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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यह 'मुग्धबोध' की टीका है। (4) ले- सीरदेव।। परिभाषावृत्तिव्याख्यानम् - ले-रामभद्र दीक्षित। कुम्भकोण निवासी। ई. 17 वीं शती। विषय- व्याकरण । परिभाषेन्दुशेखर - ले- नागोजी भट्ट। पिता- शिवभट्ट। मातासती। ई. 18 वीं शती। पाणिनीय व्याकरण का यह एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण ग्रंथ माना गया है। "शेखरन्तं व्याकरणम्" यह उक्ति इस ग्रंथ की महत्ता सूचित करती है। व्याकरण की 130 परिभाषाओं की चर्चा इस ग्रंथ में हुई है। इस की निम्न लिखित टीकाएं प्रसिद्ध है :- (1) वैद्यनाथ पायगुंडे कृत "गदा" (2) भैरवमित्रकृत भैरवी (3) उदयशंकर पाठक कृत पाठकी (4) हरिनाथकृत अंकांडताण्डवम् (5) मन्तुदेवकृतदोषोद्धरण। (6) भीमभट्टकृत भैमी। (7) शंकरभट्टकृत "शांकरी" (8) लक्ष्मीनृसिंहकृत 'त्रिशिखा। (9) विष्णुशास्त्री भट्टकृत "विष्णुभट्टी" (19) शिवनारायणशास्त्री कृत "विजया" और गुरुप्रसादशास्त्री कृत "वरवर्णिनी"। नागपुर के प्रसिद्ध न्यायाधीश रावबहादूर नारायण दाजीबा वाडेगावकर ने इस ग्रंथ का विवरणात्मक अनुवाद मराठी में किया है। प्रकाशक- उद्यम प्रेस, नागपुर। परिवर्तनम् (रूपक)- ले. कपिलदेव द्विवेदी। सन 1966 में लखनौ से प्रकाशित। रचना - सन 1950 में। कथासार - कन्या के विवाह में अत्यधिक व्यय होने पर शंकर अपना घर किसी सेट को बेचता है। कुंए तथा सीढी की आय पर जीविका चलाने को पत्नी से कहकर शंकर मुंबई जाता है। वहां से लौटने पर विदित होता है कि सेठ ने कुआं भी हथिया लिया है। न्यायालय सेट के पक्ष में निर्णय देने वाला है, इतने में आकाशवाणी प्रभाव से न्यायाधीश उसे पंचायत भेजता है जहां शंकर के पक्ष में निर्णय होता है। परिशिष्टदीपकलिका - ले. शूलपाणि।। परिशुद्धि - ले. उदयनाचार्य । ई. 10 वीं शती (उत्तरार्ध)। परीक्षापद्धति - ले. वासुदेव। विश्वरूप, यज्ञपार्श्व, मिताक्षरा, शूलपाणि पर आश्रित धर्मशास्त्र विषयक ग्रंथ । विषय- न्यायालयीन दिव्यपरीक्षा। समय- 1450 ई. के पश्चात्। परीक्षामुखम् (सूत्रग्रंथ) - ले. जैन नैयायिक माणिक्यनंदी। जैनन्याय के अध्येताओं के लिये अत्यंत उपयोगी ग्रंथ। इस ग्रंथ पर प्रभाचंद्र की व्याख्या है। पर्जन्यप्रयोग - ले.हेमाद्रि । ई. 13 वीं शती। पिता- कामदेव। पर्णालपर्वत-ग्रहणाख्यानम्- ले. जयराम पिण्ड्ये। ई. 17 वीं शती। इसमें पांच प्रकरणों का संवादरूप आख्यान द्वारा छत्रपति श्री. शिवाजी महाराज के जीवन चरित्र के कतिपय प्रसंगों का वर्णन तथा उस युद्ध का वर्णन है, जिसके द्वारा शिवाजी के सैनिकों ने पन्हाळगढ़ नामक दुर्ग पर विजय प्राप्त की थी। इस आख्यान से उस समय की अनेक घटनाएं प्रकाश में आती हैं। शिवाजी महाराज व समर्थ गुरु रामदास की पारस्पारिक भेंट विषयक जानकारी भी इस आख्यान द्वारा प्राप्त होती है। शिवाजी द्वारा दूसरी बार की गई सूरत शहर की लूट से लेकर शिवाजी के एक सेनापति प्रतापराव गजर और बहलोलखान के बीच हुए युद्ध तक का, अर्थात् सन 1670 से लेकर सन 1674 तक का कथा भाग भी इस आख्यान में समाविष्ट है। शिवाजी की युद्धनीति का परिचय इस ग्रंथ में ठीक होता है। शिवाजी के पिता राजा शाहजी की स्तुति में राधा माधवविलासचंपू नामक काव्यग्रंथ के लेखक श्री. जयराम पिण्ड्ये, इस आख्यान के रचयिता हैं। श्री. के.व्ही. लक्ष्मणराव के मतानुसार कवि जयराम कर्नाटक के (बंगलोर स्थित) शासक शाहजी, उनके उत्तराधिकारी (व शिवाजी के सौतेले भाई) एकोजी तथा छत्रपति शिवाजी, इन तीनों के आश्रित कवि रहे थे। राधामाधवविलासचंपू के समान ही प्रस्तुत पर्णालपर्वतग्रहण आख्यान का भी ऐतिहासिक महत्त्व निर्विवाद माना गया है। पर्यन्तपंचाशिका - ले. अभिनवगुप्ताचार्य। विषय- मन्त्रों एवं मुद्राओं का रहस्य। पर्यायोक्तिनिस्यन्द (काव्य)- ले. रामभद्र दीक्षित। कुम्भकोणं निवासी। ई. 17 वीं शती। पर्वनिर्णय - ले. गणपति रावल। पिता- हरिदास। पितामहरामदास (औदीच्य गुर्जर एवं गौडाधीश मनोहर द्वारा सम्मानित) । विषय- दर्श एवं पूर्णिमा के यज्ञों एवं श्रादों के सृचित कालों पर विवेचन। रचनासमय- 1685-86 ई.। पलंग - कृष्ण यजुर्वेद की एक लुप्त शाखा। पलंग आचार्य पूर्वदेशीय थे। पलपीयूषलता - ले. मदनमनोहर । पिता- मधुसूदन। विषयविभिन्न प्रकार के मांसों का धार्मिक विधि में उपयोग। 7 अध्यायों का ग्रंथ। पलाण्डुमण्डनम् (प्रहसन)- ले. हरिजीवन मिश्र। ई. 17 वीं शती। विषय- लिङ्गोजी भट्ट की दूसरी पत्नी चिन्चा के गर्भाधान संस्कार के अवसर पर आये हुए अशास्त्रीय भोजी पलाण्डुमण्डन, लशुनपन्त आदि की कथा।। पल्लवदीपिका - ले. श्रीकृष्ण विद्यावागीश भट्टाचार्य। श्लोक196 | विषय- मारण, मोहन, वशीकरण, उच्चाटन, स्तंभन आदि को विधियां। पल्लीकमल - ले. डॉ. रमा चौधुरी। श. 20। "प्राच्यवाणी" द्वारा अभिनीत । ग्रामीण परिवेश में परिहास । पटपरिवर्तन (फ्लॅश बेक) द्वारा पूर्वकथा दर्शाने का तन्त्र । संगीत का बाहुल्य । एकोक्तियों का प्रभावी प्रयोग "अंक" के स्थान पर "दृश्य"। दृश्यसंख्या- नौ। कथासार - नायिका कमलकलिका नायक रूपकुमार पर आसक्त है परंतु माता उसका विवाह मार्तण्ड के साथ कराना चाहती है। नायिका छुपकर नायक से मिलती है जिसे मार्तण्ड देख लेता है और स्वैरिणी मानकर उसके पिता 186/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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