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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तपोवन का है। ताडी पीने वाले किरात हल जोतकर श्रान्त कृषीवल इ. का प्रदर्शन भी इसमें है। कथासार- धौम्य ऋषि द्वारा शिष्यों की कडी परीक्षा ली जाती है। हारीत उनका विरोध करने के फलस्वरुप आश्रम से निष्कासित होता है। उपमन्यु उनके द्वारा ली गई सभी कठोर परीक्षाओं में सफल होता है। राजा धौम्य को प्रधानामात्य पद ग्रहण करने की प्रार्थना करता है परंतु वे नहीं मानते। अपने शिष्य को प्रधानामात्य बनाते हैं। वह गुरु को उपहार देता है, परंतु धौम्य उसे छात्रों में वितरित करते हैं। उपमन्यु "उद्दालक मुनि" नाम से विख्यात होता है और हारीत पश्चाताप-दग्ध होकर गुरुकृपा पाता है। मांडूक्य उपनिषद्- यह अल्पाकार उननिषद् है जिसमें कुल 12 खंड या वाक्य हैं। इसका संपूर्ण अंश गद्यात्मक है जिसे मंत्र भी कहा जाता है। इस उपनिषद में ओंकार की मार्मिक व्याख्या की गई है। ओंकार में तीन मात्रायें हैं, तथा चतुर्थ अंश 'अ'- मात्र होता है। इसके अनुरूप ही चैतन्य की चार अवस्थाएं हैं- जागरित, स्वप्न, सुषुप्ति एवं अव्यवहार्य दशा । इन्हीं का आधिपत्य धारण कर आत्मा भी चार प्रकार का होता है- वैश्वानर, तैजस, प्राज्ञ तथा प्रपंचोपशमरूपी शिव । इसमें भूत, भविष्य, वर्तमान तीनों कालों से अतीत सभी भाव ओंकार स्वरूप बताये गये हैं। इसका संबंध 'अथर्ववेद' से है। इसमें यह बतलाया गया है कि ओंकार ही आत्मा या परमात्मा है। इस पर शंकराचार्य के दादागुरु गौडपादाचार्य ने "मांडूक्यकारिका' नामक सुप्रसिद्ध भाष्य लिखा है। मातंगीक्रम - ले.- कुलमणि शुक्ल (गुप्त)। मातंगीडामरम् - हर-गौरी संवादरूप। विषय- उच्चाटन, मारण, मोहन, वशीकरण, आकर्षण तथा विद्वेषण का विशेष वर्णन । मातंगीदीपदानविधि - रुद्रयामलान्तर्गत, शिव-पार्वती संवादरूप। विषय- देवी मातंगी के लिए प्रज्वलित दीपदान-विधि, मातंगी के मंत्र, उनके ऋषि, छन्द, देवता इ.। करन्यास, अंगन्यास देवी-पूजा इ. का विवरण। मातंगिनीपद्धति - ले.- रामभट्ट। श्लोक- 550। मातंगीपंचांगम् - श्लोक- 353 | मातंगीमंत्रपद्धति - शिवानन्दभट्ट । मातंगीप्रयोग - श्लोक- 164 । मातंगीश्यामाकल्प - श्लोक- 115। मातृकाकवचम् (नामान्तर-मातृकाश्रीजगन्मंगल) - चिन्तामणि-तंत्रान्तर्गत । देवी- ईश्वर संवादरूप। विषय- शरीर के विभिन्न अंगों की रक्षा के लिए विभिन्न वर्गों का विनियोग। मातृकाकेशवनिघण्टु - ले.-महीधर । मातृकाकोष - ले.- श्रीमच्चतुर्भुजाचार्य- शिष्य । श्लोक-2701 यह मातृका कोष सब कोषों में परमोत्तम है। इसके धारण से मनुष्य मंत्रोद्धारण में समर्थ होता है। इसमें अकारादि अक्षरों के मांत्रिक पर्याय कहे गये हैं। मातृकाचक्रविवेक - ले.- स्वतंत्रानन्दनाथ। इसमें (1) तात्पर्यविवेक, (2) सुषुप्तिविवेक, (3) स्वप्रविवेक, (4) जाग्रद्विवेक, (5) तुर्यविवेक और (6) मातृकाचक्रसंग्रह नामक छह खंड हैं। विषय- वर्णमालिका की प्रतिनिधिभूत शक्ति देवी का परमरहस्य एवं मातृकार्थस्वरूप। मातृकाचक्रविवेक-व्याख्या - ले.- शिवानन्द । मातृकाचक्रविवेक नाम का निबंध परम्परा द्वारा प्राप्त महामंत्रों के अर्थोपदेश में अत्यंत श्लाघ्य माना गया है। शिवानन्द ने इस पर सुबोध वृत्ति लिखी है। मातृकानिघण्टु - (1) ले.- महीदास। श्लोक- 6311 (2) महीधराचार्यकृत, श्लोक- 55, (3) नामान्तरतंत्रकोश। श्लोक831। ले.- अज्ञात। (4) ले.- आनन्दतीर्थ । (5) ले.परमहंस आचार्य- विषय मातृकाबीज निरूपण । (6) ले.- नृसिंह। मातृकाभेदतंत्रम् - चण्डिका - शंकर संवादरूप। पटल- 14 । श्लोक- 586 | विषय- सोना-चांदी बनाने के उपाय । सन्तानोत्पत्ति के नियम। कुण्डलिनी भोगों को भोगती है जीव नहीं, ऐसा विचार कर भोजन करने से मोक्ष-साधन होता है, यह प्रतिपादन । देह के भीतर स्थित कुण्ड आदि शिवनिर्माल्य की अग्राह्यता में हेतु । मद्य-पान की प्रशंसा। पारद-भस्म करने के उपाय और पारद-भस्म की महिमा। चंद्र और सूर्य के ग्रहण का रहस्य। चामुण्डा के मंत्र और उसकी आराधना विधि। त्रिपुरा के मंत्र, पूजा, स्तोत्र इ. का प्रतिपादन । पारद के शिवलिंग का माहात्म्य इ.। मातृगोत्रनिर्णय - (1) ले.- नारायण। (2) ले.लौगाक्षिभास्कर। पिता-मुद्गल। विषय- माध्यंदिनीय ब्राह्मणों में विवाह के लिए मातृगोत्र का वर्जन । मातृतत्त्वप्रकाश - ले.- ब्रह्मश्री कपाली शास्त्री। श्री अरविंद के “फोर पावर्स ऑफ दी मदर" काव्य का संस्कृत अनुवाद । मातृभूशतकम् - ले.- श्रीधर वेंकटेश। ई. 18 वीं शती। गीति काव्य। मातृकार्णवनिघण्टु - ले.-भानु दीक्षित । पिता- नारायण दीक्षित । (नामान्तर-मातृकावर्णन-संग्रह)। मातृसद्भाव (या मातृकासद्भावः) - श्लोक- 3150 । सब यामलों का सारसंग्रह-रूप ग्रंथ। विषय- पूजा के विभिन्न प्रकार, न्यास, मुद्रा इ. के विभिन्न प्रकारों के लक्षण। पुष्पिका में इसके 27 पटल निर्देशित हैं। मातृस्तोत्रम् - ले.- सत्यव्रत शर्मा, साहित्याचार्य (पंजाब निवासी)। मात्रादिश्राद्धनिर्णय - ले.-कोकिल। माथुरम् - गुरुप्रसन्न भट्टाचार्य (जन्म- 1882) । खण्डकाव्य)। संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 265 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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