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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिद्धांत" में अन्य विषयों के अतिरिक्त, पाटी-गणित, क्षेत्र-व्यवहार ___तक संयमपूर्वक भगवती तारा की उपासना की, किन्तु भगवती व बीजगणित का भी समावेश है। का अनुग्रह प्राप्त नहीं हुआ। तदनन्तर वशिष्ठजी ने तारा को महाकविः कल्हणः (शोधनिबंध) - ले.- डॉ. सुभाष शाप दिया जिससे तारा की उपासना सफल नहीं होती। कहा वेदालंकार । मूल्य 45 रुपये। जाता है कि चीनाचार को छोड कर अन्य साधना से तारा महाकविः कालिदासः (रूपक) - ले.- जीव न्यायतीर्थ प्रसन्न नहीं होती। एकमात्र बुद्धरूपी विष्णु ही उनकी आराधना (जन्म 1894)। सन् 1972 में लेखक द्वारा रूपक-चक्र में और आचार जानते हैं। यह जानकर वशिष्ठ चीन देश में बुद्ध प्रकाशित प्रथम अभिनय 1962 में उज्जयिनी में कालिदास रूपी विष्णु के समीप उपस्थित हुए। उनका वेदबाह्य आचार समारोह के अवसर पर। अंकसंख्या- पांच। प्राकृत का समावेश, देख वशिष्ठ मन ही मन बडे विस्मित हुए। वशिष्ठजी के गीत, नृत्य तथा छायातत्त्व प्रचुर मात्रा में हैं। भाषा अनुप्रास सोच-विचार में पड़ने पर आकाशवाणी हुई। उसने कहा कि प्रचुर है। कालिदास की मूढता के फलस्वरुप पत्नी विद्यावती तारा की आराधना में वही आचार सर्वोत्तम है। दूसरे आचार द्वारा निर्भर्त्सना और तत्पश्चात् काली के प्रसादस्वरूप प्रतिभाशाली से वह प्रसन्न नहीं होती। यह सुन कर वे बुद्धरूपी विष्णु बनने की घटना इस में वर्णित है। को नमस्कार कर तारादेवी की आराधनाविधि जानने के लिए महाकविकृत्य - अनुवादक ई. व्ही. रामन् नम्बुद्री। मूल बद्धांजलि होकर उनके सामने खडे रहे। बुद्धरूपी विष्णु ने मलयालम् रचना। तारादेवी की उपासना का विधान उन्हें बतलाया। प्रसंगतः महाकालपंचरात्रम् - श्लोक- 9451 स्त्रियों की पूज्यता का उल्लेख करते हुए नौ (9) कन्याओं का उन्होंने निर्देश किया। वे नौ कन्याएं हैं- नटिका, पालिनी, महाकालपंचांगम् - रुद्रयामलान्तर्गत । श्लोक- 448 | विषय वेश्या, रजकी, नापितांगना, ब्राह्मणी, शूद्रकन्या, गोपाल-कन्या 1) महाकाल-पटल, 2) महाकाल-पद्धति, 3) मंत्रगर्भकवच, तथा मालाकार-कन्या। 4) महाकाल-सहस्रनाम तथा महाकाल-स्तोत्र हैं। ये श्रीविश्वसारोद्धारतंत्र के 34 से 37 वें पटल में वर्णित हैं। महागणपतिकल्प - ले.- शंकरनारायण। श्लोक -1001 विषय- महागणपति के न्यास, ध्यान, पूजा, हवन, जप, स्तुति महाकालयोगशास्त्रम् - ले.- आदिनाथ। इसमें खेचरी क्रिया इ. का प्रतिपादन। मात्र वर्णित है। महागणपतिक्रम - ले.- अनन्तदेव जो दाईदेव संप्रदाय के महाकालसंहिता - श्लोक-6810 । विषय- कालीसहस्रनामस्तोत्र, अनुयायी थे। कालीस्वरूप सहस्त्रनामस्तोत्र इ.।। महागणपतिरत्नदीप - ले.- ब्रह्मेश्वर। श्लोक - 400। महाकालसंहिताकूटम् - ले.- आदिनाथदेव । महागणपतिविद्या - श्लोक- 145 । महाकालीतन्त्रम् - महादेव-पार्वती संवादरूप। विषय- महाकाली के तंत्र, मंत्र, पूजन, ध्यान आदि का निरूपण। महागणतिपसहस्रनाम - शिव -गणेश संवादरूप। श्लोक - महाकालीमतम् - ऋषि-ईश्वर संवादरूप। श्लोक- 75। आदि 200। यह गणेशपुराण के उपासनाखण्डान्तर्गत है। त्रिपुरासुर के वध के समय विघ्ननिवृत्ति के लिए शिवजी के पूछने पर शिव ने ऋषिवरों के लिए इसका उपदेश किया। दुःख दारिद्रय गणपति ने अनपे पिता शिवजी से यह कहा। से प्रपीडित ब्राह्मण किस उपाय से दुर्गति से छुटकारा पावे इस प्रश्न पर शिवजी ने देवदुर्लभ इस निधिशास्त्र का जो महागणेशमन्त्रपद्धति - ले.- श्रीगीर्वाणेन्द्र। गुरु- विश्वेश्वरः। अत्यंत गोपनीय है, उसे उपदेश दिया। विषय- गुप्तनिधियों महागुह्यतन्त्रम् - गुह्यकाली की गुह्य पूजा प्रतिपादित । गुह्यकाली की ढूंढ निकालने की विधि। नेपाल में प्रसिद्ध है। यह सारा तन्त्र अत्यंत रहस्यमय तथा महाकालीसूक्तम् - रुद्रयामल से गृहीत। श्लोक- 2701 12000 श्लोकात्मक कहा गया है। किन्तु इसका अत्यंत रहस्य जो गुह्यातिगुह्य भाग है, उस विषय में 1300 श्लोक हैं। महाकौलक्रम-पंचचक्र-सदाचारविधि - श्लोक 101 महातन्त्रम् - ले.- वासिवेश्वर। श्लोक - 4501 महाक्रमार्चनम् - ले.- अजितानन्दनाथ। गुरु-अनंतानन्ददेव । विषय- कुब्जिका के उपासकों के प्रातःकृत्यों के साथ कुब्जिका महातन्त्रराज - पार्वती-शिव संवादरूप। श्लोक - 243 । देवी की पूजा का सविस्तर वर्णन। विषय- तन्त्रसम्मत ब्रह्मज्ञान का निरूपण। महाकौलज्ञानविनिर्णय - ले.- मत्स्येन्द्रपाल । श्लोक-726 । महात्रिपुरसुन्दरीपादुकार्चनक्रमोत्तम - ले.-निजात्मप्रकाशानन्द महाचीनक्रमाचार - (नामान्तर चीनाचारतन्त्र, आचारसारतन्त्र महात्रिपुरसुन्दरीपूजापद्धति - श्लोक - 500। अथवा आचारतन्त्र)- शिव- पार्वती संवादरूप। पटल - 71 महात्रिपुरसुन्दरी-वरिवस्याविधि - ले.- भासुरानन्दनाथ । श्लोकविषय - वशिष्ठाराधित भगवती तारा की उपासना। प्रसिद्धि है 4361 कि वशिष्ठजी ने कामाख्यामण्डलवर्ती नीलाचल में दीर्घ काल महात्मचरितम् - ले.- पंढरीनाथ पाठक। महात्मा गांधीजी का संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 257 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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