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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महाशक्तिन्यास - श्लोक- 3501 (4) महिषमर्दिनीस्तोत्र तथा महिषमर्दिनी पद्धति इ.। महाशंखमालासंस्कार - श्लोक- 54। विषय- शक्तिपूजा में महिषमर्दिनीतंत्र - शंकर-पार्वती संवादरूप। पटल 10 । उपकरणभूत शंखमाला का लक्षण, उसका शोधन प्रकार, महिषमर्दिनीस्तवरहस्य-प्रकाश - ले.- जगदीश पंचानन धारणविधि आदि। भट्टाचार्य। यह महिषमर्दिनीस्तव का व्याख्यान है। महासिद्धांत - ले.- आर्यभट्ट। ई. 8 वीं शती। विषय- महिषमर्दिनीस्तोत्र टीका- ले.- कालीचरण। ज्योतिषशास्त्र। महीपो मनुनीति चोलः - अनुवादक डा. वें. राघवन्। मूल महाशिवरात्रिनिर्णय - ले. कृष्णराम। काश्मीरनिवासी। तमिल कथा। महाशैवतंत्रम् (आकाशभैरवकल्प) - उमा-महेश्वर संवादरूप।। महीशूरदेशाभ्युदय-चम्पू - ले.- सीताराम शास्त्री। मैसूर प्रदेश इसमें प्रथम कल्प में 1 से 11 अध्याय, द्वितीय कल्प में 1 सम्बन्धी निवेदन। से 15 अध्याय एवं ततीय कल्प में 1 से 50 अध्याय हैं। महीशराभिवद्धि-प्रबन्ध-चम्प - ले.- वेंकटराम शास्त्री। मैसर यह अतिरहस्यपूर्ण शैवतंत्र है। विषयक निवेदन। महाश्वेता - ले.- डा. वेंकटराम राघवन् (20 वीं शती)। महेन्द्रविजयम् (डिम) - ले.- प्रधान वेङ्कप्प। ई. 18 वीं आकाशवाणी, मद्रास से प्रसारित प्रक्षेणक (ओपेरा) । कथावस्तु- शती। श्रीरामपुरी के निवासी। श्रीरामपुरी के तिरुवेङ्गलनाथ शिवस्तुति में मग्न महाश्वेता का वीणागान सुनकर चन्द्रापीड के महोत्त्सव में सर्वप्रथम अभिनीत। कथा- समुद्रमन्थन के विस्मित होता है। उसके पूछने पर महाश्वेता अपना वृत्तान्त पश्चात् अमृतप्राप्ति के लिए देवों तथा असुरों में युद्ध होता उसे सुनाती है। है और उस युद्ध में महेन्द्र की विजय होती है। महाषोढान्यास - ले.- विरूपाक्ष। श्लोक- • 2501 महेन्द्रजालम् - ले,- पटुनाथ। श्लोक- 150 । बाह्यमातृका-न्यास भी इसमें सम्मिलित है। यह ऊर्ध्वाम्नाम के महेश्वरतंत्र - श्लोक- 3200 । अन्तर्गत है। विषय- करन्यास, अंगन्यास आदि की विधियां । महेश्वरोल्लास (रूपक) - ले.- राधामंगल नारायण। ई. 19 महासंमोहनतंत्रम् - श्लोक- 250। पटल- 101 विषय वीं शती। तांत्रिक सिद्धांतों का विस्तार से प्रतिपादन । महोडीशततंत्र - पार्वती-परमेश्वर संवादरूप। श्लोक- 500। महास्वच्छन्दसारसंग्रह - देवी-भैरव-संवादरूप। पटल- 45। विषय-वशीकरण, उच्चाटन, मोहन, स्तंभन, शान्तिक, पौष्टिक विषय- शक्ति देवी की पूजा के संबंध में विस्तृत विवरण। आदि विविध तांत्रिक कर्म । इनमें उन्मादन, विद्वेषण, अन्धीकरण, मंत्रोद्धार, मंत्रविद्या, न्यासमंत्र इ. मूकीकरण, शरीरसंकोचन, स्तब्धीकरण, भूतज्वरोत्पादन, शस्त्र महिममयभारतम् - ले.- यतीन्द्रविमल चौधुरी। रचना सन और शास्त्र को व्यर्थ कर देना, नदी आदि का जल शोषित 1958 में। भारत शासन नाटक विभाग के आश्रय में प्राच्यवाणी करना, दही, शहद आदि नष्ट कर देना, हाथी, घोडे आदि द्वारा 20-4-59 को दिल्ली में अभिनीत हुआ। अंकसंख्या को क्रुद्ध बना देना, सर्प का विष नष्ट कर देना, वेताल-सिद्धि, पांच। भाषा सुबोध । ब्रह्मा, विष्णु से लेकर श्रमिक वर्ग तक खडाऊ की सिद्धि आदि भी कई विधियां प्रतिपादर है। की भूमिकाएं इसमें हैं। दृश्यस्थली देवलोक से दिल्ली तक। ध्येय है मातृभूमि के प्रति प्रेम जगाना। गीतों का प्राचुर्य, मागधम् - सन 1967 से आरा (बिहार) से नेमिचंद्र शास्त्री वैदिक, पौराणिक, इस्लामी तथा आधुनिक भारत का दर्शन । के सम्पादकत्व में यह पत्रिका प्रकाशित हो रही है। इसमें कृति का प्रायः अभाव, किन्तु मानसिक व्यापार तथा भावुक अर्वाचीन कवियों की कृतियों का प्रकाशन हुआ। इसका शैली से यह नाटक परिप्लुत है। दामोदर घाटी, माइथन बांध, कालिदास विशेषांक महत्त्वपूर्ण है। भाकरा-नांगल, चम्बल, नागार्जुन सागर तथा माचकुन्द योजनाएं, माघनन्दिश्रावकाचार - ले.- माघनन्दि। जैनाचार्य। समयविद्युत उत्पादन, मत्स्य-पालन आदि प्रकल्पों पर चर्चाएं और ई. 12 वीं शती। भारत के नवनिर्माण के प्रति आशावाद इसकी विशेषताएं हैं। माघमाहात्म्यम् - ले.- वासुदेवानंद सरस्वती महिशमंगलम् (भाण) - ले.- नारायण। ई. 16 वीं शती । माणवक-गौरवम् (रूपक) . ले.-कालीपद (ई. कोचीन के नरेश राजराज की इच्छानुसार इस भाण की रचना 1888-1972) "प्रणय-पारिजात" तथा "संस्कृत-साहित्यपरिषत् हुई। नायक अनङ्गकेतु तथा नायिका अनङ्गपताका के प्रणय पत्रिका" में प्रकाशित । सं.सा. परिषद की ओर से अभिनीत । की कथा । सन 1880 ई. में पालघाट से तथा त्रिचूर से प्रकाशित । अंकसंख्या-सात। संस्कृतिपरक संविधान, राजतंत्र, नीति तथा महिषमर्दिनीपंचांगम् - श्लोक-144। विषय- (1) महिषमर्दिनी आश्रमजीवन का सूक्ष्म निदर्शन, गुरुभक्ति का स्तोत्र-गान इत्यादि पटल, (2) महिषमर्दिनीकवच, (ध) महिषमर्दिनी सहस्रनाम, इसकी विशेषताएं है। इसका नायक ब्राह्मण और परिवेश 264/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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