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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाता है। इसी बीच वसंतसेना का पीछा करते हुए शकार, शकार की गाडी, वसंतसेना के पास उसे लेने के लिये आती विट और चेट पहुंच जाते हैं। शकार की उक्ति से वसंतसेना है। वसंतसेना की मां उसे जाने के लिये कहती है, पर वह को ज्ञात होता है कि पास में ही चारुदत्त का घर है। मैत्रेय नहीं जाती। शर्विलक वसंतसेना के घर पर जाकर मदनिका दीपक लेकर किवाड खोलता है और वसंतसेना शीघ्रता से को चोरी का वृत्तांत सुनाता है। मदनिका, वसंतसेना के दीपक बुझा कर भीतर प्रवेश कर जाती है। इधर शकार, आभूषणों को देख कर उन्हें पहचान लेती है, और उन्हें अपनी रदनिका को ही वसंतसेना समझ कर पकड़ लेता है, पर मैत्रेय स्वामिनी को लौटा देने के लिये कहती है। पहले तो शर्विलक डांट कर उसे छुडा लेता है। शकार विवाद करता हुआ मैत्रेय उसके प्रस्ताव को अमान्य करता है, किन्तु अंततः उसे मानने को धमकी देकर चला जाता है। विदूषक एवं रदनिका के को तैयार हो जाता है। वसंतसेना छिपकर दोनों प्रेमियों की भीतर प्रवेश करने पर वसंतसेना पहचान ली जाती है। वह बातचीत सुनती है, और प्रसन्नतापूर्वक मदनिका को मुक्त कर अपने आभूषणों को चारुदत्त के यहां रख देती है और मैत्रेय शर्विलक के हवाले कर देती है। रास्ते में शर्विलक को, राजा तथा चारुदत्त उसे घर पहुंचा. देते हैं। इस अंक में यह पता पालक द्वारा गोपालदारक को बंदी बनाये जाने की घोषणा चल जाता है कि वसंतसेना ने जब चारुदत्त को सर्वप्रथम सुनाई पड़ती है। अतः वह रेभिक के साथ मदनिका को कामदेवायतनोद्यान में देखा था, तभी से वह उस पर अनुरक्त भेजकर, स्वयं गोपालदारक को छुड़ाने के लिये चल देता है। हो गई थी। द्वितीय अंक में वसंतसेना की अनुरागजन्य उत्कण्ठा शर्विलक के चले जाने के बाद, धूता की रत्नावली लेकर दिखलाई गई है। इस अंक में संवाहक नामक व्यक्ति का मैत्रेय आता है और वसंतसेना को बताता है कि चारुदत्त चित्रण किया गया है जो पहले पाटलिपुत्र का एक संभ्रांत आपके आभूषणों को जूए में हार गया है, इसलिये रह रत्नावली नागरिक था, पर समय के फेर से दरिद्र होने के कारण उसने बदले में भिजवाई है। वसंतसेना मन-ही-मन प्रसन्न उज्जयिनी आकर संवाहक के रूो में चारुदत्त के यहां सेवक होकर रत्नावली रख लेती है, और संध्या समय चारुदत्त से बन गया था। चारुदत्त के निर्धन हो जाने से उसे बाध्य मिलने संदेश देकर मैत्रेय को लौटा देती है। (इस प्रकरण होकर वहां से हटना पडा और वह जुआडी बन गया। जुए के चतुर्थ अंक तक की कथा भासकृत चारुदत्त के समान है में 10 मोहरें हार जाने और उनके चुकाने में असमर्थ होने पर मृच्छकटिक में सज्जलक का नाम शर्विलक है)। के कारण वह छिपा-छिपा फिरता है। उसका पीछा द्यूतकार पंचम अंक में वसंतसेना चेटी के साथ चारुदत्त के घर और माथुर करते रहते हैं। वह एक मंदिर में छिप जाता है, जाती है। वसंतसेना सुवर्णभांड (हार इत्यादि आभूषण) चारुदत्त और वे दोनों एकांत समझकर वहीं पर जुआ खेलने लगते को देती है तभी शर्विलक कृत चोरी का सारा रहस्य खुलता हैं। संवाहक भी वहां आकर सम्मिलित होता है, पर द्यूतकार है। षष्ठ अंक में वसंतसेना चारुदत्त के पुत्र को सोने की द्वारा पकड लिया जाता है। वह भाग कर वसंतसेना के घर गाडी बनवाने के लिए आभूषण देती है। वसंतसेना प्रवहण छिप जाता है। द्यूतकार व माथुर उसका पीछा करते हुए वहां के बदल जाने से शकार की गाड़ी में बैठ के उद्यान मे पहुंच जाते हैं। संवाहक को चारुदत्त का पुराना सेवक जान चली जाती है और चारुदत्त की गाडी में कारागृह से भागा कर वसंतसेना उसे अपने यहां स्थान देती है, और द्यूतकार हुआ आर्यक आता है। वह उसके बंधन कटवा कर उसे को रुपये के बदले अपना हस्ताभरण देती है जिसे प्राप्त कर विदा करता है। अष्टम अंक में शकार वसंतसेना का गला वे दोनों संतुष्ट होकर चले जाते हैं। संवाहक विरक्त होकर दबा कर उसे मारता है और उसके शरीर को पत्तों के ढेर बौद्ध भिक्षु बन जाता है। तभी वसंतसेना का चेट एक बिगडैल में छिपाकर चला जाता है। बाद में भिक्षु को इस बात का हाथी से एक भिक्षुक को बचाने के कारण चारुदत्त द्वारा प्रदत्त पता चलता है। वह वसंतसेना को विहार में ले जाता है। पुरस्कार स्वरूप एक प्रावारक लेकर प्रवेश करता है। वह नवम अंक में शकार चारुदत्त पर वसंतसेना के वध का चारुदत्त की उदारता की प्रशंसा करता है, और वसंतसेना अभियोग लगाता है जिसमें चारुदत्त को मृत्युदण्ड देने की उसके प्रावारक को लेकर प्रसन्न होती है। तृतीय अंक में घोषणा होती है। दशम अंक में भिक्षु उक्त घोषणा को सुन वसंतसेना की दासी मदनिका का प्रेमी शर्विलक, उसे दासता कर वसंतसेना को लेकर वधस्थल पर पहुंचता है और चारुदत्त से मुक्ति दिलाने हेतु, चारुदत्त के घर से चोरी कर लाये ___को मुक्त करता है। शर्विलक भी आकर आर्यक के राजा वसंतसेना के आभूषण मदनिका को दे देता है। चारुदत्त जागने बनने की सूचना देते हैं। चारुदत्त वसंतसेना को पत्नी के रूप पर प्रसन्न और चिंतित दिखाई पड़ता है। चोर के खाली हाथ में स्वीकार करता है। इस प्रकरण में कुल आठ अर्थोपक्षेपक न लौटने से उसे प्रसन्नता है, पर वसंतसेना के न्यास को हैं। इनमें सात चूलिकाएं और 1 अंकास्य है। "मृच्छकटिक" लौटाने की चिंता से वह दुःखी है। उसकी पत्नी धूता, उसे यह नाम प्रतीकात्मक है, और असंतोष का प्रतीक हैं। इस अपनी रत्नावली देती है, और मैत्रेय उसे लेकर वसंतसेना को नाटक के अधिकांश पात्र अपनी स्थिति से असंतुष्ट है। देने के लिये चला जाता है। चतुर्थ अंक में राजा के साले वसंतसेना धनी शकार से प्रेम न कर, सर्वगुणसंपन्न चारुदत्त 276 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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