SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 314
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir की हत्या करने से तथा राजकुमारी प्रियकर के साथ भाग जाने से विरत हो गयी, तब वह प्रभावित होता है और अपने राज्य में संगीत पर से निर्बंध हटा देता है। राघवचरितम् - ले.-सीताराम पर्वणीकर। ई. 18 वीं शती।। जयपुरनिवासी महाराष्ट्रीय पंडित। 2) ले.- आनन्द नारायण (पंचरत्न कवि) ई. 18 वीं शती। सर्ग- 12 । राघवनैषधीयम् - ले.- हरदत्त। पिता- जयशंकर। ई. 15 वीं शती। इस काव्य में केवल दो सर्गों में श्लिष्ट रचना द्वारा राम और नल की कथा का निवेदन है। राघव-पांडवीयम् (श्लेषमय महाकाव्य) - ले.- माधवभट्ट । कविराज उपाधि से प्रसद्धि । पिता- कीर्तिनारायण। इस महाकाव्य में कवि ने आरंभ से अंत तक एक ही शब्दावली में रामायण और महाभारत की कथा कही है। कवि ने प्रस्तुत काव्य में खयं को सुबंधु तथा बाणभट्ट की श्रेणी में रखते हुए अपने को "भंगिमामयश्लेष-रचना" की परिपाटी में निपुण कहा है तथा यह भी विचार व्यक्त किया है कि इस प्रकार का कोई चतुर्थ कवि है या नहीं इसमें संदेह है। 1/41/। इस महाकाव्य में 13 सर्ग हैं। सभी सर्गों के अंत में "कामदेव" शब्द का प्रयोग किया गया है क्यों कि इसके रचयिता जयंतीपुर में कादंब-वंशीय राजा कामदेव के (शासनकाल 1182 से 1187 तक) कवि थे। इसमें प्रारंभ से लेकर अंत तक रामायण व महाभारत की कथा का श्लेष के सहारे निर्वाह करते हुए राम पक्ष का वर्णन युधिष्ठिर पक्ष के साथ एवं रावण पक्ष का वर्णन दुर्योधन पक्ष के साथ किया गया है। ___ "राघव-पांडवीय" में महाकाव्य के सारे लक्षण पूर्णतः घटित हुए हैं। राम व युधिष्ठिर धीरोदत्त नायक हैं तथा वीर रस अंगी है। यथासंभव सभी रसों का अंगरूप से वर्णन है। ग्रंथारंभ में नमस्क्रिया के अतिरिक्त दुर्जनों की निंदा एवं सज्जनों की स्तुति की गई है। संध्या, सूर्येदु मृगया शैल, वन एवं सांगर आदि का विशद वर्णन है। विप्रलंभ, संभोग श्रृंगार, स्वर्गनर्क, युद्धयात्रा, विजय, विवाह, मंत्रणा, पुत्र-प्राप्ति तथा अभ्युदय का इस महाकाव्य में सांगोपाग वर्णन किया गया है। इसके प्रारंभ में राजा दशरथ एवं राजा पंडु दोनों की परिस्थितियों में साम्य दिखाते हुए मृगयाविहार, मुनि-शाप आदि बातें बडी कुशलता से मिलाई गई हैं। पुनः राजा दशरथ व राजा पंडु के पुत्रों की उत्पत्ति की कथा मिश्रित रूप में कही गई है। तदनंतर दोनों पक्षों की समान घटनाएं वर्णित हैं। विश्वामित्र के साथ राम का जाना और युधिष्ठिर का वारणावत नगर जाना, तपोवन जाने के मार्ग में दोनों की घटनाएं मिलाई गई हैं। ताडका और हिंडिबा के वर्णन में यह साम्य दिखाई पडता है। द्वितीय सर्ग में राम का जनकपुर के स्वयंवर में तथा युधिष्ठिर का पांचाल-नरेश द्रुपद के यहां द्रौपदी के स्वयंवर में जाना वर्णित है। फिर राजा दशरथ व युधिष्ठिर के यज्ञ करने का वर्णन है। पश्चात् मंथरा द्वारा राम के राज्यापहरण और द्यूतक्रीडा के द्वारा युधिष्ठिर के राज्यापहरण की घटनाएं मिलाई गई है। अंत में रावण के दसों शिरों के कटने तथा दुर्योधन की जंघा टूटने का वर्णन है। अग्नि-परीक्षा से सीता का अग्नि से बाहर होने एवं द्रौपदी का मानसिक दुःख से बाहर निकलने के वर्णन में साम्य स्थापित किया गया है। इसके पश्चात् एक ही शब्दावली में राम व युधिष्ठिर के राजधानी लौटने तथा भरत एवं धृतराष्ट्र से मिलने का वर्णन है। कवि ने राघव और पांडव पक्ष के वर्णन को मिलाकर अंत तक काव्य का निर्वाह किया है परंतु समुचित घटना के अभाव में कवि उपक्रम के विरुद्ध जाने के लिये बाध्य हुआ है। उदा. 1) रावण के द्वारा जटायु की दुर्दशा से मिलाकर भीम के द्वारा जयद्रथ की दुर्दशा का वर्णन। 2) मेघनाद के द्वारा हनुमान् के बंधन से, अर्जुन के द्वारा दुर्योधन के अवरोध का मिलान। (3) रावण के पुत्र देवांतक की मृत्यु के साथ अभिमन्यु के वध का वर्णन। (4) सुग्रीव के द्वारा कुंभराक्षस वध से कर्ण के द्वारा घटोत्कच-वध का मिलान आदि । कविराज की इस श्लेषमय रचना का पंडित-कवियों को विशेष आकर्षण रहा जिसके फलस्वरूप दो, तीन, पांच, सात चरित्र एक ही शब्दावली में गुंफित करने वाले कुछ सन्धान महाकाव्य संस्कृत साहित्य में निर्माण हुए। राघवपांडवीयम् के टीकाकार- ले.-1) लक्ष्मण (2) रामभद्र (3) शशधर (4) प्रेमचन्द्र तर्कवागीश (5) चरित्रवर्धन (6) पद्मनंदी, (7) पुष्पदत्त और (8) विश्वनाथ । राघव-यादव-पाण्डवीयम् - ले.-चिदम्बरकवि। ई. 17 वीं शती। इसमें रामायण, भागवत एवं महाभारत की कथाएं श्लेषमय पद्यरचना में ग्रथित की है। कवि के पिता- अनंत नारायण ने इस काव्य पर पाण्डित्य पूर्ण टीका लिखी है। राघवानन्दम् (नाटक) - ले.- वेङ्कटेश्वर । ई. 18 वीं शती। रंगनाथ मन्दिर में अभिनीत । अंकसंख्या- सात। राम के वनवास से लेकर रावणविजय के बाद अयोध्या में आगमन तक की कथावस्तु वर्णित है। मूल कथानक में बहुविध परिवर्तन है। कृत्रिम, अदृश्य तथा रूप बदलने वाले पात्रों की भरमार । वीर के साथ अद्भुत तथा भयानक रस का संयोग। विकसित चरित्र-चित्रण। अपभ्रंश और मागधी भाषा का प्रयोग । वर्णनात्मक पद्य तथा एकोक्तियों की बहुलता इस की विशेषता है। राघवाभ्युदयम् (नाटक) - ले.- भगवन्तराय। पिता- गंगाधर अमात्य । त्र्यम्बकराय मखी के द्वारा सम्पादित यज्ञ के अवसर पर प्रथम अभिनीत । सन 1681। सात अंकों में कुल पात्र संख्या 28, जिनमें पुरुष पात्र 23 हैं। विश्वामित्र के साथ राम के प्रयाण से लेकर रावणविजय के पश्चात् राम के राज्याभिषेक तक की कथावस्तु । मूल कथा में पर्याप्त परिवर्तन हुआ है। राघवीयम् (महाकाव्य) - ले.- रामपाणिवाद । केरल-निवासी। संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 297 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy