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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विश्राम। छन्दोगों के लिए। रुद्रजपसिद्धान्तशिरोमणि - ले.- राम अग्निहोत्री। श्लोक64001 रुद्रपद्धति (या रुद्रकारिका) - 1) ले.- परशुराम जो औदीच्य ब्राह्मण थे। महारुद्र के रूप में शिवपूजा का वर्णन है। रुद्रजपप्रशंसा, कृण्डमण्डप लक्षण, पीठपूजाविधि, न्यासविधि पर कुल 1028 श्लोक हैं। 1458 ई. में प्रणीत। 2) इसी विषय पर एक अन्य छोटा निबंध। दोनों की भूमिका कुछ अंश में समान है। 1478-1643 ई. के बीच प्रणीत । 3) ले.- विश्वनाथ के पुत्र अनन्त दीक्षित, बडौदा। 1752-3 ई.। 4) ले.- नारायणभट्ट। पिता- रामेश्वरभट्ट । 5) ले.- आपदेव। 6) ले.- काशी दीक्षित । पिता- सदाशिव। (अपरनाम-रुद्रानुष्ठान पद्धति तथा महारुद्रपद्धति । 7) ले.- भास्कर दीक्षित । रामकृष्ण के पुत्र । शांखायनगृह्य के अनुसार। 8) ले.- विश्वनाथ । पिता- शम्भुदेव । माध्यन्दिन शाखियों के लिए। 9) ले.- रेणुक। ई. 1682 में प्रणीत । रुद्रयामलम् (रुद्रयामलतन्त्रम्) - भैरव-भैरवी (उमा-महेश्वर) संवादरूप। भैरव प्रश्न कर्ता और भैरवी उत्तर देने वाली है। यह अनुत्तर तन्त्र और उत्तरतन्त्र भेद से दो भागों में विभक्त है। दोनों में कुल मिलाकर 54 पटल हैं- श्रीयामल, विष्णु यामल, भक्तियामल, ब्रह्मयामल इत्यादि इन सब यामलों का उत्तरकाण्ड रूप रुद्रायमल है। रुद्रयामल (उत्तरषट्क) - रुद्रयामल तन्त्र । उमा- महादेव संवादरूप। अनुत्तर और उत्तर नामक दो षट्कों में विभक्त है। उत्तर षट्क छह पटलों में पूर्ण है। धातुकल्पों का प्रतिपादक तंत्र। इसके अन्त में सुवर्ण की प्रशंसा दी गई है। विषयषट्चक्र ध्यान, त्रिपुरा के मन्त्रों का निर्णय, कामतत्त्वसाधन, त्रिपुरा का ध्यान सिद्धियां और विद्याकोष। श्लोक- संभवतः सवा लाख। रुद्रविधानम् - ले.- कात्यायन । विषय- कर्मकाण्ड। . रुद्रविधानपद्धति - ले.- काशीनाथ दीक्षित । सदाशिव दीक्षित के पुत्र। 2) ले- चन्द्रचूड। रुद्रविधि - विषय- न्यासपूर्वक रुद्र की जप, होम, पूजा विधि । रुद्रविलासनिबन्ध- ले. नन्दन मिश्र । रुद्रव्याख्यानम् - ले.- श्लोक- 427। रुद्रसूत्रम् (नामान्तर-रुद्रयोग) - ले.- अनन्त देव। पिता -उध्दव। काशी-निवासी। रुद्रस्नानविधि - (या रुद्रस्नानपद्धति) - ले.- रामकृष्ण। नारायण के पुत्र। ई. 16 वीं शती। रुद्रहृदयोपनिषद् - ले.- एक शैव उपनिषद् जो कृष्ण यजुर्वेद में है। इस में अनुष्टुभ् छंद के 52 श्लोक हैं। रुद्र को सभी देवताओं की आत्मा बताया गया है। अतः रुद्र की उपासना से सभी देवता सन्तुष्ट होते हैं। इस उपनिषद् में शैव और वैष्णव सम्प्रदायों की एकता प्रस्थापित की गई है। रुद्राक्षकल्प - शिव-पार्वती संवादरूप। विषय- रुद्राक्ष की उत्पत्ति, उसके धारण का फल आदि। रुद्राक्ष-जाबालोपनिषद् - सामवेद से सम्बद्ध एक शैव उपनिषद्। भूखंड मुनि द्वारा कालाग्निरुद्र को रुद्राक्ष की उत्पत्ति विषयक जानकारी बतलायी गई। इस में रुद्राक्ष निर्मिति, रुद्राक्ष प्रभाव आदि का विवेचन है। रुद्राक्ष की उत्पत्ति विषयक गाथा इस प्रकार बताई जाती हैं : त्रिपुरासुर को मारने के लिये जब कालाग्निरुद्र ने ध्यानार्थ अपनी आखें बंद की तब उन आखों से जो आंसू बाहर निकले वही रुद्राक्ष बने और जब आंखे खोली तब निकले हुए आंसूओं से रुद्राक्ष के वृक्ष पैदा हुए। रुद्राक्ष धारण तथा इस उपनिषद् के पठन की फलश्रुति विषयक जानकारी भी इसमें दी गई है। रुद्राक्षफलम् - शिव-गौरी संवादरूप। विषय- रुद्राक्ष धारण से होने वाले फल आदि का कथन । रुद्रागम - 1) किरण के मतानुसार अष्टादश (18) रुद्रागम :विजय, पारमेश, निःश्वास, प्रोद्गीत, मुखबिम्ब, सिद्धमत, सन्तान, नारसिंह, चन्द्रहास, भद्र स्वायंभुव, विरज, कौरव्य, मुकुट, किरण, कलित, आग्नेय और पर। 2) श्रीकण्ठी के अनुसार अष्टादश (18) रुद्रागमः- विजय, निःश्वास, मद्गीत, मुखबिम्ब, सिद्ध, सन्तान, नारसिंह, चन्द्रांशु, वीरभद्र, आग्नेय, स्वायंभुव, विसर, रौरव, विमल, किरण, ललिता और सौरभेय। रुद्राध्याय - कृष्ण यजुर्वेद की तैत्तिरीय संहिता के चौथे कांड में यह मंत्रसमूह आया है जिसे रुद्र अथवा शतरुद्रीय भी कहा जाता है। इसके नमक और चमक दो भाग हैं। प्रत्येक भाग में 11 अनुवाक हैं। प्रथम भाग में "नमः" शब्द बार बार आने से उसे “नमक' और दूसरे भाग में “च में" शब्द के बार बार प्रयोग से उसे "चमक" कहा गया है। शुक्ल यजुर्वेद में भी यह अध्याय आया है। रुद्र के विविध नाम. रूपों, गुणों और व्याप्ति का विवेचन इसमें है। रुद्रसूक्त को कर्म और ज्ञान- दोनों मार्गों के लिये उपयोगी निरूपित किया गया है। शंख, याज्ञवल्क्य, अत्रि व अंगिरस् के मतानुसार रुद्राध्याय के पठन से सकल पातकों का नाश होता है। शैवों के साथ वैष्णव सम्प्रदायों ने भी रुद्राध्याय की महत्ता स्वीकार की है। रुद्रानुष्ठानपद्धति - ले.- सर्वज्ञ कुल के मंगलनाथ। यह प्रधान रूप से महार्णव पर आधारित है। संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 311 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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