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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir के द्वितीय भाग में प्रकाशित हो चुका है। भवानीस्तवशतकम् - श्लोक- 150। इस भवानीस्तव से सौ कमलों द्वारा देवीपूजा करने पर प्रचुर पुण्यलाभ होता है, ऐसी फलश्रुति बताई है। संस्कृत-भवितव्यम्(साप्ताहिकी पत्रिका)- सन 1951 में श्रीधर भास्कर वर्णेकर के सम्पादकत्व में संस्कृत भाषा प्रचारिणी सभा, नागपुर द्वारा इस पत्र का प्रकाशन आरंभ किया गया। चार वर्षों बाद सम्पादन का दायित्व दि.वि.वराडपाण्डे पर आया। इस पत्र का वार्षिक मूल्य पांच रुपये था। प्रकाशन स्थल संस्कृतभवनम्, पश्चिम उच्च न्यायालय मार्ग, नागपुर-1 है। इस पत्र में सरल भाषा में समाचारों के अलावा संस्कृत भाषा में दिये गये भीषण तथा बालकों के लिये सामग्री भी प्रकाशित की जाती है। छोटी रुचिकर कहानियों के अतिरिक्त साहित्य और राजनीति विषयक निबन्धों का प्रकाशन भी इसमें होता है। इस पत्र का आदर्श श्लोक इस प्रकार है तावदेव प्रतिष्ठा स्याद् भारतस्य महीतले। ज्ञानामृतमयी यावत् सेव्यते सुरभारती ।। (ई. 11 वीं शती)। भद्रकालीचिन्तामणि - श्लोक- 1464 । भद्रकालीपंचांगम् - श्लोक- 374। भद्रतन्त्रम् - देवी-शिवसंवादरूप। विषय- वशीकरण, मोहन, मारण, उच्चाटन, आदि के साधनार्थ मन्त्र और विधियां। भद्रदीपक्रिया - श्लोक- 1550 । विषय- सात्त्वत आदि तन्त्रों में वर्णित दीपाराधावन क्रिया। भद्रदीपदीपिका - ले.-नारायण। गुरु- श्रीकण्ठ। ग्रंथकार ने अपने पिता की आज्ञा से चोलभूपाल द्वारा अनुष्ठित यज्ञ में भाग लिया था। यह भद्रदीपक्रिया श्री. नारायण से पृथ्वी और नारद को प्राप्त हुई। इन्होंने अपने भक्तों में उसका प्रचार किया। इससे मनुष्यों के धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, ये चारो पुरुषार्थ शीघ्र सिद्ध हो जाते हैं। भद्राचलचम्पू - ले.-राघव। विषय-वेंकटगिरि के श्रीनिवास का माहात्म्य। भद्रादिरामायणम् - कवि- वीरराघव । भरतचरितम् - ले.-म.म. विधुशेखर शास्त्री। जन्म - 1878 ई.। गद्य रचना। भरतमेलनम् (रूपक)- ले.-विश्वेश्वर विद्याभूषण। (श. 20) "मंजूषा" में प्रकाशित छः दृश्यों में विभाजित रूपक। भरत मिलाप की कथा । भरत का सशक्त चरित्र चित्रण किया गया है। भरतराज - ले.-हस्तिमल्ल। पिता- गोविंदभट्ट। जैनाचार्य। भरतशास्त्रम् - ले.-लक्ष्मीधर। अपनी ऋतुक्रीडाविवेक नामक रचना का उल्लेख लेखक ने किया है। 2) ले. रघुनाथ प्रसाद । भरतसारसंग्रह - ले.-मुम्मिदडि चिक्क देवराय (तृतीय) यह 2500 श्लोकों की संगीत शास्त्र विषयक रचना है। भरत, मतंग तथा विद्यारण्य के संगीतकार का मतानुसरण इसमें किया है। भर्तृहरिनिर्वेदम् - ले.-हरिहर। भरतेश्वराभ्युदयचंपू - ले.- आशाधर। जैनाचार्य। समय- ई. 14 वीं शती के आसपास। इस चंपू में ऋषभदेव के पुत्र की कथा कही गई है। भवदेवकुलप्रशस्ति - ले. कविवाचस्पति। ई. 11 वीं शती। उत्कल के इतिहास की दृष्टि से यह महत्त्वपूर्ण रचना है। भवभूतिवार्ता - ले.- राघवेन्द्र कविशेखर। रचनाकाल- सन 1660। यह एक ऐतिहासिक चम्पू है। भववैराग्य-शतकम्- ले.-मिचन्द्र । जैनाचार्य । ई. 11 वीं शती। भवानीपंचांगम् - रुद्रयामल तन्त्रान्तर्गत। श्लोक 630। भवानी-सहस्रनाम-पटलम् - रुद्रयामलान्तर्गत। श्लोक 78 । भवानी-सहस्रनाम-बीजाक्षरी - श्लोक- 336।। भवानी-सहस्रनामस्तोत्रम् - रुद्रयामलतन्त्रान्तर्गत यह स्तोत्ररत्नाकर डॉ. राघवन् के अनुसार पत्र में प्रकाशित सामग्री और शैली दोनों अनुपम हैं। इसमें धर्म, साहित्य समाज राजनीति विषयक सरल निबन्ध भी प्रकाशित होते हैं। भविष्यदत्तचरितम् - ले.-पद्मसुन्दर । भविष्यपुराणम् - पारंपारिक क्रमानुसार यह 9 वां पुराण है और श्लोकसंख्या 1,45,000 है। इसके नाम से ही ज्ञात होता है कि यह भविष्य की घटनाओं का वर्णन है। इस पुराण का रूप समय समय पर परिवर्तित होता रहा है. अतः प्रतिसंस्कारों के कारण इसका मूल रूप अज्ञेय होता चला गया है। समय समय पर घटित घटनाओं को विभिन्न समयों के विद्वानों ने इसमें इस प्रकार जोडा है कि इसका मूल रूप परिवर्तित हो गया है। ऑफ्रेड ने तो 1903 ई. में एक लेख लिख कर 'साहित्यिक धोखाबाजी' की संज्ञा दी है। वेंकटेश्वर प्रेस से प्रकाशित “भविष्यपुराण" में इतनी सारी नवीन बातों का समावेश है, जिससे इस पर सहसा विश्वास नहीं होता। "नारदीयपुराण" में इसकी जो विषय सूची दी गई है, उससे पता चलाता है कि इसमें 5 पर्व हैं- ब्राह्मपर्व, विष्णुपर्व, शिवपर्व, सूर्यपर्व व प्रतिसर्ग पर्व। इसकी श्लोकसंख्या- 14 हजार है। नवलकिशोर प्रेस लखनऊ से प्रकाशित आवृत्ति में 2 खंड हैं। (पूर्वार्ध व उत्तरार्ध) तथा उनमें क्रमशः 41 और 171 अध्याय हैं। इसकी जो प्रतियां उपलब्ध हैं, उनमें "नारदीयपुराण" की सूची पूर्णरूपेण प्राप्त नहीं होती। इस पुराण में मुख्य रूप से वर्णाश्रम धर्म का वर्णन है, तथा नागों की पूजा के लिये किये जाने वाले नागपंचमी व्रत के वर्णन में नाग, असुरों व नागों से संबंद्ध कथाएं दी गई 230/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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