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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ई. 17 वीं शती। अद्वैतदीपिका - (1) ले.- नृसिंहाश्रम (ई. 16 वीं शती) (२) लेखिका- कामाक्षी। अद्वैतब्रह्मसिद्धि - ले- काश्मीरक सदानंद यति (ई. 17 वीं शती) विषय- वेदान्त के एकजीवत्व-सिद्धान्त का प्रतिपादन । अद्वैतमंजरी - (निबंध) ले.- नल्ला दीक्षित । ई. 17 वीं शती। अद्वैतविजयः - ले.- बेल्लमकोण्ड रामराय। आन्ध्रनिवासी। 19 वीं शती। अद्वैतवेदान्तकोश - ले.- केवलानन्द सरस्वती (ई. 19-20 वीं शती) वाई (महाराष्ट्र) के निवासी। अद्वैतसिद्धांतविद्योतन - ले. ब्रह्मानंद सरस्वती। वंगनिवासी। ई. 17 वीं शती। अद्वैतसिद्धान्तवैजयन्ती - ले.- त्र्यंबक शास्त्री। अद्वैतसिद्धि - ले.- मधुसूदन सरस्वती। काटोलपाडा (बंगाल) तथा वाराणसी के निवासी। ई. 16 वीं शती। अद्वैतामृतसारः - ले.- प्रा. द्विजेन्द्रलाल पुरकायस्थ । जयपुर-निवासी। अधरशतकम् - ले.- नीलकण्ठ, 1956 में प्रकाशित। रॉयल एशियाटिक सोसायटी के गोरे की प्रस्तुति। 118, श्लोक। शृंगार रस। अधर्म-विपाक - (नाटक) ले. अप्पाशास्त्री राशिवडेकर (सन 1873-1913) केवल दो अंक उपलब्ध। योजना सम्भवतः पांच अंकों की थी। विषय- धार्मिक विप्लव से बचने हेतु जागरण का सन्देश। कथासार- धर्म के शत्रु कलि और अधर्म का नौकर पंकपूर तापस-वेष में रहकर लोगों का चारित्र्य भ्रष्ट करते हैं। धर्म की कन्याओं (श्रद्धा और भक्ति) को अधर्म बन्दी बनाता है। धर्म की पत्नी श्रुतिशीलता व्याकुल होती है। शान्तिकर्म का अनुष्ठान होनेवाला है। आगे का कथांश अप्राप्य। अध्यर्धशतकम् (सार्धशतकम्) - लेखक- मातृचेट, 13 भाग। अनुष्टुप् के 153 छन्दों में निबद्ध। बुद्धस्तोत्र के रूप में श्रेष्ठ कृति। मूल संस्कृत प्रति महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने 1926 में, सास्कया नामक तिब्बती विहार में प्राप्त की। राहुलजी तथा के.पी. जायसवाल ने बिहार एण्ड उडीसा रिसर्च पत्रिका में प्रकाशित की। तिब्बती, चीनी, लोखारियन (मध्य एशिया) आदि अनुवाद उपलब्ध । यह स्तोत्र भारत की अपेक्षा बाहर विशेष रूप से ज्ञात है। इस स्तोत्र में भगवान बुद्ध का आध्यात्मिक जीवन प्रारम्भ से अंत तक सरल भाषा में प्रस्तुत है। अध्यात्म-कमलमार्तण्ड - ले.- राजमल पांडे। ई. 16 वीं शती।। अध्यात्मतरंगिणी - ले- शुभचन्द्र । जैनाचार्य । ई. 16 वीं शती। अध्यात्मतरंगिणी - ले.- गणधरकीर्ति। जैनाचार्य। ई. 12 वीं शती। अध्यात्म-रामायण - आध्यात्मिक रामसंहिता भी कहते हैं। उमा-महेश्वर के संवाद से ग्रंथ बना है। मूलाधार वाल्मीकि रामायण है परंतु मूल कथा में किचित् परिवर्तन है। वाल्मीकि रामायण में अग्निदत्त पायस दशरथ द्वारा वितरित है। सुमित्रा को दो बार दिया गया यह कथन है। इसमें कौसल्या एवं कैकेयी ने अपने हिस्से का आधा-आधा सुमित्रा को दिया। ___ इसमें 7 कांड एवं 65 सर्ग हैं। रचनाकाल-संभवतः 15 वीं शताब्दी। किसी शिवोपासक रामशर्मा द्वारा इसकी रचना मानी जाती है। वेदान्त एवं भक्ति का मेल लाने की दृष्टि से गीता एवं श्रीमद्भागवत के आधार पर रचना की गई है। ग्रंथ में सर्वत्र अद्वैतमत का प्रभाव है। भगवान् कृष्ण ने अर्जुन को गीता द्वारा उपदेश दिया। इसमें रामचंद्रजी ने लक्ष्मण को उपदेश दिया है। प्रस्तुत ग्रंथ के नाम से ही इसकी विशेषता स्पष्ट होती है। इसके श्रीराम रावणारि अयोध्यापति नहीं, न ही सीताजी जनक-नंदिनी हैं। इस रामायणकार का समग्र ध्यान, राम-सीता .. के आध्यात्मिक रूप को चित्रित करने में लगा है। तदनुसार राम पुरुष हैं और सीताजी प्रकृति हैं, राम परब्रह्म हैं, और सीता उनकी अनिर्वचनीया माया हैं। इस प्रकार इस रामायण में मानव-समाज के हितार्थ, इसी ब्रह्म-माया की अनोखी चरित्रावलि का चित्रण ग्रंथारंभ के मंगल श्लोक से ही मिल जाता है - यःपृथ्वीभरवारणाय दिविजैः संप्रार्थिश्चिन्मयः संजातः पृथिवीतले रविकुले मायामनुष्योऽव्ययः । निश्चक्रं हतराक्षसः पुनरगाद् ब्रह्मत्वमाद्यं स्थिरां कीर्ति पापहरां विधाय जगतां तं जानकीशं भजे।। आगे चल कर उत्तरकांड के अंतर्गत सुप्रसिद्ध 'राम-गीता' में तो अद्वैत-वेदांत की प्रख्यात पद्धति से 'तत्' और 'त्व' पदार्थों के परिशोधन और ज्ञान का वर्णन बडी विशुद्धता तथा विशदता के साथ किया गया है। इस प्रकार ज्ञान को मूल भित्ति मान कर प्रस्तुत रामायण में श्रीराम के चरित्र का चित्रण किया गया है। तुलसीदासजी के रामचरित मानस पर इस ग्रंथ का प्रभाव दिखाई देता है। अध्यात्मशिवायन - ले.- श्रीधर भास्कर वर्णेकर। विषयस्वामी विवेकानंद और लोकमान्य तिलक के संवाद द्वारा छत्रपति शिवाजी महाराज का संक्षिप्त पद्यात्मक चरित्र। भारती प्रकाशनजयपुर द्वारा हिंदी अनुवादसहित प्रकाशित । अध्वरमीमांसाकुतूहलवृत्तिः - ले- वासुदेव दीक्षित (बालमनोरमा टीकाकार)। विषय- धर्मशास्त्र । अधिकरणचन्द्रिका - ले.- रुद्रराम । अधिकरणकौमुदी - ले.- देवनाथ ठाकुर । ई. 16 वीं शती। अधिमासनिर्णयः - सन 1901 में त्रिचनापल्ली से इस मासिक संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड /7 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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