट्त्रिंशत्साहस्र" कहा है अर्थात् इसमें 36000 श्लोक हैं। यह सूत्र विज्ञानवादी महायान सिध्दान्तों का प्रकाशक तथा मौलिक महत्त्वपूर्ण रचना है। विज्ञानवाद का प्रादुर्भाव शून्यवाद की आत्यंतिकता का खण्डन करने हेतु हुआ। उसके विविध रूपों का व्याख्यान इसमें है। ___10 परिवों में विभक्त, इस ग्रथं में रावण को सध्दर्म का उपदेश स्वयं तथागत बुध्द ने उसके अन्यान्य प्रश्नों के उत्तर रूप में किया है। 108 विषय प्रश्नोत्तर रूप में चर्चित हैं। मासांशन निषेध यहीं सर्वप्रथम चर्चित है तथा सर्प, प्रेत, राक्षसादि से रक्षण का भी निर्देश है। दशम परिवर्त में 884 गाथाओं में विज्ञानवाद का शिलान्यास है जिसका पल्लवित तथा परिष्कृत रूप मैत्रयनाथ के सूत्रबद्ध सिद्धान्तों में दीखाता है। इसके समीक्षणादि कार्य अनेक विद्वानों ने (विशेषतः जपानी) किये। 1,9 तथा 10 परिवर्त संभवतः बाद में जुड़े हैं, मूल संस्कृत प्रति तीसरे चीनी अनुवाद पर आधारित है जो 700-704 ई. में शिक्षानन्द ने किया है, इसके पूर्व दो अनुवाद हुए थे। यह संभवतः चतुर्थ शती की रचना है। अनेक भारतीय दार्शनिक तथा विद्वानों का भविष्य कथन के रूप में उल्लेख महत्त्वपूर्ण है, तृतीय परिवर्त में आत्मविरुद्ध वचनों पर विचार है, तदनुसार समस्त गोचर पदार्थ स्वप्नवत् भ्रान्ति मात्र है, चित्त मात्र सत्य तथा निराभास तथा निर्विकल्प है। यह रचना गद्यपद्यमय तथा सरल शैली में नाटकीय रूप में विवेचनात्मक है। लक्षणदीपिका - ले.- गौरनाथ। ई. 15 वीं शती (पूर्वार्ध)। विषय- साहित्य, संगीत तथा नृत्य। लक्षणप्रकाश - ले.- मित्रमिश्र। यह वीरमित्रोदय ग्रंथ का एक भाग है। चौखम्भा संस्कृत सीरीज में प्रकाशित। विषयधर्मशास्त्र। लक्षणरत्नमालिका - ले.- नारोजि पण्डित । विश्वनाथ के पुत्र । वर्णाश्रमाचार, दैव, राज, उद्योग, शरीर पर पांच पद्धतियों में प्रतिपादन। लगता है, यह लेखक के स्वकृत, लक्षणशतक की एक टीका है। लक्षणव्यायोग - ले.- डॉ. वीरेन्द्रकुमार भट्टाचार्य । जन्म-1917 । विषय- नक्सलवादी आंदोलन की चर्चा । लक्षणशतकम् - ले.- नारोजि पंडित । लक्षणसमुच्चय - ले.- हेमाद्रि। लक्षणसारसमुच्चय - विषय- शिवलिंग के निर्माण के नियम। 32 प्रकरणों में पूर्ण। लक्षहोम-पद्धति - (1) ले.- काशीनाथ दीक्षित। पिता 312 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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