SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 199
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तब तक वे अन्नोदक ग्रहण न करेंगी। अतः राम का संदेश प्राप्त होने पर सीताजी हर्षित हुई। उन्होंने अन्न और जल ग्रहण किया। तत्पश्चात् लंकानगरी को काफी हानि पहुंचा कर हनुमान्जी राम की ओर लौटे। फिर विद्याधरों की सेना के साथ राम आकाश-मार्ग से लंका पहुंचे। रावण को समाचार विदित हुआ। राम का सामना करना उसे भी कठिन प्रतीत हो रहा था। अतः युद्ध से पूर्व बहुरूपिणी विद्या साध्य करने हेतु वह आसनस्थ हुआ। उसकी विद्या-सिद्धि में विघ्न उपस्थित करने का विद्याधरों ने प्रयत्न किया किन्तु विविध प्रकार की बाधाओं में भी अडिग रहकर रावण ने वह विद्या साध्य कर ली। इस बीच राम की सेना ने लंका को चारों ओर से घेर लिया। लक्ष्मण की प्रेरणा से अनेक विद्याधरों ने लंका में प्रविष्ट होकर उपद्रव प्रारंभ कर दिये।। रावण द्वारा किया गया सीता का हरण बिभीषण अन्यायपूर्ण मानता था। वह चाहता था कि रावण अभी भी सन्मार्ग पर आवे, सीता को राम के हवाले करे और लंका पर छाए संकेट को टाले। तदनुसार उसने रावण को पुनः समझाने का प्रयास किया। परंतु रावण ने बिभीषण के हितोपदेश पर ध्यान देने के बदले, उसकी निर्भत्सना ही की। तब रावण का पक्ष छोडकर बिभीषण राम की और जा मिला। फिर उभय पक्षों की सेनाओं में तुमुल युद्ध प्रारंभ हुआ। रावण हजार हाथियों के ऐन्द्र नामक रथ पर आरूढ होकर अपनी सेना के अग्रभाग पर रहा। रावण की और से लड़ने वाले मंदोदरी के पिता मयासुर को राम ने अपने बाण से विद्ध किया। तभी लक्ष्मण ने आगे बढकर, रावण को युद्ध के ललकारा। उस युद्ध में रावण द्वारा छोडी गई शक्ति से मूर्छित होकर लक्ष्मण धराशायी हुए। तब राम विलाप करने लगे। यह समाचार अयोध्या में भी फैल गया। सुनकर अयोध्यावासी दुखी हुए। तब कैकयी ने विशल्या नामक एक कुमारी को लंका भेजा। उसके नानजल के स्पर्श मात्र से लक्ष्मण की मूर्छा दूर हुई। तब लक्ष्मण ने उसी स्थान पर विशल्या से विवाह किया। रावण और लक्ष्मण के बीच पुनः युद्ध प्रारंभ हुआ। लाख प्रयत्न करने पर भी लक्ष्मण को पराभूत न होता देख रावण ने उस पर सूर्य के समान तेजस्वी एक चक्र फेका। परन्तु लक्ष्मण को आघात करने के बदले उस चक्र ने वही चक्र रावण पर फेंका। उस अमोध चक्र के प्रहार से रावण तत्काल मृत्यु को प्राप्त हुआ। रावण के अंत के साथ ही युद्ध की समाप्ति हुई। लंका के सैनिकों तथा लंकावासियों में भगदड मच गई। मंदोदरी सहित राज्य की 18 हजार रानियां रणक्षेत्र में आकर विलाप करने लगीं। राम ने उन सभी को समझाकर शांत किया। फिर जीवन की नश्वरता का ज्ञान होने पर इन्द्रजित, मेघवाहन कुंभकर्ण, मंदोदरी प्रभृति ने जिनदीक्षा ली। मंदोदरी जैन आर्यिका बनी। फिर राम ने धूमधाम के साथ लंका में प्रवेश किया। देवारण्य में जाकर वे सीताजी से मिले। उस समय आकाश में एकत्रित देवताओं व विद्याधरों ने राम और सीता पर पुष्पवृष्टि की। पश्चात् सीता को साथ लेकर राम रावण के महल में गए और वहां के शांतिनाथ जिनालय में जाकर उन्होंने शांतिनाथ की स्तुति की। फिर राम ने बिभीषण का राज्याभिषेक किया। राम और लक्ष्मण लंका में 9 वर्षों तक रहे। उस अवधि में उन्होंने अपनी सभी विवाहित स्त्रियों को लंका में बुलवा लिया और उनके साथ विलास-सुखों का उपभोग किया। इधर अयोध्या में राम की बाट जोहते हुए कौशल्या थक चुकी थी। सुमित्रा को भी अपने पुत्र लक्ष्मण का वियोग असह्य हो उठा था। नारद को उन दोनों की इस अवस्था का अनुभव हुआ। वे अयोध्या से लंका गए और उन्होंने विलास में निमग्न राम और लक्ष्मण को उनकी माताओं का विरह दुःख कथन किया। तब वे दोनों अयोध्या को लौटने का विचार करने लगे। बिभीषण ने केवल सोलह दिन और रूकने की उनसे प्रार्थना की। राम ने उसकी बात मान ली। इस अवधि में बिभीषण ने भरत को राम और लक्ष्मण का कुशल समाचार सूचित करने के साथ ही विद्याधर- कारीगरों के द्वारा अयोध्या नगरी का नूतनीकरण भी करा दिया। तब सभी के साथ राम पुष्पक विमान में बैठकर अयोध्या पधारे। उस प्रसंग पर कुलभूषण केवली वहां पर आए। उनके शुभागमन से सर्वत्र प्रसन्नता छा गई। केवली ने दर्शनार्थ आये राम को जैन धर्म का उपदेश दिया। उन्होंने भरत को भी उनके पूर्व जन्म की बात बताई। उसे सुनते ही भरत का वैराग्य इतना प्रवृत्त हो उठा कि उन्होंने उसी क्षण दिगंबर-दीक्षा धारण कर ली। उस दुःख से कैकयी को अपना जीवन भारभूत प्रतीत हुआ और उसने भी जैन आर्यिका की दीक्षा स्वीकार की। फिर सब राजाओं ने एकत्रित होकर राम और लक्ष्मण दोनों का राज्याभिषेक किया। राम ने उन राजाओं को अलग अलग प्रदेश बांट दिये। इस प्रकार की समुचित व्यवस्था करने के पश्चात् राम स्वस्थ चित्त से अपने राज्य का उपभोग करने लगे। कुछ समय पश्चात् अयोध्या की प्रजा में सीता के चरित्रसंबंधी लोकापवाद प्रसारित हुआ। उस समय सीताजी गर्भवती थीं किन्तु लोकापवाद से बुरी तहर भयभीत राम ने अपने कृतांतवस्त्र नामक सेनापति को आदेश दिया कि वह सीता को वन में छोड आए। सेनापति जिन-मंदिरों के दर्शन के बहाने सीता को गंगा नदी के पार ले गया और वहां उसने उन्हें राम का आदेश सुनाया। सुनकर सीता मूर्छित हो भूमि पर गिर पड़ी। परन्तु थोडी देर बाद उन्होंने सचेत होकर राम के लिये संदेश 182/ सम्बत वाताग कोण - गंश स्वाट For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy