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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra गोरक्षपद्धति ले गोरखनाथ (गोरक्षनाथ) ई. 11-12 वीं शती । गोरक्षशतकम् - नामान्तर-ज्ञानशतक या ज्ञान-प्रकाशशतक ले- मीननाथ - शिष्य गोरखनाथ । इस पर मथुरानाथ शुक्ल तथा शंकर कृत दो टीकाएं हैं। गोरक्षसंहिता ले- गोरखनाथ (गोरक्षनाथ ) ई. 11-12 वीं शती विषय-षट्चक्रभोदन I गोरक्षियुद्धम् - अपरनाम - श्रीगोपाल चिन्तामणि विजयम् (नाटक) ले- म.म. शंकरलाल । लेखन प्रारंभ सन् 1890, समाप्ति 1892 । प्रथम अभिनय महाराज श्री व्याघ्रजित के निवास स्थान पर । अंकसंख्या सात । छायातत्त्व का आधिक्य । सैकडों पात्र तथा मर्त्यलोक और विष्णु लोक के दृष्य । सुसूत्रता की कमी। प्रदीर्घ कथावस्तु । कथासार मथुरा के राजा उग्रसेन के राज्य में गो-ब्राह्मणों को पीडा होती है। यमुना तीर पर चरती देवकी की गायों को कंस के सेवक छीनते हैं। वसुदेव प्रतिकार करते हैं, कंस वसुदेव के छह पुत्रों को मरवाता है । सरस्वती और भरतभूमि घोषणा करती है कि देवकी का पुत्र शीघ्र ही कंस को मारेगा। अंत में कंस का वध होता है। कंसद्वारा बद्ध गायों को मुक्त कर, कृष्ण उग्रसेन तथा वासुदेव को भी छुडाता है। सरस्वती भरतभूमि तथा गोरक्षादेवी कृष्ण के पास आती है। गोलप्रकांशले नीलाम्बर शर्मा प्रकाशक- बापूदेव शास्त्री । । | ई. 19 वीं शती । विषय - ज्योतिषशास्त्र । गोलानन्द ले चिन्तामणि दीक्षित विषय ज्योतिषशास्त्र । । गोलानन्द- अनुक्रमणिका ले-यज्ञेश्वर सदाशिव रोडे । विषय- ज्योतिषशास्त्र - गोलाभदर्शन ले-पं. शिवदत्त त्रिपाठी । गोवर्धनधृत् कृष्णचरितम् कवि जयकान्त । गोवर्धनविलास (रूपक) ले पद्मनाभाचार्य । ई. 19 वीं शती । गोविन्दभाष्यम् - ले-बलदेव विद्याभूषण । साहित्यकौमुदीकार । विषय- ब्रह्मसूत्र की टीका । - - www.kobatirth.org गोविन्दकल्पकता ले- समीराचार्य 13 संग्रहों में पूर्ण श्लोक - 2500 | विषय - दीक्षा, मन्त्र के अधिकारी, अकडमचक्र, मलों के चैतन्य कृष्ण के मन्त्र, आचारगत मासिकपूजा, मन्त्र, ऋषि, छन्द, गोपालमन्त्रग्रहण की विधि, भजनाविधिप्रयोग, पुरश्चरणविधि तथा मन्त्र के प्रभेद, कुण्ड के लक्षण आदि का वर्णन । गोविन्दचरितामृतम् (महाकाव्य) - ले कृष्णदास कविराज । इसमें 23 सर्गों में 2511 श्लोक हैं। कवि ने राधाकृष्ण की अष्टकालिक लीलाओं का इसमें वर्णन किया है। गोविन्दबल्लभम् (नाटक) ले- द्वारकानाथ । रचनाकाल सन् 1725 ई. के लगभग। श्रीकृष्ण की बाललीलाओं का कथानक । अंकसंख्या दस संगीत की प्रधानता। श्रीधाम नवद्वीप के हरिबोल कुटीर से बंगाली लिपि में प्रकाशित । - 100 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड - 1 गोविन्दवैभवम् ले श्रीभट्ट मथुरानाथ शास्त्री इसकी टीका भी लेखक ने स्वयं लिखी है। गोविन्द- विरुदावली ले-रूपगोस्वामी । ई. 16 वीं शती । श्रीकृष्णविषयक काव्य । गोविन्दलीला कवि - रामचन्द्र । गोविन्दलीलामृतम् (महाकाव्य) - For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - कृष्णदास कविराज । ई. 15-16 वीं शती। इसमें राधा-कृष्ण की वृंदावन लीला का सरस वर्णन है। इस ग्रंथ का यदुनंदन दास ने 1610 ई. बंगला भाषा में अनुवाद किया है। सर्गसंख्या 231 श्लोकसंख्या - 25111 मोष्ठीनगरवर्णन चम्पू - ले नारायण भट्टपाद । गौतम - धर्मसूत्र - धर्मसूत्रों में एक प्राचीनतम ग्रंथ । कुमारिल भट्ट के अनुसार इसका संबंध सामवेद से है। चरणव्यूह की टीका (माहीदास कृत) से ज्ञात होता है कि गौतम सामवेद की राणायनीय शाखा की 9 अवांतर शाखाओं में से एक उप विभाग के आचार्य थे। सामवेद के लाट्यायन श्रौतसूत्र (1-3-3, 1-4-17) एवं द्राह्यायण श्रौतसूत्र ( 1-4, 17-9, 3,14) में गौतम नामक आचार्य का कई बार उल्लेख है तथा सामवेदीय "गोभिल गृह्यसूत्र" में (3-10-6) उनके उद्धरण विद्यमान हैं। इससे ज्ञात होता है कि औत, गृह्य व धर्म के सिद्धांतों का समिन्वित रूप " गौतम- धर्मसूत्र " था। इस पर हरदत्त ने टीका लिखी थी। इसका निर्देश याज्ञवल्क्य, कुमारिल, शंकर व मेधातिथि द्वारा किया गया है। गौतम, यास्क के परवर्ती • हैं। उनके समय पाणिनि व्याकरण या तो था ही नहीं, और यदि था भी तो उसकी महत्ता स्थापित न हो सकी थी। इस ग्रंथ का पता बौधायन व वसिष्ठ को था। इससे इसका रचनाकाल ई.पू. 400-600 माना जाता है। टीकाकार हरदत्त के अनुसार इसमें 28 अध्याय हैं। संपूर्ण गद्य में रचित है। इसकी विषयसूचि इस प्रकार है :धर्म के उपादान, मूल वस्तुओं की व्याख्या के नियम, प्रत्येक वर्ण के उपनयन का काल, यज्ञोपवीतविहीन व्यक्तियों के नियम, ब्रह्मचारी के नियम, गृहस्थ के नियम, विवाह का समय, विवाह के आठों प्रकार, विवाह के उपरांत संभोग के नियम, ब्राह्मण की वृत्तियां, 40 संस्कार, अपमान - लेख, गाली, आक्रमण, चोरी, बलात्कार तथा कई जातियों के व्यक्ति के लिये चोरी के नियम, ऋण देने, सूदखोरी, विपरीत संप्राप्ति, दंड देने के विषय में ब्राह्मणों का विशेषाधिकार, जन्ममरण के समय अपवित्रता के नियम, नारियों के कर्तव्य, नियोग तथा उनकी दशाएं, 5 प्रकार के श्राद्ध व श्राद्ध के समय न बुलाये जाने वाले व्यक्तियों के नियम, प्रायश्चित्त के अवसर व कारण, ब्रह्महत्या, बलात्कार, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, गाय या किसी अन्य पशु की हत्या से उत्पन्न पापों के प्रायश्चित्त, पापियों की श्रेणियां महापातक, उपपातक तथा दोनों के लिये गुप्त प्रायश्चित्त, चांद्रायण व्रत, संपत्ति-विभाजन, ·
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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