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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्यर्थी काव्यों में सर्वथा प्राचीन है। भोजकृत "सरस्वती कंठाभरण" में महाकवि दंडी व धनंजय कृत "द्विसंधानकाव्य" का उल्लेख है परंतु दंडी की इस नाम की कोई रचना प्राप्त नहीं होती पर धनंजय की कृति अत्यंत प्रख्यात है जिसका दूसरा नाम है "राघवपांडवीय"। इस पर विनयचंद्र के शिष्य नेमिचंद्र ने विस्तृत टीका लिखी थी जिसका सारसंग्रह कर जयपुर के बदरीनाथ दाधीच ने "सुधा" नाम से काव्यमाला (मुंबई) से 1895 ई. में प्रकाशित किया है। इसके प्रत्येक सर्ग के अंत में धनंजय का नाम अंकित है। "द्विसंधान काव्य" में 18 सर्ग हैं और उनमें श्लेष-पद्धति से रामायण व महाभारत की कथा कही गई है। द्वैततत्त्वम् - ले- सिद्धान्तपंचानन । द्वैतदुन्दुभि - सन् 1923 में बीजापुर से अनन्ताचार्य के सम्पादकत्व में इस पत्रिका का प्रकाशन हुआ किन्तु यह अधिक काल तक नहीं चल पायी। द्वैतनिर्णय - ले- शंकरभट्ट। ई. 17 वीं शती। विषयधर्मसंबंधी मतभेदों का विवेचन। (2) ले- नरहरि। (3) लेव्रतराजकार विश्वनाथ के पितामह- ई. 17 वीं शती। (4) ले- चंद्रशेखर वाचस्पति। पिता- विद्याभूषण। (5) लेवाचस्पति मिश्र । इस पर मधुसूदन मिश्र कृत जीर्णोद्धार (प्रकाश) और गोकुलनाथकृत कादम्बरी (प्रदीप) नामक टीका है। द्वैतनिर्णयपरिशिष्टम् - ले- शंकरभट्ट के पुत्र दामोदर। ई. 17 वीं शती। (2) ले- केशव मिश्र। विषय- श्राद्ध। द्वैतनिर्णयसंग्रह - ले- चंद्रशेखर । वाचस्पति विद्याभूषण के पुत्र । द्वैतनिर्णयसिद्धान्तसंग्रह - ले- भानुभट्ट। पिता- नीलकण्ठ पितामह- शंकरभट्ट (द्वैतनिर्णय के लेखक) ई. 17 वीं शती। द्वैतविषयविवेक - ले- वर्धमान । भावेश के पुत्र । ई. 16 वीं शती। द्वैताद्वैतनिर्ण - ले- नीलकंठ। ई. 17 वीं शती। पिता-शंकर भट्ट। द्वैभाषिकम् - सन 1887 में जेसौर (बंगाल) से कृष्णचंद्र मजुमदार के सम्पादकत्व में संस्कृत- बंगला भाषा में इस मासिक पत्र का प्रकाशन आरंभ हुआ। इसमें ललित निबंध प्रकाशित होते थे। यामुष्यायणनिर्णय - ले- विश्वनाथ । पिता- कृष्णगुर्जर । नैधृव गोत्र । ई. 17 वीं शती।। द्वयोपनिषद् - इस नव्य उपनिषद् में गु तथा रु इस अक्षर द्वय का महत्त्व बताया गया है। इसीलिये इसे द्वयोपनिषद् नाम प्राप्त हुआ है। निम्न श्लोक द्वारा गुरु का महत्त्व कथन किया गया है आचार्यों वेदसम्पन्नो विष्णुभक्तो विमत्सरः । मंत्रज्ञो मंत्रभक्तश्च सदा मंत्राश्रयः शुचिः ।। गुरुभक्तिसमायुक्तः पुराणज्ञो विशेषवित् । एवं लक्षणसंपन्नो गुरुरित्यभिधीयते। अर्थ :- वेदज्ञ, आचार्य विष्णुभक्त, निर्मत्सर, मंत्रज्ञ, मंत्रभक्त, निरंतर मंत्राश्रित, शुद्ध, गुरुभक्ति से युक्त, पुराणवेत्ता और अनेक बातों का विशेष ज्ञान रखने वाला व्यक्ति ही गुरु कहलाता है। गुरु शब्द की व्युत्पत्ति बताते हुए इसमें कहा गया है कि गु - अंधकार (अज्ञान) रु = उसका विरोधक। अतः गुरु का अर्थ हुआ अज्ञान का विरोधक। धनंजयनिघण्टु - ले- धनंजय। ई. 7 - 8 वीं शती। धनंजय-पुरंजयम् (नाटक) - ले- विष्णुपद भट्टाचार्य (श, 20)। प्रथम अभिनय शिवचतुर्दशी के मेले में। अंकसंख्यासात। अंक अत्यंत लघु परंतु रंगसंकेत लम्बे हैं। सशक्त चरित्रचित्रण और हास्यप्रवण शैली में मानवता का संदेश दिया है। कथासार - धनंजय नामक वृद्ध ब्राह्मण का पुत्र पुरंजय अपने पिता की सदा अवहेलना करता है। धनंजय की मृत्यु होती है। पुरंजय स्वप्न में देखता है कि पिता को नरक में यमदूतों द्वारा यंत्रणायें दी जा रही हैं। शिवजी उसे स्वप्न में आदेश देते हैं कि तुम्हारे ही पापों से तुम्हारे पिता पीडा पा रहे हैं, अतः माहिष्मती के राजा से एक दिन का पुण्य मांग लो, फिर पिता मुक्ति पायेंगे। पुरंजय माहिष्मती की ओर प्रस्थान करता है। मार्ग में एक निषाद उसे आश्रय देता है, अपने प्राण खोकर उसकी रक्षा करता है। दुखी मन से उसका अग्निसंस्कार कर पुरंजय राजप्रासाद पहुंचता है। राजा से एक दिन का पुण्य पाकर पिता को मोक्ष दिलाता है। राजा को उसी दिन पुत्र होता है जो पूर्वजन्म का वही पुण्यात्मा निषाद है। धनंजयव्यायोग - ले- कांचनाचार्य। विषय- किरात- अर्जुन युद्ध की प्रसिद्ध महाभारतीय कथा । धनदा-यक्षिणीप्रयोग - इस में धनदा यक्षिणी की पूजा प्रक्रिया वर्णित है। यह पूजाप्रक्रिया अंशतः कृष्णानन्द के तंत्रसार में वर्णित पूजाप्रक्रिया से मिलती जुलती है। धनवर्णनम् - ले- बेल्लंकोण्ड रामराय। आंध्र-निवासी। धनुर्वेद - यह यजुर्वेद का उपवेद माना जाता है। इस विषय पर वसिष्ठ, विश्वामित्र, जामदग्न्य, भारद्वाज, औशनस, वैशंपायन और शाङ्गधर इनके नामों से संबंधित संहिता ग्रंथ प्रसिद्ध है। इनमें वसिष्ठ और औशनस का धनुर्वेद प्रकाशित हुआ है। संपादक- जयदेव शर्मा विद्यालंकार। प्रकाशन- कर्मचंद । भल्ला, स्टार प्रेस, प्रयाग में मुद्रित। धनुर्वेदचिन्तामणि - ले- नरसिंहभट्ट। धनुर्वेदसंग्रह - (वीरचिन्तामणि) ले- शाङ्गधर । धनुर्वेदसंहिता - (1) संपादक- दीपनारायणसिंह। डुमराव राज्य (उत्तर प्रदेश) के निवासी। 2. ले- वसिष्ठ । कलकत्ता में प्रकाशित। धन्यकुमारचरितम् - ले- सकलकीर्ति । जैनाचार्य । ई. 14 वीं शती। पिता- कर्णसिंह। माता- शोभा। 7 सों का काव्य । 146/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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