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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्लोक- 4500। उत्तरार्ध गृह्यसूत्र में उक्त 18 पटलों के अन्तर्गत सद्योजातकल्प, अधोरकल्प तथा सत्पुरुषकल्प भी प्रतिपादित हैं। निष्कलक्रमचर्या - ले- श्रीकण्ठानन्द मुनि। पितामह- शिवानंद। पिता- चिदानन्द । श्लोक- 2001 विषय- शैवमतानुसार पूजाविधि। निःश्वाससंहिता - शिवप्रणीत एक शास्त्र । परंपरा के अनुसार ब्राभ्रव्य व शांडिल्य नामक शिवभक्तों के निवेदन पर शिवजी ने इस संहिता की निर्मिति की। यह वेदक्रियायुक्त है। पाशुपत-योग व पाशुपत-दीक्षा इसके विषय हैं। वराह-पुराण में कहा गया है कि प्रस्तुत संहिता के पूर्ण होने पर बाभ्रव्य व शांडिल्य ने उसे श्रद्धापूर्वक स्वीकार किया। निष्किंचन-यशोधरम् - ले- यतीन्द्रविमल चौधुरी। रवीन्द्रभारती और प्राच्यवाणी मन्दिर द्वारा कलकत्ता में अभिनीत । अंकसंख्यासात। कथासार- दण्डपाणि की पुत्री यशोधरा गोपा को सिद्धार्थ स्वयंवर में जीतते हैं। विवाह के तेरह वर्ष पश्चात् उन्हें पुत्रप्राप्ति होती है, उसी समय वे आत्मिक शान्ति की खोज में गृहत्याग करते हैं। यशोधरा छन्दक से वृत्तान्त सुन स्वयं भी तप में लीन होती है। सात वर्ष पश्चात् गौतम बुद्ध बने सिद्धार्थ के आगमन पर यशोधरा राहुल से दायाधिकार रूप में संन्यास की याचना करवाती है। उसके मुण्डन के पश्चात् युद्धोदन यशोधरा को राज्य सौंपना चाहते हैं परंतु संन्यासी की पत्नी का राज्ञीपद के उचित नहीं, यह कहकर वह अस्वीकार करती है। गौतम से भिक्षुणी-संघ बनाने का अनुरोध कर यशोधरा भी भिक्षुणी बनती है और 78 वर्ष की आयु में देहलीला समाप्त करने की अनुमति पाकर कहती है कि मैं स्वामी में ही विलीन हूं। नीतिकमलाकर - ले. कमलाकर। नीतिकल्पतरु - ले- क्षेमेन्द्र । काश्मीरी कवि । ई. 11 वीं शती। नीतिकुसुमावलि - ले- अप्पा वाजपेयी। नीतिगर्भितशास्त्रम् - ले- लक्ष्मीपति । नीतिचिन्तामणि - ले- वाचस्पति मिश्र। ई. 9 वीं शती। नीतिप्रकाश - ले- कुलमुनि । नीतिप्रकाश (नीतिप्रकाशिका) - ले- वैशम्पायन। मद्रास में डा. ओपर्ट द्वारा सन् 1882 में सम्पादित। विषयराजधर्मोपदेश, धनुर्वेदविवेक, खड्गोत्पत्ति, मुक्तायुधनिरूपण, सेनानयन, सैन्यप्रयोग एवं राजव्यापार। तक्षशिला में वैशम्पायन द्वारा जनमेजय को दिया गया शिक्षण। आठ अध्यायों में राजशास्त्र के प्रवर्तकों का उल्लेख है। कौडिन्यगोत्र के नंजुण्ड के पुत्र सीताराम द्वारा इस पर तत्त्वविवृत्ति नामक टीका लिखी गई है। नीतिमंजरी (वेदमंजरी) - ले- विद्या द्विवेद। गुजरात प्रदेश के आनंदपुरनिवासी। शुक्ल यजुर्वेदीय ब्राह्मण। आपने इस ग्रंथ की रचना सन् 1494 में की। इस ग्रंथ के अनुष्टुप छंद में बद्ध 166 श्लोकों को आठ अष्टकों में विभाजित किया गया है। इस ग्रंथ की विशेषता यह है कि प्रत्येक श्लोक के पूर्वार्ध में नीतिवचन ग्रथित करते हुए उत्तरार्ध में उस वचन की पुष्टि हेतु ऋग्वेद की कथा का आधार दिया गया है। चतुर्विध पुरुषाथों के संदर्भ में नैतिक संदेश को स्पष्ट करने वाला यह ग्रंथ नीतिपरक संस्कृत साहित्य में सम्मानित है। धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष विषयक क्रमशः 44, 68, 53 और 5 श्लोक हैं। इस ग्रंथ पर स्वयं श्री. द्या द्विवेद ने ही संस्कृत गद्य में 'युवदीपिका' नामक टीका लिखी है। इस टीका में पहले प्रत्येक श्लोक का अन्वयार्थ, फिर श्लोक में समाविष्ट ऋग्वेदीय कथा से संबद्ध मंत्र और अंत में ब्राह्मण-ग्रंथ से तत्संबंधी अंश उद्धृत किये गये हैं। द्या द्विवेद ने सामान्यतः अपनी इस टीका में यास्क-सायणादि पूर्वाचायों का अनुसरण किया है। फिर भी अनेक स्थानों पर उन्होंने पूर्वाचार्यों से अपना मतभेद भी अंकित किया है। दूसरी टीका के लेखक हैं देवराज। इस ग्रंथ से वैदिक साहित्य की विविध कथाओं का परिचय प्राप्त होने के साथ ही उन कथाओं का नैतिक मूल्य भी परिलक्षित होता है। नीतिमयूख - ले- नीलकंठ (ई. 17 वीं शती) भारतीय राज्यशास्त्र संबंधी यह एक बहुमूल्य ग्रंथ है। देश, काल व परिस्थिति के अनुरूप राजधर्म का स्वरूप इस ग्रंथ में वर्णित है। राजधर्माविषयक जटिल कर्मकांड की ओर ध्यान न देते हुए नीलकंठ ने अपने इस ग्रंथ में केवल राज्याभिषेक के कृत्यों का ही विस्तृत वर्णन किया है। तदर्थ श्री. नीलकंठ ने विष्णुधर्मोत्तरपुराण तथा देवीपुराण से जानकारी प्राप्त की है। नीलकंठ ने राजनीति को धर्मशास्त्र के अंतर्गत माना है। गुजराती प्रेस, मुंबई, द्वारा प्रकाशित । नीतिमाला - ले- नारायण। नीतिरत्नाकर (या राजनीतिरत्नाकर) - 1) ले- चण्डेश्वर । डा. जायस्वाल द्वारा प्रकाशित। 2) ले- बृहत्पण्डित कृष्ण महापात्र ई. 15 वीं शती। नीतिरहस्यम् - ले- वेंकटराम नरसिंहाचार्य। नीतिलता - ले- क्षेमेन्द्र। लेखक के औचित्यविचारचर्चा में उल्लिखित। ई. 11 वीं शती। नीतिवाक्यरत्नावली - ले- शिवदत्त त्रिपाठी। नीतिवाक्यामृतम् - ले- सोमदेव। जैनाचार्य। ई. 13 वीं शती। महेन्द्रदेव के छोटे भाई एवं नेमिदेव के शिष्य। मुम्बई में मानिकचन्द दिगम्बर जैन ग्रंथमाला द्वारा टीका के साथ प्रकाशित । धर्म, अर्थ, काम, अरिषड्वर्ग, विद्यावृद्ध, आन्वीक्षिकी, त्रयी, वार्ता, दण्डनीति, मंत्री, पुरोहित, सेनापति, दूत, चार, विचार, व्यसन, सप्तांग राज्य, (स्वामी आदि), राजरक्षा, दिवसानुष्ठान, सदाचार, व्यवहार, विवाद, षाड्गुण्य युद्ध, विवाह, प्रकीर्ण नामक 32 प्रकरणों में विभाजित है। इसकी टीका में 166/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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