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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काव्यमय वर्णन। दिल्लीमहोत्सव - ले-श्रीश्वर विद्यालंकार भट्टाचार्य । सन 1903 में प्रकाशित । सर्गसंख्या 6। सन 1901 में सप्तम एडवर्ड के राज्याभिषेकनिमित सम्पन्न दिल्ली दरबार का वर्णन। दिल्ली- सामाज्यम् (नाटक) - ले- लक्ष्मण सूरि। जन्म 18591 लेखक की पहली रचना। सन 1912 में मद्रास से प्रकाशित। अंकसंख्या- पांच। चालीस से अधिक पात्र । स्त्री पात्र कम। उच्च कोटि को स्त्रियां और अन्य कन्यकाएं प्राकृत बोलती हैं। वीर या शृंगार के स्थान पर 'दया' अंगी भाव । भाषा सुबोध एवं नाट्योचित । अंग्रेजी के सुबोध संस्कृत पर्याय इसमें प्रयुक्त हैं। कथासार :- वाइसरॉय लॉई हार्डिंग्ज दिल्ली में पंचम जॉर्ज का राज्याभिषेक करना चाहता है। पार्लियामेंन्ट में चर्चा होती है। फिर भारतीय नरेश बकिंगहॅम पॅलेस में सम्राट् से मिलते हैं। उनके बम्बई आने पर सर मेहता प्रशस्तिपत्र पढ़ते हैं। उनसे शिक्षा-प्रकाश की मांग करते हैं। जॉर्ज उन्हें यथा शीघ्र शिक्षा के प्रसार का वचन देते है। अंतिम अंक में जॉर्ज का विधिवत् राज्याभिषेक होता है और वे शिक्षा विकास के हेतु 50 लाख रु. प्रदान करते हैं। भी बताया गया है कि पति की मृत्यु के पश्चात् विधवा का अधिकार न केवल पति के धन पर अपितु उसके भाई के संयुक्त धन पर भी हो जाता है। इस ग्रंथ में अनेक विचार "मिताक्षरा" के विपरीत व्यक्त किये गये हैं। दायाधिकारक्रम - ले. लक्ष्मीनारायण। दारुकावनविलास - ले- रत्नाराध्य । दारुणसप्तकम् - उमा-महेश्वर संवादरूप। आकाशतन्त्रोक्त। दाशरथीयतन्त्रम् - इसके मूल प्रवक्ता दशरथ पुत्र राम हैं। यह रामोपासना- विषयक वैष्णव तंत्र है। पूर्वार्ध में 59 अध्याय और उत्तरार्ध में 45 अध्याय हैं। उत्तरार्ध का नामान्तर है 'सौभाग्यविद्योदय' । पूर्वार्ध में कहा गया है कि प्रस्तुत दाशरथीय तंत्र 'अनूत्तर-ब्रह्मतत्त्वरहस्य' नामक श्रुतिसंग्रह के अन्तर्गत है। उत्तरार्थ में श्रीविद्या, लक्ष्मी, महालक्ष्मी, त्रिशक्ति और साम्राज्यशक्ति इनमें श्रीविद्या का माहात्म्य वर्णित है। इसके अनन्तर पाशुपती, वैष्णवी तथा त्रैपुरी दीक्षाओं का वर्णन है एवं दक्षिणामूर्तिद्वारा उपदिष्ट विज्ञान का भी वर्णन है। 28 से 45 वें अध्याय तक राजराजेश्वरी विद्या का माहात्म्य वर्णित है। दाशरथिशतकम् - अनवादक- चिट्टीगुडूर वरदाचारियर। मूल तेलगु काव्य। दिग्दर्शनी - उत्कल संस्कृत गवेषणा समाज की त्रैमासिकी पत्रिका। संपादक- डॉ. पतितपावन बॅनर्जी। कार्यालय :- हवेली लेन, जगन्नाथपुरी। वार्षिक शुल्क- रु. 10/दिग्विजयम् - कवि- मेघविजयगणि। 13 सों का काव्य । विषय- कच्छभूपति विजय- प्रभुसूरि का चरित्र। दिग्विजय-प्रकाश - कवि- राम । व्रजवासी । ई. 17 वीं शती। दिनकरीयप्रकाशतरंगिणी - ले- रामरुद्र तर्कवागीश। दिनकरोद्योत - (या शिवधुमणिदीपिका) - ले- दिनकर। ई. 17 वीं शती। पिता का अर्धलिखित ग्रंथ प्रख्यात पुत्र विश्वेश्वर (गागाभट्ट) द्वारा समाप्त हुआ। विषय आचार, अशौच, काल, दान, पूर्त, प्रतिष्ठा, प्रायश्चित्त, व्यवहार, वर्षकृत्य व्रत, शूद्र, श्राद्ध एवं संस्कार। दिनत्रयनिर्णय - ले- विद्याधीश मुनि । दिनत्रयमीमांसा - ले- नारायण। माध्व अनुयायियों के लिए लिखित आचारधर्म-विषयक ग्रंथ। दिनभास्कर - ले- शम्भुनाथ सिद्धान्तवागीश। ई. 18 वीं शती। गृहस्थों के आह्निक कृत्यों का संग्रह। दिनसंग्रह - ले-रघुदेव नैय्यायिक। दिनाजपुर-राजवंश-चरितम् (काव्य) - ले- महेशचंद्र तर्कचूडामणि। ई. 20 वीं शती। सर्गसंख्या- 17। दिल्लीप्रभा - कवि वेदमूर्ति श्रीनिवास शास्त्री। 1911 के दिल्ली-दरबार का काव्यमय वर्णन। (2) कवि- शिवराम शास्त्री, शतावधानी विद्वान्। 1911 के दिल्ली-दरबार का दिव्यचापविजय-चंपू-ले- चक्रवर्ती वेंकटाचार्य । इस चंपू-काव्य में 6 स्तबक है। विषय- दर्भशयनम्' की पौराणिक कथा । कथा का प्रारंभ पौराणिक शैली पर है और प्रसंगतः राम-कथा का भी इसमें वर्णन है। कवि ने कथा के माध्यम से 'तिरुपल्लाणि' की पवित्रता व धार्मिक महत्ता का प्रतिपादन किया है। दिव्यज्योति - सन 1956 में शिमला से विद्यावाचस्पति आचार्य दिवाकर दत्त शर्मा के सम्पादकत्व में इस मासिकपत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ हुआ।केशव शर्मा शास्त्री इसके प्रबंध संपादक हैं। इसमें अर्वाचीन विषयों के अलावा काव्य, नाटक, दूतकाव्य, गीत, विनोद, आयुर्वेद, इतिहास, समीक्षा, आदि विषयों से सम्बधित रचनाओं का प्रकाशन होता है। इसके अर्वाचीन संस्कृत कवि परिचयांक, अभिनव शब्द निर्माणांक, संस्कृत पत्र लेखनांक, कथानिका विशेषांक विशेष लोकप्रिय रहे। वार्षिक मूल्य छः रु.। प्रकाशन स्थल- दिव्यज्योति कार्यालय, आनन्द लॉज, जाखू, शिमला। दिव्यतत्त्वम् - ले- रघुनंदन। टीका- मथुरानाथ शुक्ल द्वारा। (2) ले- देवनाथ। विषय-वैष्णव कृत्य। इस का अपर नाम है तंत्रकौमुदी। दिव्यदीपिका - ले- दामोदर ठक्कुर। मुहम्मदशाह के शासन में संगृहीत। विषय- धर्मशास्त्र । दिव्यदृष्टि (उपन्यास) - ले- नारायणशास्त्री खिस्ते। वाराणसी के निवासी। अपक्व बुद्धि के पाठकों के लिये सरल संस्कृत में रचना। संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 137 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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