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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नाम दिये हैं और आदेश दिया है कि कृत, त्रेता, द्वापर और कृष्ण ने प्रद्युम्न सात्यकि और सत्यभामा के साथ गरुड पर कलि चार युगों में क्रमशः मनु, गौतम, शंखलिखित तथा आरूढ होकर इन्द्र पर चढाई कर दी और उन्हे परास्त कर पराशर की स्मृतियों को प्रमाण माना जाये। प्रस्तुत स्मृति में स्वर्ग लोक से पारिजात वृक्ष का हरण किया। इस महाकाव्य समाविष्ट विषय हैं- चार युगों के धर्म, विविध दृष्टिकोण से में संपूर्ण भारतवर्ष का वर्णन करते हुए कवि ने सांस्कृतिक इन चार युगों के बीच का अंतर, षट्कर्म, अतिथिसत्कार, एकता का परिचय दिया है। इस महाकाव्य का प्रकाशन क्षत्रिय वैश्य व शूद्रों के निर्वाह के साधन, कलियुग में गृहस्थों मिथिला, संस्कृत विद्यापीठ, दरभंगा से 1956 ई. में हो चुका है। के कर्त्तव्य, जननमरणाशौच की शुद्धि, दरिद्री, मूर्ख, अथवा 2) ले. रघुनाथ। तंजौर के नायकवंशीय अधिपति । रोगी पति का त्याग करने वाली पत्नी को सजा, स्त्रियों का 3) ले. गोपालदास। पुनिर्विवाह, श्वान-दशादि की शुद्धि, चांडालादि द्वारा मारे गए पारिजातहरणम् (नाटक) - ले. रमानाथ शिरोमणि। सन ब्राह्मण देह को स्पर्श किया जाने पर प्रायश्चित्त, अग्निहोत्री 1904 में प्रकाशित । अंकसंख्या-सात । नृत्य संगीतादि से भरपूर । ब्राह्मण की देशांतर में मृत्यु होने की स्थिति में उसकी अंत्यक्रिया चर्चरी का प्रयोग। प्रदीर्घ वर्णन। परिहास इत्यादि गुणों से के विषय में विचार, विभिन्न पशु-पक्षियों की हिंसा की जाने युक्त रचना। पर प्रायश्चित्त, काष्ठ, धातु आदि के बने पात्रों की शुद्धि, रजस्वला स्त्रियों द्वारा आपस मे स्पर्श किया जाने पर प्रायश्चित्त, 2) ले. कुमार ताताचार्य। जन्मभूमि-नावलापवका। ई. १७ वीं शती। पांच अंकों का नाटक। वैदर्भीय शैली। नरकासुर अनजाने में गाय-बैलों की हिंसा होने पर प्रायश्चित्त, अगम्यागमन का वध तथा सत्यभामा के लिये पारिजात का हरण इस संबंधी प्रायश्चित्त आदि । प्रस्तुत स्मृति में पराशरजी ने अपने कुछ मत व्यक्त किये हैं। उदाहरणार्थ- पति के गायब होने नाटक की कथावस्तु है। पात्रसंख्या-पैंतीस। पर, मृत होने पर अथवा क्लीब होने पर भी पत्नी ने दूसरा पारिजातहरणचंपू - ले. शेषकृष्ण। ई. 16 वीं शती। इस विवाह नहीं करना चाहिये तथा "देशभंगे प्रवासे वा व्याधिषु काव्य में श्रीकृष्ण द्वारा स्वर्ग के पारिजात वृक्ष के हरण की व्यसनेष्वपि । रक्षेदेव स्वदेहादि पश्चाद्धर्म समाचरेत्।।" अर्थ- देश कथा वर्णित है जो "हरिवंश-पराण" की तद्विषयक कथा पर में अराजकता निर्माण होने पर प्रवास में आरोग्य ठीक न रहने आधारित है। इसमें 5 स्तबक हैं और प्रधान रस श्रृंगार है तथा संकटग्रस्त रहने की स्थिति में पहले अपने शरीर की तथा अंतिम स्तबक में युद्ध का वर्णन है। नारद मुनि श्रीकृष्ण रक्षा करनी चाहिये और बाद में करना चाहिये धर्म का को पारिजात का पुष्प देते हैं जिसे कृष्ण से रुक्मिणी को भेंट आचरण। मिताक्षरा, अपरार्क एवं स्मृतिचंद्रिका में तथा हेमाद्रि करते हैं। इससे सत्यभामा को ईर्ष्या होती है और वे कृष्ण व विश्वरूप के ग्रंथों में पराशर स्मति के वचन उदधत किये। से मान करती है। तब कृष्ण नारद द्वारा इन्द्र के पास पारिजात गए हैं। विद्वानों के मतानुसार इस स्मति की रचना ईसा की . वृक्ष भिजवाने का संदेश भेजते हैं। इन्द्र वक्ष देना स्वीकार पहली से पांचवीं शताब्दी के बीच की गई। नहीं करते। तब यादवों द्वारा पारिजात वृक्ष का हरण किया जाता है और सत्यभामा प्रसन्न हो जाती है। यही इस चंपू पाराशरसंहिता - ले. पराशर। ई. 8 वीं शती। विषय-वैद्यक की कथा है। इस काव्य में कवि ने मान एवं विरह का बड़ा शास्त्र। ही आकर्षक वर्णन किया है। सत्यभामा के सौकुमार्य का चित्र पारिजात - ले. भानुदास। (अनेक ग्रंथों के नाम इस शीर्षक अतिशयोक्तिपूर्ण है। इसका प्रकाशन काव्यमाला (मुंबई) से से पूर्ण होते हैं यथा मदनपारिजात, प्रयोगपारिजात, विधानपारिजात 1916 ई. में हुआ था। इसकी भाषा अनुप्रासमयी व प्रसादगुण-युक्त है, तथा पात्रानुरूप है। इस चंपू काव्य का पारिजातसौरभ - ले. स्वामी भगवदाचार्य। विषय- महात्मा प्रणयन महाराजाधिराज नरोत्तम के आदेश से हुआ है। गांधी का पद्यात्मक चरित्र। इसी चरित्र का अंत लेखक ने पारिजातापहार नामक अन्य ग्रंथ में किया है। पार्थपाथेयम् (रूपक) - ले. काशीराज प्रभुनारायणसिंह । पारिजातहरणम् (महाकाव्य) - ले. कवि कर्णपूर । ई. 16 शासनकाल-सन 1886-1925। सन 1928 में रामनगर में श्री. वीं शती। इसकी रचना "हरिवंशपुराण' की पारिजातहरण कथा लक्ष्मण झा द्वारा प्रकाशित। अंकसंख्या-तीन। सुपरिष्कृत हास्य के आधार पर हुई है। कथा इस प्रकार है- एक बार नारद प्रधान रचना। प्रधान रस-शृंगार। सशक्त उक्तियां, भावानुसारी ने श्रीकृष्ण को उपहार के रूप में एक पारिजात- पुष्प दिया। शब्दों का प्रयोग गीतों की अधिकता, कतिपय गीत प्राकृत में श्रीकष्ण ने वह पष्प रुक्मिणी को समर्पित किया। इस पर इत्यादि इसकी विशेषताएं हैं। यह उल्लाघ कोटि का उपरूपक सत्यभामा को रोष हुआ देख, कष्ण ने उसे पारिजात वृक्ष है। विषय- अर्जुन तथा सुभद्रा के प्रणय की कथा। लाकर देने का वचन दिया। उन्होंने इन्द्र के पास यह समाचार पार्थाश्वमेधम् (काव्य) - ले. म. म. पंचानन तर्करन । भेजा, पर इन्द्र पारिजात वृक्ष देने को तैयार न हुए। तब पार्थिवलिंगपूजनविधि - शिव-पार्वती-संवादरूप । इसमें पार्थिव 190 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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