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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंचपादी उणादि- पाणिनीय संप्रदाय के संबद्ध पंचपादी-उणादि-सूत्रों के तीन पाठ हैं। उज्ज्वलदत्त आदि की वृत्ति जिस पाठ पर है, वह है प्राच्य पाठ। क्षीरस्वामी की क्षीरतरंगिणी में उद्धृत पाठ है उदीच्य और नारायण तथा श्वेतवनवासी की वृत्तियां जिस पर है, वह पाठ है दाक्षिणात्य । पंचपादिका - ले- पद्मपादाचार्य। ई. 8 वीं शती। पंचपादिकादर्पण - ले- अमलानन्द। ई. 13 वीं शती। पंचपादिका- विवरणम् - (1) ले-नृसिंहाश्रम। ई. 16 वीं शती। (2) ले- प्रकाशात्मयति। ई- 13 वीं शती। पंचस्कंधप्रकरणम् - ले- स्थिरमति। ई. 4 थी शती। पंचब्रह्मोपनिषद् - कृष्णयजुर्वेद से संबंधित एक नूतन शैव उपनिषद् । इसका प्रारंभ होता है पिप्पल मुनि द्वारा शिवजी को पूछे गए प्रश्न से। “सृष्टि में सर्वप्रथम कौन उत्पन्न हुआ।" इस प्रश्न का उत्तर देते हुए शिवजी बताते हैं कि सद्योजात, अघोर, वामदेव, तत्पुरुष व ईशान क्रमशः प्रथम उत्पन्न हुए। इन पांच को ही 'पंचब्रह्म' संज्ञा प्राप्त है। सद्योजात है पीत वर्ण का, अघोर है कृष्ण वर्ण का, वामदेव है श्वेत वर्ण का, तत्पुरुष है रक्त वर्ण का और ईशान है आकाश के वर्ण का। इन पंचब्रह्मों का रहस्य जानने वाला व्यक्ति मुक्त होता है। अंत में शिवजी ने उपदेश दिया है कि 'नमः शिवाय' मंत्र के जप से उक्त रहस्य समझ में आ जाता है। पंचभाषाविलास - ले- शाहजी महाराज । ई. 17-18 वीं शती। दक्षिण भारत के यक्षगान कोटि की रचना। संस्कृत, हिन्दी, मराठी,तेलगू तथा द्रविड भाषाओं का प्रयोग इस में किया है। कथासार- - द्रविड देश की राजकुमारी कान्तिमती, आंध्र की कलानिधि, महाराष्ट्र की कोकिलवाणी, उत्तरप्रदेश की सरसशिखामणि ये चारों नायिकाएं श्रीकृष्ण के साथ विवाहबद्ध होती हैं। श्रीकृष्ण का सर्वभाषाविद् नर्मसचिव उन सबके साथ उन्हीं की भाषा में वार्तालाप करता है, और कृष्ण को संस्कृत में उनकी प्रणयविह्वलता सुनाता है। अन्त में पुरोहित काशीभट्ट चारों का विवाह कृष्ण के साथ करता है। पंचमकारविवरणम् - ले- मधुसूदनानन्द सरस्वती। श्लोक3001 पंचमाश्रमविधि - शंकराचार्य कृत कहा गया है। परमंहसनामक पांचवी संन्यस्त अवस्था के (जब संन्यासी अपना दंड एवं कमण्डलु त्याग देता और बालक या पागल की भांति घूमता रहता है) विषय में इस ग्रंथ में विवेचन किया है। पंचमी क्रमकल्पलता- ले- श्रीनिवास। पंचमीसाधनम् - ब्रह्माण्डयामल के अन्तर्गत हर-गौरी संवादरूप। विषय- मुक्तिदायक तांत्रिक विधियों का प्रतिपादन। पंचमी विद्या पंचकूटरूपा है । वे पंच है- मद्य, मांस, मत्स्य, मुद्रा और मैथुन। पंचमीसुधोदय - ले- मथुरानाथ शुक्ल। पंचमुखी वीरहनूमत्कवचम् - श्लोक- 100। पंचमुद्राशोधनपद्धति - ले- चैतन्यगिरि। श्लोक- 510। इसमें लिंग-पुराणोक्त सरस्वतीस्तोत्र भी संमिलित है। पंचरत्नमाला - ले- राम होशिंग। श्लोक- 1800। पचरत्नस्तव - ले- अप्पय्य दीक्षित। पंचरत्रम् - ले- महाकवि भास। तीन अंकों का समवकार (रूपक का एक प्रकार)। इसकी कथा महाभारत के विराट पर्व पर आधारित है। नाटककार ने अत्यंत मौलिक दृष्टि से काल्पनिक घटना का चित्रण किया है। प्रथम अंकः द्यूतक्रीडा में पराजित पांडव वनवास समाप्ति के बाद एक वर्ष का अज्ञातवास बिताने के लिये राजा विराट के यहां रहते हैं। इसी समय कुरुराज दुर्योधन का यज्ञ पूर्ण समारोह के साथ संपन्न होता है। पश्चात् दुर्योधन गुरु द्रौणचार्य से दक्षिणा मांगने के लिये कहता है। द्रोणाचार्य पांडवों को आधा राज्य देने की दक्षिणा मांगते हैं। इस पर शकुनि उद्विग्न होकर वैसा नहीं करने को कहता है। गुरु द्रोण रुष्ट हो जाते हैं पर वे भीष्म द्वारा शांत किये जाते हैं। शकुनि दुर्योधन को कहता है कि यदि 5 रात्रि में पांडव प्राप्त हो जाएं तो इस शर्त पर यह बात मानी जा सकती है। द्रोणाचार्य यह शर्त मानने को तैयार नहीं होते। इसी बीच विराट नगर से एक दूत आकर सूचना देता है, कि कीचक सहित सौ भाइयों को किसी व्यक्ति ने बाहों से ही रात्रि में मार डाला। इसी लिये विराट राजा यज्ञ में सम्मिलित नहीं हुए। यह सुनकर भीष्म को विश्वास होता जाता है कि अवश्य ही कीचकवध का कार्य भीम ने किया होगा। अतः वे द्रोण से दुर्योधन (शकुनि) की शर्त मान लेने को कहते हैं। तब द्रोण उस शर्त को स्वीकार कर लेते है और यज्ञ हेतु आये हुए राजाओं के समक्ष उसे सुना दिया जाता है। फिर भीष्म विराट पर चढाई कर उसके गोधन को हरण करने की सलाह देते हैं जिसे दुर्योधन मान लेता है। द्वितीय अंक में विराट के जन्म-दिन के अवसर पर कौरवों द्वारा उसके गोधन के हरण का वर्णन है। युद्ध में भीम द्वारा अभिमन्यु पकड लिया जाता है और वह राजा विराट के समक्ष निर्भय होकर बातें करता है। युधिष्ठिर, अर्जुन प्रभृति भी प्रकट हो जाते हैं। राजा विराट उन्हें गुप्त होने के लिये कहते हैं। इस पर युधिष्ठिर उन्हें बताते हैं कि अज्ञातवास की अवधि पूरी हो चुकी है। तृतीय अंक का प्रारंभ कौरवों के यहां हुआ है। सूत द्वारा यह सूचना मिलती है कि कोई व्यक्ति पैदल ही आकर अभिमन्यु को पकड ले गया। भीष्म ने कहा कि यह कार्य निश्चित ही भीम ने किया होगा। इसी समय युधिष्ठर की ओर से एक दूत आता है। गुरु द्रोण दुर्योधन को गुरु-दक्षिणा देने की बात कहते हैं। दुर्योधन उसे स्वीकार कर कहता है कि उसने पांडवों को आधा राज्य दे दिया। भरतवाक्य के पश्चात् प्रस्तुत 176/ संस्कृत वाङ्मय काश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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