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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir में हेस्टिंज नन्दकुमार के मुकदमे के पत्र को छुपाकर उसे फांसी दिलाता है। पंचम अंक में पाण्डे और बाजपेयी एक गोरे को गोली से उडा देते हैं तथा झांसी की रानी, तात्या टोपे इत्यादि सब मिलकर विद्रोह कर देते हैं किन्तु गोरे लोग दबा देते हैं। झांसी रानी भी मारी जाती है। षष्ठ अंक में ह्यूम कांग्रेस की स्थापना करता है। तिलक, खुदीराम, गांधी इस कांग्रेस के सदस्य बनकर भारत माता की स्वतंत्रता के लिए प्रयत्न करते हैं। वे गोरे लोगों की नौकरी शिक्षा, विदेशी वस्त्र सब का बहिष्कार करते हैं। सप्तम अंक में गांधीजी के अहिंसावादी आन्दोलन से प्रभावित होकर गोरे लोग भारत को स्वतंत्र कर देते हैं। इस नाटक में तीन अर्थोपक्षेपक हैं। इनमें विष्कम्भक और 2 चूलिकाए हैं। भारतविवेक . ले.- यतीन्द्रविमल चौधुरी। सन 1961 में, विवेकानन्द की जन्म शताब्दी पर रचित। 2-11-1962 को विश्वरूप थिएटर में अभिनीत। 1963 में "प्राच्यवाणी" से प्रकाशित। बंगाल, दिल्ली तथा पाण्डिचेरी में अनेक बार अभिनीत । अंकों के स्थान पर "दृश्य" शब्द का प्रयोग है। दृश्यसंख्या-बारह। संगीत नृत्य से भरपूर । ऐतिहासिक तथा जीवनचरित्रात्मक नाटक। विवेकानन्द की संपूर्ण जीवनगाथा वर्णित है। भारतवीरम् - ले.- डॉ. रमा चौधुरी। छत्रपति शिवाजी महाराज का चरित्र इस नाटक का विषय है। भारतश्री - सन 1940 में महादेवशास्त्री के सम्पादकत्व में काशी से इस पत्रिका का प्रकाशन हुआ। इसका वार्षिक मूल्य केवल एक रु. था। इसमें सभी विषयों के उच्चस्तर के लेख प्रकाशित होते थे। पत्रिका संस्कृतज्ञों के जागरण युग का बोध कराती है। भारतसंग्रह - ले.- लक्ष्मणशास्त्री। जयपुर-निवासी। विषयभारत का इतिहास। भारतसावित्री - महाभारतान्तर्गत एक स्तोत्र। रचयिता- व्यास महर्षि । इसके पठन से महाभारत के श्रवण-पठन की फलप्राप्ति होती है। पारंपारिक प्रातःस्मरण के ग्रंथों में इसका समावेश है। यह स्तोत्र इस प्रकार है महर्षिभगवान् व्यासः कृत्वमा संहितां पुरा । श्लोकैश्चतुर्भिर्धमात्मा पुत्रमध्यापयाच्छुकम्।।1।। मातापितृसहस्राणि पुत्रदारशतानि च । संसारेष्वनुभूतानि यान्ति यास्यन्ति चापरे ।।2।। हर्षस्थानसहस्राणि भयस्थानशतानि च। दिवसे दिवसे मूढमाविशन्ति न पण्डितम्।।3।। ऊर्ध्वबाहुर्विशैम्येष न च कश्चिश्रृणोति मे।। धर्मादर्थश्च कामश्च स किमर्थं न सेव्यते ।।4।। न जातु कामान भयान लोभाद धर्मं त्येजेज्जीवितस्यापि हेतोः । धमोनित्यः सुखदुःखे त्वनित्ये जीवो नित्यो हेतुरस्य त्वनित्यः ।। इमां भारतसावित्री प्रातरुत्थाय यः पठेत् स भारतफलं प्राप्य परं ब्रह्माधिगच्छति।। अर्थ- भगवान् व्यास महर्षि ने भारत संहिता निर्माण की तथा उस धर्मात्मा ने चार श्लोकों में वह शुक नामक अपने पुत्र को सिखाई। हजारों मातापिता तथा सैकड़ों भार्याओं तथा संतानों का संसार में अनुभव लेना पडता है। वे जाते हैं जायेंगे तथा नये आयेंगे। हर्ष के हजारों तथा भय के सैकड़ों स्थान हैं। वे हर दिन मूढ मनुष्य को भावाभिभूत करते हैं, परंतु पण्डितों को नहीं करते। मैं यहां भुजाये ऊपर उठाकर आक्रोश कर रहा हूं, परंतु कोई सुनता ही नहीं। जिस धर्म से अर्थ और काम की प्राप्ति होती है, उसका मनुष्य क्यों नहीं आचरण करते। काम, भय तथा लोभ से धर्म का त्याग कदापि नहीं करना चाहिये। जीवित रहने के लिये भी धर्म त्याग कदापि नहीं करना चाहिये। क्योंकि धर्म नित्य है तथा सुख दुःख अनित्य हैं। जीव नित्य है, उसका हेतु अनित्य है। प्रातःकाल उठकर इस भारतसावित्री का जो पाठ करेगा, उसे भारत के श्रवण पठन का फल प्राप्त होकर परब्रह्मपद की प्राप्ति होगी। भारतसधा - सन 1932 में पूणे मे इस द्वैमासिक प्रत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। सम्पादक मण्डल में महामहोपाध्याय वासुदेव शास्त्री अभ्यंकर, वेदान्तवागीश श्रीधरशास्त्री पाठक, डॉ. वासुदेव गोपाल परांजपे, प्रो. शंकर वामन दांडेकर, श्री. शैलाद्रि गोविंद कानडे और पुरुषोत्तम गणेश शास्त्री आदि विद्वान् थे। भारतसुधा संस्कृत पाठशाला की ओर से इसका प्रकाशन होता था। भारतस्य संविधानम्- ले.- एम.एम. दवे.। स्वतंत्र भारत के संविधान (भाग 1 से 4 तक) का पद्यबद्ध अनुवाद मूल अंग्रेजी की साथ मुद्रित किया है। इसमें अनुष्टुप् के साथ अन्य वृत्तों में अनुवाद की रचना की गई है। पृष्ठसंख्या 93 । नवजीवन मुद्रणालय अहमदाबाद में मुद्रित । श्री. दवे मुंबई मे अधिवक्ता हैं। आपने "चार्टर ऑफ दि युनाईटेड नेशनस्' और "दि स्टॅट्यूट ऑफ इंटर्नेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस्' का भी संस्कृत में अनुवाद किया है। आप की स्फुट रचनाएं संस्कृत पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। 2) भारत शासन की ओर से नियुक्त विद्वत्समिति द्वारा संविधान का संस्कृत अनुवाद प्रकाशित। (भारत की सभी भाषाओं में संविधान के अनुवाद हुए हैं। भारतस्य सांस्कृतिको निधिः - ले.-डॉ. रामजी उपाध्याय । भारतीय संस्कृति विषयक विद्वत्तापूर्ण निबन्ध ग्रंथ । भारतहृदयारविन्दम् - ले.- डॉ. यतीन्द्र विमल चौधुरी। रचना सन् 1959 में। सर्वप्रथम अभिनय पाण्डिचेरी के अरविन्दाश्रम में। अरविन्द घोष के जीवन पर लिखा पहला नाटक। अंकसंख्या-पांच। गीतों का बाहुल्य । 236/ संस्कृत वाङ्मय कोश-ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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