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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra विदेशियों से शस्त्रास्त्र खरीदते हैं और कल्याण दुर्ग पर विजय प्राप्त करने के लिये आबाजी को भेज देते हैं। चालीस हजार मावलों की सेना को लेकर शिवाजी कोंकण विजय के लिए प्रस्थान करते हैं। तृतीय अंक में उक्त दोनों की विजय के बाद बीजापुर नरेशद्वारा शिवाजी के पिता को कारागार में डाल देने पर शिवाजी पिता की मुक्ति के लिए मुगल साम्राज्य को पत्र लिखते हैं। चतुर्थ अंक में शिवाजी बीजापुर नरेश से संधि करने की योजना बनाते हैं। पंचम अंक में पन्हाला और जुन्नर दुर्गा पर मराठों का अधिकार हो जाता है। इसके बाद मराठे विशाल दुर्ग पर जाते हैं। षष्ठ अंक में मुगल सम्राट् शिवाजी को पकड़ने के लिए दक्षिण प्रान्त के राज्यपाल को आदेश देता है। सप्तम अंक में मुगल सेनापति जयसिंह शिवाजी से मुगल सम्राट् की संधि मान्य करवाता है और शिवाजी को आगरा भेज देता है। अष्टम अंक में शिवाजी मिठाई के पिटारे में छुप कर निकल भागते हैं। नवम अंक में साधुवेश में पूना लौटते है। दक्षिण प्रान्त का राज्यपाल, शिवाजी को स्वसंमत राजा बनने का अधिकार देता है। दशम अंक में शिवाजी गुर्जर प्रदेश पर अधिकार स्थापित कर लौटते हैं और राज्यपद पर अभिषिक्त हो धर्मराज्य की स्थापना करते हैं। छत्रपति साम्राज्य नाटक में कुल नौ अर्थोपक्षेपक हैं। छन्दः कल्पकता ले- मथुरानाथ छन्दः कोश ले रत्नशेखर । छन्द:कौस्तुभ (1) ले-राधादामोदर (2) ले-बलदेव विद्याभूषण ई. 18 वीं शती । छन्दश्चूडामणि ले- हेमचंद्र | छन्दः पीयूषम् - ले-जगन्नाथ मिश्र पिता राम (ई. 18 वीं शती) । छन्दःप्रकाश ले- शेषचिन्तामणि । छन्दः शास्त्रम् (१) ले जयदेव । समय-ई. 10 वीं शती । सूत्ररूप रचना । इस पर मुकुलभट्ट के पुत्र हरदत्त की टीका है (2) ले देवनन्दी पूज्यपाद जैनाचार्य माता श्रीदेवी पिता - माधवभट्ट । ई. 5-6 वीं शती । 1 - - - www.kobatirth.org - - छन्दः सारसंग्रहः ले चन्द्रमोहन घोष ई. 20 वीं शती । विविध स्तोत्रों से प्राप्त विविध छन्दों का यह संकलन है । छन्दः सुंदर ले- नरहरि । छन्दः सुधाकर ले-कृष्णाराम। छन्दः सुधाचिल्लहरी ले अज्ञात । - - छन्दोनुशासन ले जिनेश्वर । छन्दोगोविन्द ले-गंगादास (श. 16)। छन्दोमखान्त ले- पुरुषोत्तम भट्ट (श. 16 ) । छन्दोमंजरी लेखक - गंगादास ई. 16 वीं शती । । पिता-गोपालदास। अनेक वृत्तों का परिचय देते हुए उदाहरणों 110 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड में कृष्णस्तुति की है। प्रकरणसंख्या - 6 । टीकाकार (1) जगन्नाथ सेन, (जटाधर कविराज के पुत्र), (2) चंद्रशेखर । (3) दत्ताराम (4) गोवर्धन वंशीधर (5) वंशीधर, (6) कृष्णवर्मा। छन्दोमाला ले शाङ्गधर । छन्दोमुक्तावली ले शंभुराम । छन्दोरत्नाकर (१) ले रत्नाकर शान्तिदेव (ई. 9 बी शती), (2) ले वासुदेव सार्वभौम 1 ले- राजमल पांडे । ई. 16 वीं शती । छंदोविद्या छन्दोविवेक छन्दोव्याख्यासार ले कृष्णभट्ट । ले- गणनाथ सेन । ई. 20 वीं शती । - - - छलार्णसूत्रम (सवृति) बुद्धिराज श्लोक 2001 For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - मूलकार भास्करराय तथा वृत्तिकार छगली ऋषि के छागलेय शाखा (कृष्ण यजुर्वेदीय) शिष्य छागलेय। शांखायन श्रौत - - सूत्र के आनर्तीय भाष्य में छागलेयोपनिषद् डा. बेलवलकर ने मुद्रित कर दिया था । निबन्ध ग्रंथों में छागलेय स्मृति के श्लोकों के उद्धरण मिलते हैं। छागलेयशाखा से संबंधित छागलेय उपनिषद् एक नव्य उपनिषद् माना जाता है। छागलेयोनिषद् यह अल्पाकार उपनिषद् है। इसमें कुरुक्षेत्र में निवास करने वाले बालिश नामक ऋषियों द्वारा कवष ऐलूष को उपदेश देने का वर्णन है। इसके अंत में "छागलेय" शब्द का एक बार उल्लेख हुआ है। इसमें रथ का दृष्टांत देकर उपदेश दिया गया है। सरस्वतीतीरवासी ऋषियों ने "कवश ऐलूष" को "दास्याः पुत्र” कह कर उसकी निंदा की तथा "कवष" ने उनसे ज्ञान प्राप्त करने की प्रार्थना की। इस पर ऋषियों ने उसे कुरुक्षेत्र में वालिशों के पास जाकर उपदेश ग्रहण करने का आदेश दिया। वहां "कवष ऐलूष" ने एक वर्ष तक रह कर ज्ञान प्राप्त किया। छंदोगाह्निक ले-दत्त उपाध्याय । (ई. 13-14 वीं शती) विषय- धर्मशास्त्र । छांदोग्य उपनिषद् सामवेद की तलवकार शाखा के अन्तर्गत छांदोग्य ब्राह्मण में यह उपनिषद है। इसमें आठ अध्याय हैं । प्रथम दो अध्यायों में सामविद्या का निरूपण है। तीसरे अध्याय में सूर्य की "देवमधु" के रूप में उपासना का वर्णन है। "सर्वं खल्विदं ब्रह्म" यह सर्वविदित तथा प्रसिद्ध सिद्धान्त इसी अध्याय में है। चौथे अध्याय में रैक्व का तत्त्वज्ञान, सत्यकाम, जाबालि की कथा, सत्यकाम द्वारा उपकोसल को दिया गया ब्रह्मज्ञान का उपदेश आदि विषयों का समावेश है। पांचवें अध्याय में प्रवाहण जैवलि के दार्शनिक सिद्धान्तों और अश्वपति केकप के सृष्टिविषयक तत्त्वों का प्रमुखता से विवेचन है। छठवें अध्याय में महर्षि आरुणि के सिद्धान्तों का वर्णन है। सातवें अध्याय में सनत्कुमार तथा नारद का संवाद है और
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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