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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संघपति रूपजी-वंश-प्रशस्ति यद्वारे पुनरत्र सोमजि - शिवा-श्राद्धौ जगद्विश्रुतौ , याभ्यां राणपुरश्च रैवत गिरिः श्रीप्रर्बुदस्य स्फुटम् । गोडी श्रीविमलाचलस्य च महान संघो नय: कारितो, गच्छे लम्भनिका कृता प्रतिपुर: रुक्मा द्विमेकं पुनः ।। ५. गुणविनयोपाध्याय ने ऋषिदत्ता चौपई (र०सं० १६६३) में लिखा है कि सं० शिवा सामजी ने खंभात में भी बहुत द्रव्य खर्च करके अनेकों जिनबिम्बों को प्रतिष्ठा करवाई: श्रीखंभायत थंभण पास, धरण पउम परतिख जसु पास ॥६३॥ श्री खरतरगच्छ गगननभोमणि, अभयदेवसूरि प्रगटित सरमणि । धन खरची बहु बिंब भराविय, साह शिवा सोमजी कराविय ।।६४।। अचरजकारी पूतली जसु ऊपरि, शरणाइ वर भेरि विविह परि। पास भगति वस जिहा बजावइ, गुरु परसाद रह्या शुभ भावइ ॥६५॥ ६. श्री अगरचंद भंवरलाल नाहटा-लिखित युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि प० २४२.२४३ में लिखा है कि : (क) अहमदाबाद को दस्सा पोरवाड़-जाति में आपने कई अच्छे रीतिरिवाज प्रचलित किये थे । अब भी विवाह-पत्र के लेख में 'शिवा सोमजी की रीति प्रमाणे' लेन-देन को मर्यादा लिखी जाती है। आपके निवास स्थान धना सुतार की पोल में, जिनालय के वार्षिक दिवस और अन्य प्रसंगों में जब कभी जिमनवार होता है, तब निमंत्रण पत्र भी 'शिवा सोमजी' के नाम से दिया जाता है। (ख) धना सुतार की पोल वर्तमान समय में शिवा सोमजी की पोल के नाम से भी प्रसिद्ध है। (ग) सं० सोमजो-कारित झवेरीवाड़ा के चौमुखजी की पोल में शान्तिनाथ का चौमुख मन्दिर और हाजा पटेल को पोल के कोने में श्री शान्तिनाथजी का मंदिर भी वर्तमान में प्राप्त है । (घ) सेठ सोमजी शिवाजी का स्वधर्मी-वात्सल्य बहुत ही प्रशंसनीय और अनुकरणीय था । एक बार किसी अज्ञात अपरिचित स्वधर्मी-बन्धु ने विपत्ति के समय आपके ऊपर साठ हजार रुपये की हुंडो कर दी । जब वह हुडी भुगतान के निमित्त आपके पास आई, तब इनके मुनोम, कर्मचारियों का सारा खाता ढूंढ For Private And Personal Use Only
SR No.020631
Book TitleSanghpati Rupji Vansh Prashasti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan
Publication Year1969
Total Pages34
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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