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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पास सन्धि का प्रस्ताव भेजते हैं। रावण लंका में अनेक मायावियों को राम के साथ युद्ध करने हेतु बुला लेता है। मायावी शम्बर वानरवेष धारण कर राम की सेना में घुसता है, जिसे जाम्बवान् सन्देहवश पकड लेता है परन्तु मायावी , शम्बर तत्काल अदृश्य होता है। जाम्बवान् दधिमुख वानर को शम्बर समझ कर दण्ड देना चाहता है। इस बीच शम्बर प्रण करता है कि वह दधिमुख को मरवा डालेगा। फिर दधिमुख के वेष में वह राम को बताता है कि अंगद तो रावण से मिल चुका है। राम-लक्ष्मण वहां चल देते हैं तो अंगद के वेष में शम्बर, सुग्रीव के कृत्रिम सिर को उनके आगे पटक देता है परन्तु लक्ष्मण को सन्देह होता है कि यह वास्तव में अंगद नहीं होगा। इतने में सुग्रीव वहां पहुंचता है तो राम आश्वस्त हो जाते हैं। परन्तु रावण का सेनापति शम्बर को वास्तविक अंगद मान बन्दी बनाता है। शम्बर अपनी वास्तविकता उसे बतलाता है। जाम्बवान् यह सुनकर उसे पुनरपि पकड लेता है। फिर युद्ध में सेनापति के मारे जाने पर रावण स्वयं युद्धभूमि की ओर चलता है। बिभीषण राम को रावण का वह अद्भुत दर्पण प्रदान करता है जिसे रावण ने श्वशुर से उपहार रूप में पाया था। इस दर्पण में तीन योजन के घेरे में घटने वाली सभी घटनायें प्रतिबिम्बित होती थीं। कुम्भकर्ण तथा इन्द्रजित् मारे जाते हैं और हनुमान लंका को उद्ध्वस्त करते हैं। फिर मायायुद्ध चलता है और अन्त में रावण मारा जाता है। राम का रूप धारण कर मयासुर सीता पर परगृहवास का कलंक लगा कर उसे त्यागने की घोषणा करता है। अभिभूत सीता अग्निप्रवेश करती है, परन्तु आकाशवाणी द्वारा सीता की शुद्धता प्रमाणित होती है और देवताओं के साथ दशरथ राम-सीता को आशीर्वचन देते है। अद्भुतपंजर - रचयिता- नारायण दीक्षित। समय- 18 वीं शती। सन 1705 ई. के महामखोत्सव में अभिनीत नाटक समसामयिक राजनीतिक घटनाओं की पृष्ठभूमि, परन्तु एक भी घटना इतिहास से मेल नहीं खाती। प्रमुख रस- शृंगार और वीर। कथासार- तंजौर के राजा शाहजी सारसिका नामक युवती पर मोहित हो गये जिसे महारानी उमादेवी राजा की दृष्टि से बचाती आयी थी। सारसिका और राजा परस्पर आकृष्ट हुए। रानी को यह बात विदित होने पर उसने सारसिका को लकडी के पिंजरे में बन्दी बना दिया। बाद में पता चला कि सारसिका वास्तव में महारानी की मौसेरी बहन लीलावती है। रानी को लीलावती के जन्म के समय से ही ज्ञात था कि ज्योतिषियों के अनुसार लीलावती का पति सार्वभौम राजा होगा और ज्येष्ठ सपत्नी के पुत्र के युवराज बनने पर उसका अनुवर्तन करेगा। इसलिए वह लीलावती को सपत्नी बनाने के लिए मानसिक रूप से उद्यत थी ही। जब पता चलता है कि सारसिका ही लीलावती है तब सभी की सम्मति से उसका विवाह राजा के साथ सम्पन्न होता है। अद्भुतसागर - ज्योतिष-शास्त्र का प्रसिद्ध ग्रंथ। (प्रणयन-काल 1168 ई.) प्रणेता- मिथिला-नरेश लक्ष्मणसेन जिन्होंने अपने राज्याभिषेक के 8 वर्ष पश्चात् इस ग्रंथ की रचना की थी। यह अपने विषय का एक विशालकाय ग्रंथ है जिसमें लगभग 8 सहस्र श्लोक हैं। इस ग्रंथ में ग्रहों के संबंध में जितनी बातें लिखी गई हैं, ग्रंथकार ने स्वयं उनकी परीक्षा करके उनका विवरण दिया है। बीच-बीच में गद्य का भी प्रयोग किया है। प्रस्तुत ग्रंथ के नामकरण की सार्थकता उसके वर्ण्यविषयों के आधार पर सिद्ध होती है। इसमें विवेचित विषयों की सूची इस प्रकार है- सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, भृगु, शनि, केतु, राहु, धृव, ग्रहयुद्ध, संवत्सर, ऋक्ष, परिवेश, इंद्रधनुष, गंधर्व-नगर, निर्घात, दिगदाह, छाया, तमोधूमनीहार, उल्का, विद्युत, वायु, मेघ, प्रवर्षण, अतिवृष्टि, कबंध, भूकंप, जलाशय, देव-प्रतिमा, वृक्ष, गृह, गज, अश्व, बिडाल, आदि । इस ग्रंथ का प्रकाशन प्रभाकरी यंत्रालय काशी से हो चुका है। अद्भुतांशुकम् - ले- जग्गू श्रीबकुलभूषण। रचनाकाल सन 1931। बंगलोर से 1932 में प्रकाशित नाटक। संस्कृत वि.वि. वाराणसी में प्राप्य। यदुगिरि के भगवान् संपतकुमार के हीरकिरीटोत्सव के अवसर पर प्रथम अभिनीत। अंकसंख्याछः । इस कपट-नाटक में छायातत्त्व का विनिवेश है। एकोक्तियों तथा सूक्तियों की प्रचुरता। किरतनिया अथवा अंकिया नाटककोटि की रचना। प्राकृत का समावेश। वेणीसंहार नाटक के पूर्व की महाभारतीय कथावस्तु । विशेषताएं- मंच पर रथयात्रा और द्रौपदी चीरहरण के दृष्य, श्रीकृष्ण का मृग बनना, भीम का स्त्रीवेष, पात्रों का एकसाथ मंच पर रहना आदि। अदिति-कुण्डलाहरणम् (नाटक) - ले.- रामकृष्ण कादम्ब (ई. 19 वीं शती) सिंधिया ओरियण्टल इन्स्टिट्यूट, उज्जैन में हस्तलिखित प्रति उपलब्ध है। दाशरथिरथोत्सव में अभिनीत। अन्धविश्वास की तुच्छता, सत्यपरायणता की महिमा, वर्णाश्रम-धर्म का पालन आदि का प्रतिपादन इसमें है। अंकसंख्या- सात । राष्ट्रीय एकात्मता का सन्देश दिया है। कथासार- देवताओं की माता अदिति के कुण्डल का नरकासुर अपहरण करता है। इन्द्र का सन्देश पाकर श्रीकृष्ण भारत के विविध प्रदेशों के राजाओं को एकत्र कर नरकासुर को परास्त करते हैं। इस संघर्ष के समय सत्यभामा श्रीकृष्ण के साथ थी। अद्वयतारकोपनिषद - 108 उपनिषदों में से 53 वां उपनिषद् । इसका शुक्ल यजुर्वेद में समावेश है। ब्रह्मप्राप्ति के तीन लक्षण दिये हैं। 1) अंतर्लक्ष्यलक्षण, 2) बहिर्लक्ष्यलक्षण। 3) मध्यलक्ष्यलक्ष्मण। अद्वैतचंद्रिका - (टीका ग्रंथ) ले- ब्रह्मानंद सरस्वती। वंगनिवासी। 6/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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