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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अधिक से अधिक ग्रंथों एवं ग्रंथकारों का आवश्यकतम परिचय मर्यादित पृष्ठसंख्या में देना यही उद्देश्य रख कर हमने यह संपादन किया है। इसी संक्षेप की दृष्टि से यथासंभव लेखकों के नामनिर्देश में श्री, पूज्यपाद इत्यादि आदरार्थक उपाधिवाचक विशेषणों का प्रयोग कहीं भी नहीं किया। परंतु नामनिर्देश सर्वत्र आदरार्थी बहुवचन में ही किया है। पाश्चात्य लेखकों के अनुकरण के कारण हमारे ग्रंथकार प्राचीन ऋषि, मुनि, आचार्य तथा सन्तों का नाम निर्देश एकवचनी शब्दों में करते हैं। प्रस्तुत कोश में उस प्रथा को तोड़ने का प्रयत्न किया है। ग्रंथकारों के माता, पिता, गुरु, समय, निवासस्थान इत्यादि का निर्देश "इनके पिता का नाम --- था और माता का नाम --- या' इस प्रकार की वाक्यों की पुनरुक्ति टालने के लिए, वाक्यों में न करने का प्रयत्न सर्वत्र हुआ है। इसमें अपवाद भी मिल सकेंगे। यह संस्कृत वाङ्मय का ही कोश होने के कारण प्रायः प्रत्येक प्रविष्टि में संस्कृत वचनों के कई अवतरण देना संभव था। कुछ प्रविष्टियों में, संस्कृत अवतरण दिए गए हैं। परंतु प्रायः सभी अवतरणों के साथ हिन्दी अनुवाद दिया गया है। अपवाद कृपया क्षन्तव्य है। हिन्दी भाषा की, अन्यान्य प्रकार की शैलियां है। यह संस्कृत वाङ्मय का कोश होने के कारण भाषा का स्वरूप संस्कृतनिष्ठ ही रखा गया है। साथ ही इस कोश के अनेक पाठक हिन्दी के विशेषज्ञ न होने की संभावना ध्यान में लेते हुए, सुगम एवं सुबोध शब्दप्रयोग करने का यथाशक्ति प्रयास हुआ है। प्राचीन विख्यात संस्कृत लेखकों के जीवन चरित्र प्रायः अज्ञात ही रहे हैं। तथापि कुछ महानुभावों के संबंध में उद्बोधक एवं मार्मिक दन्तकथाएँ आज तक सर्वविदित हुई हैं। इनमें से कुछ कथाओं में ऐतिहासिक तथ्यांश तथा उस व्यक्ति के व्यक्तित्व के कुछ वैशिष्ट्य व्यक्त होने की संभावना मान कर, हमने इस कोश में उन किंवदन्तियों का संक्षेपतः अन्तर्भाव किया है। विशेष कर महाकवि कालिदास और भोज के संबंध में बल्लालकवि कृत भोजप्रबन्ध के कारण, इस प्रकार की किंवदन्तियों की संख्या काफी बड़ी है। अतः कुछ स्थानों में किंवदन्तियों की संख्या अधिक दिखाई देगी। जिन पाठकों को वहाँ अनौचित्य का आभास होगा उनसे हम क्षमा चाहते हैं। कई ग्रंथकारों के विषय में उल्लेखनीय जानकारी नहीं प्राप्त हो सकी। ऐसे स्थानों में केवल उनके द्वारा लिखित ग्रंथों का नामनिर्देश मात्र किया है। जिनके समय का पूर्णतया (जन्म से मृत्यु तक) पता नहीं चला, उनका समय निर्देश प्रायः ईसवी शती में किया है। क्वचित् विक्रम संवत् तथा शालिवाहन शक का भी निर्देश मिल सकेगा। वैदिक सूक्तों के द्रष्टा माने गए ऋषियों को ग्रंथकार ही मान कर उनका संक्षिप्त परिचय दिया गया है। ऐसी ऋषिविषयक सभी प्रविष्टियों की सामग्री पं. महादेवशास्त्री जोशी कृत भारतीय संस्कृतिकोश (10 खंड-मराठी भाषा .में) से ली गई है। वेदों का निरपवाद अपौरुषेयत्व मानने वाले भावुक विद्वान उन प्रविष्टियों को सहिष्णुतापूर्वक पढ़े। संस्कृत वाङ्मय का प्राचीन कालखंड बहुत बड़ा होने के कारण, तथा उस कालखंड के विषय में अल्पमात्र ऐतिहासिक सामग्री उपलब्ध होने कारण सैकड़ों ग्रंथ और ग्रंथकारों के स्थल-काल के संबंध में तीव्र मतभेद हैं। गत शताब्दी में अनेकों विदेशी और देशी विद्वानों ने उन विषयों में अखण्ड वाद-विवाद करते हुए एक-दूसरे का मत खण्डन किया है। अतः उनमें से एक भी मत शत-प्रतिशत ग्राह्य नहीं माना जा सकता। प्रस्तुत कोश में उन विवादों द्वारा जो प्रधान मतभेद व्यक्त हुए हैं उनका संक्षेप में निर्देश किया है। किसी भी मत का खण्डन या समर्थन यहां हमने नहीं किया और उन विवादों के विषय में हमारा अपना कोई भी अभिप्राय व्यक्त नहीं किया। ग्रंथकारों की भाषा और शैली का वर्णन, “प्रासादिक, अलंकारप्रचुर, रसाई, पाण्डित्यपूर्ण" इस प्रकार के रूढ विशेषणों को टालकर किया है। सर्वत्र पुनरुक्ति और विस्तार टालना यही इसमें हमारा हेतु है। भाषा तथा शैली की विशेषता दिखानेवाले उदाहरण और उनके हिन्दी अनुवाद देने से ग्रंथ का कलेवर दस गुना बढ़ जाता। कालिदास, भवभूति, बाणभट्ट, माघ, हर्ष, भारवि, इत्यादि श्रेष्ठ ग्रंथकार तथा उनका अनुसरण करने वाले सैकड़ों उत्तरकालीन ग्रंथकारों के काव्य, नाटक, चम्पू, कथा, आख्यायिका इत्यादि प्रबंधों से उनके साहित्य गुणों का परिचय हो सकता है । तात्पर्य इस कोश में ग्रंथों का परिचय मात्र है पर्यालोचन नहीं। पर्यालोचन प्रबंधों का कार्य है कोश का नहीं। ग्रंथकारों के जन्म और मृत्यु की तिथि के संबंध में जहाँ मिल सके वहाँ उनका उल्लेख हुआ है। परंतु जहाँ निश्चित उल्लेख संदर्भ ग्रंथों में नही मिले वहाँ केवल ई. शताब्दी में उनका समय निर्दिष्ट किया है। ग्रंथकार के जन्म मृत्यु की तिथि न मिलने पर भी ग्रंथलेखन का समय जहाँ मिल सका वहाँ उसका निर्देश हुआ है। जिन प्रविष्टियों में माता, पिता, समय, स्थल इत्यादि विषय में कुछ भी जानकारी नहीं मिल सकी ऐसे लेखकों के संबंध For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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