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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आठवें अध्याय में इंद्र और विरोचन की कथा है। जडवृत्तम् - ले-माधव। विषय-नर्तिकाओं द्वारा मूर्ख बनने वाले छायाशाकुन्तलम् - ले-जीवनलाल पारेख। सन् 1957 में तरुणों का परिहासगर्भ वर्णन । सूरत से प्रकाशित एकांकी रूपक। कथासार-दुष्यन्त द्वारा जनकजानन्दनम् (नाटक) - ले-कल्य लक्ष्मीनरसिंह (ई. अस्वीकृत शकुंतला कण्वाश्रम आती है। वह तिरस्करिणी के 18 वीं शती) नरसिंह के वासन्तिक उत्सव में प्रथम अभिनय । प्रभाव से अदृश्य होकर विदित करती है कि कण्व हिमालय अंकसंख्या-पांच। विषय-रामकथा । चले गये हैं। दुष्यन्त वहां आता है, उसकी वाणी सुनकर जनमारशान्तिप्रयोग - विधानमालान्तर्गत गर्गकारिका के अनुसार। शकुन्तला गद्गद् होती है। श्लोक-38| विषय-महामारी भय के निवारणार्थ गर्गप्रोक्त विधान छिन्नमस्ताकल्प - रुद्रयामलान्तर्गत । अध्याय-18 । श्लोक-500। से शान्तिप्रयोग। छिन्नमस्तापंचांगम् - फेल्कारीतन्त्रान्तर्गत उमा-महेश्वर संवादरूप। जनाश्रयी छन्दोचिति - ले-जनाश्रय। प्रारम्भ में ही राजा विषय-(1) छिन्नमस्तापटल, (2) छिन्नमस्ता-पूजापद्धति, (3) जनाश्रय तथा उसके यश का उल्लेख है। यह नरेश माधववर्मा छिन्नमस्ता-कवच, (4) छिन्नमस्ता-सहस्रनाम, (5) (द्वितीय) विष्णुकुण्डी वंश का है जिसने यह उपाधि धारण छिनामस्तास्तोत्रम्। की थी। (समय 580 से 615 इ.स.) उसने अनेक प्राचीन छिन्नमस्ताष्टोत्तरशतनाम - गोरक्षसंहितान्तर्गत। इसे शिवजी ने । ग्रंथों का उल्लेख किया है, 16 प्रकरण। छन्दों की पहचान नारदजी से कहा था। फलश्रुति-इस स्तोत्र का नवमी या षष्ठी के लिये अलग पद्धति का आविष्कार। सम, विषम, अर्धसम, को जो पाठ करता है वह कुबेर की तरह धनसम्पन्न होता है। वृत्त, जाति, वैतालिय, आर्या, प्रस्तार आदि परिभाषाओं का निर्माण किया है। छेलोत्सवदीपिका - ले-राधाकृष्णजी। जन्ममरणकवचार - ले-भट्ट रामदेव। गुरु योगराज अथवा जगत्प्रकाश - कवि-विश्वनाथ नारायण वैद्य। इसमें गुजरात । योगेश्वराचार्य जो अभिनवगुप्त के शिष्य थे। के रावल वंशीय नृपति जगत्प्रसाद का चरित्र 14 सर्गों में ग्रंथित है। जन्म रामायणस्य - ले-श्रीराम वेलणकर "सुरभारती' भोपाल जगदम्बाचम्पू - कवि-गोपाल। पिता-महादेव। से सन् 1972 में प्रकाशित। 25 मिनटों में अभिनेय। कुल जगदाभरण - ले-जगन्नाथ पंडितराज। अपने आश्रयदाता पात्र-पांच। गीत संख्या पांच। विषय-क्रौन्चवध की कथा। उदेपुरनरेश जगत्सिंह की स्तुति के लिये पंडितराज ने यह रचना की है। जन्माभिषेक - ले-देवनन्दि पूज्यपाद। जैनाचार्य। (ई. 5-6 जगद्गुरु-अष्टोत्तरशतकम् - ले-कविरत्न पंचपागेश शास्त्री। वीं शती)। माता-श्रीदेवी। पिता-माधवभट्ट । जगद्गुरुविजयचम्पू - ले-यलुंदर श्रीकण्ठ शास्त्री। जपसूत्रम् - ले-स्वामी प्रत्यागात्मानंद सरस्वती। प्राचीन सूत्र पद्धति के अनुसार जपविद्या का समीक्षण प्रस्तुत ग्रंथ में किया जगन्नाथवल्लभम् - ले-रामानन्द राय। ई. 16 वीं शती। हुआ है। इसमें सूत्रसंख्या 522 और कारिकासंख्या 2059 है, पांच अंकों का श्रीकृष्णविषयक संगीत नाटक। विविध गीतों जिन पर लेखक ने अति विस्तृत बंगला भाष्य भी लिखा है। में विविध रागों का प्रयोग। उत्कल के महाराज गजपति प्रस्तुत ग्रंथ अध्यात्मविद्या और उपनिषद् का विश्वकोष माना प्रतापरुद्र के समाश्रय से प्रेरित। राधा-माधव की प्रणयक्रीडा जाता है। भारतीय विद्या प्रकाशन, वाराणसी, द्वारा इसका हिंदी का चित्रण। प्रमुख रस शृंगार और बीच बीच में हास्यरस । अनुवाद प्रकाशित हुआ है।। 1901 ई. में वृन्दावन के देवकी नन्दन प्रेस में देवनागरी लिपि में मुद्रित। तत्पूर्व बंगाली लिपि में। जपार्चनपुरश्चरणविधि - रुद्रयामल-बटुककल्पान्तर्गत। जगन्नाथविजयम् - (1) ले-प्रधान वेंकप्प। श्रीरामपुर के श्लोक-6321 निवासी। (2) रुद्रभट। जप्येशोत्सवचम्पू - ले-वेंकटसुब्बा । जगन्मोहनभाणः - कवि-श्री रघुनाथ शास्त्री वेलणकर। ई. जम्बूद्वीपपूजा - ले-ब्रह्मजिनदास । ई. 15-16 वीं शती। 20 वीं शती। इसका एकमात्र प्रकाशन शिलायंत्र का है। जम्बूस्वामिचरित - ले-ब्रह्मजिनदास। जैनाचार्य। ई. 15-16 जगन्मोहन वृत्तशतकम् - ले-वासुदेव ब्रह्मपण्डित।। वीं शती। सर्ग 11। जटापटलदीपिका - ले-श्री बालंभट सप्रे। ग्वालियर निवासी। जयतु संस्कृतम् - सन् 1960 में काठमाण्डू (नेपाल) से श्री वेद-पठन के संहिता, पद, क्रम, जटा, शिखा सदृश पाठशैली प्रसाद गौतम के सम्पादकत्व में यह पत्रिका प्रारंभ हुई। के नियमों का इस ग्रंथ में विवेचन किया गया है। यह टीका प्रकाशक केशव दीपक थे। आगे चल कर संपादन का दायित्व ग्रंथ है। इस रचना की पाण्डुलिपि सिंधिया प्राच्य शोधा संस्थान वासुदेव त्रिपाठी ने संभाला। नेपाल में संस्कृत का प्रचार इसका उज्जैन में उपलब्ध है। उद्देश्य था। पत्र में कविता, निबन्ध, कथा, अनुवाद आदि का संस्कृत वाङ्मय कोश- ग्रंथ खण्ड/111 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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