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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra बालबोध चरित्र । शारदा प्रकाशन, पुणे 30 द्वारा प्रकाशित। महादाननिर्णय (अपरनाम महादानप्रयोगपद्धति) ले. - भैरवेन्द्र ( नामान्तर - रूपनारायण या हरिनारायण) । लेखक मिथिला के अधिपति थे । विख्यात पंडित वाचस्पति मिश्र की सहायता से उन्होंने यह ग्रंथ निर्माण किया। वाचस्पति ने अपने द्वैतनिर्णय में और कमलाकर ने अपने दानमयूख में इस ग्रंथ का निर्देश किया है। महादानपद्धति ले. विश्वेश्वर । महादानवाक्यावली- ले. रत्त्रपाणि मिश्र । पिता गंगोली संजीवेश्वर । · - - महादेवचम्पू ले. रामदेव । महादेवपंचागम् विश्वसारतन्त्रान्तर्गत श्लोक 296 महादेवपरिचर्याप्रयोग ले. सुरेश्वर स्वामी बोधायनीय शाखा के लिये । महादेवीपूजापरिमल श्लोक 560 I महादेशिकचरितम् - (व्यायोग) ले. व्ही. रामानुजाचार्य । महानाटकम् (या हनुमन्नाटकम्) परम्परा से इसके लेखक रामभक्त हनुमान् माने जाते हैं। किम्वदन्ती है कि इसके लिखने पर मुनि वाल्मीकि को अपना काव्य गौण हो जायेगा इस डर ने घेरा तथा उन्होंने हनुमान् की अनुज्ञा से इस रचना को समुद्र में फेंक दिया। भोजचरित में इसकी उपलब्धि की दूसरी कथा है: एक व्यापारी को कुछ श्लोक समुद्र किनारे पत्थर पर खुदे मिले, भोज ने स्वयं उस स्थान पर जाकर उन्हें पढा । यह श्लोक महानाटक में पाए जाते हैं। आज उपलब्ध रचना बृहत् है तथा इसमें श्लोक अधिक हैं और नाट्यांश अल्प है। इन श्लोकों की कल्पना बडी अद्भुत तथा भावप्रदर्शन उच्च कोटि का है 1 www.kobatirth.org = - - हनुमान् नाम के एक कवि भी थे, उनकी यह रचना मानी जाती है। इस नाटक में 14 अंकों में संपूर्ण रामकथा चित्रित की गई है। इस के कुछ श्लोक रामचरित्रविषय अन्य प्रसिद्ध नाटकों में मिलते हैं। नाटक में सूत्रधार और विष्कम्भक नहीं हैं। टीकाकार (1) रघुनाथ (2) गुणविजयगणि, (3) मोहनदास, ( 4 ) नारायण, (5) चंद्रशेखर। आधुनिक विद्वान् इसकी रचना भोजकालीन (इ. 1018-1063) मानते हैं। महानारायणोपनिषद् ले. नामान्तर- याज्ञिक्युपनिषद्) - यह "तैत्तिरीय आरण्यक" का दशम प्रपाठक है। नारायण को परमात्मा के रूप में चित्रित करने के कारण, इसकी अभिधा नारायणीय है। इसमें आत्मतत्त्व को परमसत्ता एवं सत्य, तपस्, दम, शम, दान, धर्म, प्रजनन, अग्नि, अग्निहोत्र, यज्ञ व मानसोपासना आदि का प्रभावशाली वर्णन है। इसकी अनुवाकसंख्या के बारे में विद्वानों में मतभेद है। द्रवियों के अनुसार 64, आंध्रों के अनुसार 80 एवं कतिपय अन्य व्यक्तियों 258 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड 1 के अनुसार इसमें 79 अनुवाक है। इसमें पाठों की अनेकरूपता दिखाई पड़ती है, तथा वेदान्त, संन्यास, दुर्गा, नारायण महादेव, दंती एवं गरुड आदि शब्दों का प्रयोग है। इससे इसकी अर्वाचीनता सिद्ध होती है किन्तु बोधायन सूत्रों में उल्लेख होने के कारण, इसे अधिक अर्वाचीन नहीं माना जा सकता । विंटरनित्स इसे "मैदुपनिषद्' से प्राचीनतर स्वीकार करते हैं। महानिर्वाणतन्त्र- आद्या सदाशिव संवादरूप। यह दो भागों में विभक्त है। पूर्व काण्ड में 14 उल्लास (पटल) हैं। विषयभगवती आद्या का महादेवजी से जीवों के निस्तार के उपाय के विषय में प्रश्न । परब्रह्म की उपासना के क्रमद्वारा जीवों का निस्तार हो सकता है यह भगवान् शिवजी का उत्तर है। परब्रह्म की उपासना, प्रकृति-साधना का उपक्रम, देवी के दशाक्षर मन्त्र का उद्धार, कलशस्थापना, तत्त्व- संस्कार, श्रीपात्रस्थापन, होम, चानुष्ठान, कुलतच कथन, वर्णाश्रमाचार, कुलतन्त्र कुशकण्डिका, दस संस्कारों की विधि, वृद्धि, श्राद्ध, अन्येष्टि पूर्णाभिषेक, अपने तथा पराये अनिष्टकारी पापों का प्रायश्चित्त इ. । 1. उत्तरार्ध में 14 उल्लास हैं। प्रथम में कलियुग में पतित जीवों के उद्धार के लिए भगवती द्वारा महादेवजी के प्रति प्रश्न 2. में महादेवजी का परम ब्रह्मोपासनाक्रम विषयक उत्तर । 3. द्वारा परमब्रह्मोपासना का वर्णन 4 प्रकृतिसाधना का उपक्रम । 5 मन्त्रों के उद्धार, संस्कार आदि। 6. पात्रस्थापन होम, चक्रानुष्ठान। 7. कुल तत्त्व कथन। 10. पूर्णाभिषेकादि । 11. अपने और पराये पापों का प्रायश्चित्त। 12 सनातन व्यवहार। 13. वास्तु ग्रहयोग एवं 14 वें में शिवलिंग स्थापन आदि । महानीलतन्त्रम् हर-गौरी संवादरूप। पटल - 31। विषय शिव और शक्ति की महिमा तथा उनके मन्त्रों का प्रतिपादन । महापथकल्प श्लोक महापरिनिर्वाणसूत्रम् ले. आचार्य वसुबन्धु। इसका चीनी अनुवाद ही उपलब्ध है। 831 I महापीठनिरूपणम् महाचूडामणितन्त्र के अन्तर्गत । शिव-पार्वती संवादरूप | विषय - 51 महापीठों का वर्णन । - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir · - For Private and Personal Use Only - महापुराणम् - ले. मल्लिषेण । जैनाचार्य। ई. 11 वीं शती । 2000 श्लोक । यह जैनपुराण है। - महाप्रज्ञापारमितासूत्रकारिका ले नागार्जुन । यह एक भाष्य ग्रंथ है। कुमारजीव द्वारा इसका चीनी भाषा में अनुवाद ई. 405 में संपन्न हुआ । महाप्रभुः हरिदास:- ले. यतीन्द्रविमल चौधुरी । रचना सन 1958 में। अनेक स्थानों पर इसका प्रयोग हुआ। कथासारवनग्राम के जमीनदार ने भक्त हरिदास को मोहित करने जो वेश्या भेजी, वह उसकी संगति में संन्यासिनी बन जाती है । हरिदास की निन्दा करने वाले गुम्पराज की दुर्दशा होती है। हरिनाम संकीर्तन पर बन्दी लगाने वाले हुसेनशाह द्वारा निर्ममता
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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