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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ई. 18 वीं शती। सर्गसंख्या 201 हुआ। इस तरंग में 1001 ई. तक की घटनाएं 1731 पद्यों राघवेन्द्रविजयम् - ले.- नारायण कवि। विषय- माध्व संप्रदायी में वर्णित हैं। कवि, राजा हर्ष की हत्या तक का वर्णन इस आचार्य राघवेन्द्र का चरित्र । सर्ग में करता है। अंतिम तरंग अत्यंत विस्तृत है तथा इसमें राघवोल्लासम् - ले.- पूज्यपाद देवानन्द । 3449 पद्य हैं। इसमें कवि उच्छल के राज्यारोहरण से लेकर 2) ले.- अद्वैतराम भिक्षु । अपने समय तक की राजनीतिक स्थिति का वर्णन करता है। इस विवरण से ज्ञात होता है कि "राजतरंगिणी" में कवि ने राजकल्पगुम - ले.- राजेन्द्र विक्रमदेव शाह। 14 पटलों में । पूर्ण। विषय - दीक्षा-प्रयोग, पुरश्चरण-निर्णय, द्वारपूजादि अत्यंत लंबे काल तक की घटनाओं का विवरण दिया मातृकान्यासान्त, पीठपूजादि लोकपालान्त पूजा कथन, अग्नि का है। इसमें सभी विवरण जनश्रुतियों को आधार मानकर बनाये गये हैं। पर जैसे-जैसे वे आगे बढ़ते गए वैसे वैसे उनके प्रादुर्भाव, हवन, यजुर्वेद विधानोक्त धनुर्वेद मंत्रदीक्षा प्रकरण, विवरणों में ऐतिहासिक तथ्य आ गये हैं और कवि वैज्ञानिक पूजापटल इ.। ढंग से इतिहास प्रस्तुत करने की स्थिति में आ गये हैं। ये राजकौस्तुभ (अपर नाम राजधर्मकौस्तुभ) - ले.- अनंत विवरण पौराणिक या काल्पनिक न होकर विश्वसनीय व प्रामाणिक देवभट्ट । पिता- आपदेव । ई. 17 वीं शती । प्रतिष्ठान (महाराष्ट्र) हैं। हिंदी अनुवाद सहित राजतरंगिणी का प्रकाशन पंडित निवासी। राजनीति-शास्त्र का प्रसिद्ध निबंध-ग्रंथ। 4 खंडों में (जिन्हें दीधिति कहा गया है) विभक्त । प्रथम दीघिती में 16 पुस्तकालय, वाराणसी से हो चुका है। अध्याय, द्वितीय में 12 अध्याय, तृतीय में 25 अध्याय, और ___ कल्हण के इस महाकाव्य में काव्यशास्त्रीय गुणों का अत्यंत संयत रूप से ही प्रयोग किया गया है। कथावस्त के विस्तार चतुर्थ दीघिती में 35 अध्याय हैं। इस प्रकार इसमें कुल 88 अध्याय हैं जिनमें राजधर्म-विषयक विविध पद्धतियां वर्णित व वर्ण्य विषय की विशदता के कारण ही कवि ने अलंकारों हैं। इस निबंध की रचना का प्रमुख उद्देश्य है "राजाओं को एवं विचित्र प्रयोगों से स्वयं को दूर रखा है। "राजतरंगिणी" उनके व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक कर्त्तव्यों के विधिवत् पालन में इतिहास का प्राधान्य होने के कारण इसकी रचना वर्णनात्मक हेतु पथप्रदर्शन एवं निर्देशन"। अनंतदेव चंद्रवंशीय राजा शैली में हुई है; पर यत्र तत्र आवश्यकतानुसार, वार्तालापात्मक व संभाषणात्मक शैली का भी आश्रय लिया गया है। कहीं-कहीं बहादुरचंद्र के सभापंडित थे। उन्हीं के आदेश से इस ग्रंथ की रचना हुई है। अनंत देव ने राजधर्म के पूर्वस्वीकृत सिद्धांतों शैलीगत दुरूहता दिखाई पडती है परंतु ऐसे स्थल बहुत ही कम हैं। राजतरंगिणी में शांत रस को रसराज मानकर उसका का समावेश करते हुए “राजधर्म कौस्तुभ' की रचना की है। वर्णन किया गया है। (राज, 1/37 व 1/23)। अलंकारों राजतरंगिणी - ले.-महाकवि कल्हण। संस्कृत का उल्लेखनीय के प्रयोग में कवि ने सराहनीय कौशल प्रदर्शित किया है ऐतिहासिक महाकाव्य। इसमें 8 तरंग हैं जिनमें काश्मीर के और नये-नये उपमानों का प्रयोग कर अपने अनुभव की नरेशों का इतिहास वर्णित है। कवि ने प्रारंभ काल से लेकर _ विशालता का परिचय दिया है। अपने समकालीन (12 वीं शताब्दी) नरेश तक का वर्णन इसमें किया है। इसकी प्रथम तरंग में 53 नरेशों का वर्णन राजतरंगिण्यां चित्रिता भारतीया संस्कृति :- ले.- डॉ. सुभाष है। यह वर्णन पौराणिक गाथाओं पर आधारित है तथा उसमें वेदालंकार। शोधप्रबंध। मूल्य-80 रु. । कल्पना का भी आश्रय लिया गया है। इसका प्रारंभ विक्रमपूर्व राजधर्मकौस्तुभ (देखिए राजकौस्तुभ) - ले.- अनन्त 12 सौ वर्ष के गोविंद नामक राजा से हुआ है जिसे कल्हण देवभट्ट प्रतिष्ठानवासी। विषय- पौराणिक मंत्रों संहित राज्यभिषेक युधिष्ठिर का समसामयिक मानते हैं। इन वर्णनों में कालक्रम की विधि तथा प्रयोग। पर ध्यान नहीं दिया गया है और न इनमें इतिहास व पुराण राजधर्मसारसंग्रह - ले.- तंजौर के अधिपति तुलाजिराज में अंतर ही दिखाया गया है। चतुर्थ तरंग में कवि ने भोसले। सन् 1765-1788 । कर्कोट-वंश का वर्णन किया है यद्यपि इसका भी प्रारंभ राजनीति - ले.-भोज। 2) ले.- हरिसेन । काशीनिवासी। 3) पौराणिक है, पर आगे चलकर इतिहास का रूप मिलने लगा ले.- देवीदास। है। 600 ई. से लेकर 855 तक दुर्लभवर्धन से अनंगपीड तक के राजाओं का इसमें वर्णन है। इस वंश का अंत राजनीतिप्रकाश - ले.-रामचंद्र अल्लडीवार । सुखवर्मा के पुत्र अवंतीवर्मा द्वारा पराजित होने के बाद हो 2) ले.- मित्र-मिश्र। (वीरमित्रोदय ग्रंथ का एक अंश)। जाता है। 5 वीं तरंग से वास्तविक इतिहास प्रारंभ होता है चौखंबा संस्कृत सीरीज द्वारा प्रकाशित । जिसका आरंभ अवंतीवर्मा केवर्णन से होता है। 6 वी तरंग राजनीतिशास्त्रम् - ले.- चाणक्य। 8 अध्याय एवं लगभग में 1003 ई. तक का इतिहास वर्णित है जो रानी दिद्दा के 566 श्लोक। भतीजे से प्रारंभ होता है और जिससे लौर वंश का प्रारंभ राजपुत्रागमनम् - ले.- पं. हृषीकेश भट्टाचार्य। 298 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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