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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बंधुओने सभी धर्मों का शासन किया। मुस्लिम बंधुओं को भी चौरासी मस्जिदें बनवाकर दी। यह दोनों बंधु नरवीर थे। इन्होंने जीवन में चार सौ करोड़ रुपयों का देश, राष्ट्र व धर्म रक्षा के लिये एवं कला संस्कृति को जीवन्त रखने के लिए खर्च किये। इसका विस्त्रत विवरण प्राग्वाट इतिहास में पढ़े जो राणी स्टेशन जिला-पाली राजस्थान में उपलब्ध है। भामाशाह सेठ ने देश रक्षा के लिये ऐसा दान दिया कि आज भी श्वेताम्बर जैन समाज गौरवता से नाम लेता है। सादड़ी राजस्थान के निवासी धरणाशाह सेठ ने अद्वितीय राणकपुर मंदिर बनवाये। जिन्हें देखने के लिये विश्व का प्रत्येक मानव लालायित रहता है। मालव प्रदेश में स्थित मांडवगढ़ के निवासी श्री झांझण मंत्री ने अपने धर्म गुरु आचार्य देव श्री ज्ञानसागर सूरीश्वरजी महाराज का माण्डवगढ़ में जब प्रवेश करवाया था तब उनके स्वागत में ७२ लाख स्वर्ण मोहरे खर्च की थी। व चातुर्मास में भगवती सूत्र के व्याख्यान सूने थे भगवती सूत्र में छतीस हजार प्रश्न है प्रत्येक प्रश्न पर १-१ स्वर्ण मुद्रा चढ़ाई थी। बाद में सभी स्वर्ण मुद्राओं की स्वर्ण स्याही बनाकर ४५ आगमों को स्वर्ण स्याही से लिखवाकर पाटन के भंडारों में रखे गये थे। जो आज भी सुरक्षित है। धन्य है उन्हों की श्रुत भक्ति। __ श्री गदाशाह, श्री भैसाशाह पेथड़शाह आदि मांडवगढ़ नगर के नरवीरों ने देश, राष्ट्र व धर्म एवं कला संस्कृति को जीवन्त रखने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करके इतिहास के पृष्ठों पर स्वर्णाक्षरों में इन दानवीरों के नाम अंकित है। कच्छ भद्रेश्वर निवासी श्री जगडुशाह सेठ एवं गुजरात निवासी खेमा-देदराणी आदि महापुरुषों ने सम्पूर्ण भारत वर्ष के जीव मात्र के लिये संलग्न १२ वर्ष तक भोजन की व्यवस्था की थी। श्री जावड़ शाह कर्माशाह, समराशाह, मोतीशाह आदि अनेक दानवीरों ने करोड़ों रुपये खर्च करके अपने धर्मस्थलों को सुरक्षित रखा है। श्री वीर प्रभु को निर्वाण हुए २५२० वर्ष हुए इतने अल्प समय में श्वेताम्बर जैन समाज में हजारों नररत्न पैदा हुए जिन्होंने अपनी लक्ष्मी से, ज्ञान से दानवीरता से खर्च कर अपने आपको धन्य माना है। राजस्थान में एक कहावत है कि: "जननी जने तो ऐसा जनजे, के दाता के शूर। नी तो रहीजे वांझणी, मती गंवाजे नूर॥" धन्य है ऐसी माताओं को, जिन्होंने नारी समाज के नाम को उज्ज्वल किया। आचार्य पद के सुयोग्य व्यक्ति को जैनाचार्य बनाया जाता है जो आचार्य पद के For Private And Personal
SR No.020622
Book TitleSammetshikhar Jain Maha Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1994
Total Pages71
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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