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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra लक्ष्मीविमलकृत शान्तिभक्तामर रत्नसिंहरिकृत नेमिभक्तामर (श्लोक 49 ) धर्मवर्धनागणिकृत वीरभक्तामर धर्मसिंहसूरिकृत ナ सरस्वती भक्तामर, तथा जिनभक्तामर, आत्मभक्तामर, श्रीवल्लभभक्तामर और कालूभक्तामर जैसे स्तोत्र उल्लेखनीय हैं। इस स्तोत्र की पद्यसंख्या 44 या 48 मानी जाती है। (2) ले. अप्पय्य दीक्षित । भक्तिकुलसर्वस्वम् - पूजा, ध्यान, जप, बलि, न्यास, धूपदीप, भूतशुद्धि, पुष्प, चन्दन, हवन आदि के बिना जिस साधन से देवी प्रसन्न होती है और साधकों का कल्याण होता है, वह तारा सहस्त्रनाम है। उसी सहस्रनाम का माहात्म्य इसमें प्रतिपादन किया गया है। भक्तिचन्द्रोदयम् - ले. श्री. वेंकटकृष्ण राव (सन 1957 में "मंजूषा" में प्रकाशित। अंकसंख्या तीन । भारतीय परंपरानुसार लिखित दीर्घ नाट्यसंकेत। नायक- भगवान् पुरुषोत्तम (विष्णु) कथासार - पुरुषोत्तम नालन्दा ग्राम में उदास बैठे हैं कि मानवता क्षीण हो रही है। नारद उनसे कहते हैं कि वें समाधिस्थ वेदव्यास से मिलेंगे। व्यास भी दुखी होकर नारद से कहते हैं कि शंकर-रामानुज को लोग भूल रहे हैं। मैसूर के वृन्दावन उद्यान में शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य चिन्तित है कि उनके दर्शाये मार्ग पर लोग नहीं चलते। अन्त में सन्देश है कि "यं शैवाः समुपासते" का प्रचार सार्वत्रिक प्रेम तथा सौहार्द के लिए अवश्यंभावी है। www.kobatirth.org भक्तिजयार्णव ले. रघुनन्दन। ये सम्भवतः प्रसिद्ध रघुनन्दन भट्टाचार्य से भिन्न है। ले. - प्रज्ञाचक्षु · - · 228 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड उसके शांत भक्तिरस, प्रीति, प्रेम, वात्सल्य एवं मधुर भक्तिरस नामक भेद किये गये हैं। उत्तर विभाग में हास्य, अद्भुत वीर, करुण, रौद्र, बीभत्स एवं भयानक रसों का वर्णन है। इसका रचना - काल 1541 ई. है। रूप गोस्वामी के भतीजे जीव गोस्वामी ने इस ग्रंथ पर 'दुर्गमसंगमनी' नामक टीका लिखी है। इसका हिंदी अनुवाद भी प्रकाशित हो चुका हैं । भक्तिरसायनम् ले. मधुसूदन सरस्वती काटोल्लपाडा के (बंगाल) निवासी ई. 16 वीं शती । भक्तिरसावले. कृष्णदास | भक्तिरहस्यम् ले. सोमनाथ 1 भक्तिवर्धिनी - ले वल्लभाचार्य । भक्तिविवेक ले. श्रीनिवास। यह ग्रंथ रामानुज सम्प्रदाय के लिए लिखा है । गुलाबराव महाराज । भक्तितत्त्वविवेक विदर्भनिवासी । भक्तिनिर्णय ले. विठ्ठलनाथ पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक आचार्य | वल्लभ के सुपुत्र तथा वल्लभ संप्रदाय की सर्वांगीण श्री वृद्धि करने वाले गोसाई । भक्तिप्रकाश ले. वैद्य भक्तिहंस । आठ उद्योतों में पूर्ण । रघुनन्दन भक्तिमंजरी - ले.- त्रिवांकुर ( त्रावणकोर) नरेश राजवर्म कुलशेखर ई. 19 वीं शती । 1 भक्तिमंदाकिनी - ले.- पूर्णसरस्वती । ई. 14 वीं शती (पूर्वार्ध) । । I भक्तिमार्गमर्यादा ले. विठ्ठलेश्वर भक्तिरत्नाकर ले. नरहरि चक्रवर्ती। पिता शिवदास । भक्तिरसामृतसिंधु ले रूपगोस्वामी ई. 16 वीं शती भक्तिरस का अनुपम ग्रंथ । ग्रंथ का विभाजन 4 विभागों में हुआ है, और प्रत्येक विभाग अनेक लहरियों में विभक्त है। पूर्व विभाग में भक्ति का सामान्य स्वरूप एवं लक्षण प्रस्तुत किये गये हैं तथा दक्षिण विभाग में भक्तिरस के विभाव, अनुभाव, स्थायी, सात्त्विक व संचारी भावों का वर्णन है । पश्चिम विभाग में भक्तिरस का विवेचन किया गया है, तथा - 2) ले. नारायणभट्ट । ई. 16 वीं शती । भक्तिविष्णुप्रियम् (नाटक) ले. यतीन्द्रविमल चौधुरी (श. 20) "प्रीतिविष्णुप्रिय" का पूरक अंश प्रथम अभिनय दिसंबर 1959 में पाण्डिचेरी के अरविन्दाश्रम में । 1962 में राष्ट्रपति की उपस्थिति में दिल्ली के सप्रू हाऊस में अभिनीत । "प्राच्यवाणी" द्वारा 12 बार अभिनीत । कथासार -पत्नी विष्णुप्रिया पर माता की सेवा का भार सौंप कर चैतन्य महाप्रभु संन्यास लेते हैं। विष्णुप्रिया यावज्जीवन वैष्णवधर्म का प्रचार करते हुए परलोक सिधारती है। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भक्तिस्तववैभवम् - ले. जीवदेव । भक्तिशतकम् - ले. रामचन्द्र कविभारती भक्तिरस परिप्लुत 100 छन्दों की उत्तम काव्यकृति। इस में ब्राह्मणभक्ति की विचारधारा से मिलती जुलती बुद्ध संप्रदाय की भक्तिविचारधारा व्यक्त हुई है। यह महायान तथा हीनयान दोनों संप्रदायों से समान रूप में सम्बध्द । For Private and Personal Use Only ले. विट्ठलनाथ, या विट्ठलेश आचार्य वल्लभ के सुपुत्र एवं वल्लभ संप्रदाय के सुप्रसिद्ध आचार्य । भक्तिहेतुनिर्णयले विठ्ठलेश रघुनाथ द्वारा इस पर टीका है। भगमालिनीसंहिता - यह नित्याषोडशिकार्णव का एक भाग है। भगवदनविधिले. रघुनाथ भगवद्गीताभाष्यार्थ । ले. - बेल्लमकोण्ड आंधनिवासी। ई. 19 वीं शती । भगवत्पादचरितं (काव्य) - ले. घनश्याम। ई. 18 वीं शती । भगवद्-बुद्ध-गीता- ले. प्राध्यापक इन्द्र | कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय । पालीभाषा के अध्यापक । धम्मपद का संस्कृत अनुवाद। भगवद्भक्तिरत्नावली • ले. विष्णुपुरी मैथिल ग्रंथरचना काशी में हुई। इस पर लेखक ने सन् 1634 में कान्तिमाला - - रामराय ।
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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