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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्तव्यों का ख्याल रखकर अपने अधिकारों को उपयोग करते हैं। वे आचार्य स्वर्गवासी होने पर भी अपने कर्तव्यों से जीवित हैं। जैसे- पंद्रहवी शताब्दी से पूर्व आचार्य पद पर पूज्य कालकाचार्य महाराज विराजमान हुए थे एवं उनकी बहन सरस्वती ने भी दीक्षा ली थी। एक समय आचार्य श्री कालकाचार्य अपनी बहन साध्वी सरस्वती के साथ उज्जैन नगर में विराजमान थे, तब तत्कालीन उज्जैन के राजा गर्दभील ने साध्वी सरस्वती का गोचरी जाते समय अपहरण कर लिया था । यह बात आचार्य श्री कालकाचार्य को जब ज्ञात हुई तो उन्होंने श्री संघ को एकत्रित करके यह बात बनाई तो संघ के प्रतिनिधियों ने उचित उत्तर नहीं दिया। तब श्री कालकाचार्य ने मुनि वेष त्यागकर हुण प्रदेश में जाकर युद्धकला वहां के निवासियों को सिखाकर, पचास हजार की सेना सहित उज्जैन आकर राजा गर्दभील से युद्ध कर अपनी बहन साध्वी सरस्वती को मुक्त कराया। आचार्य पद पर बैठकर साध्वी रक्षा का कर्तव्य समझा था । आचार्य श्री कालिकाचार्य युद्ध स्मरण रखने के लिए आज जितने भी जैन समाज में चतुर्थी को संवत्सरी करते हैं वे कालकाचार्य के पक्ष के माने जाते हैं । युद्ध के पापों की आलोचना श्री संघ के सम्मुख ली थी। आप किसी भी क्षेत्र में देखें राष्ट्र, धर्म, कलासंस्कृति, नारी उत्थान, साहित्य क्षेत्र, तिर्यन्च पशुओं की जीवदया के कार्यों में मुक्त हस्त से लाखों करोड़ों रुपयों का दान करते हैं बारहवी शताब्दी में पूज्यपाद आचार्यवर्य श्री हेमचंद्राचार्य ने श्री कुमारपाल राजा को प्रतिबोध देकर जैन बनाया था। कुमारपाल राजा के राज्य में हाथी, घोड़े, गाय, बैल आदि पशुओं को पानी छानकर पिलाया जाता था कि जीव हिंसा न होवे और श्रमण भगवान महावीर स्वामी का प्रथम मूल उद्देश्य अहिंसा धर्म का पालन होंवे । पूज्य प्रवर हेमचंद्राचार्य ने साहित्य क्षेत्र में सवा लाख प्राकृत भाषा में श्लोंको की रचनाकर शिक्षित जग में महान कीर्तिमान कार्य किया है। २० वीं शताब्दी में महान श्वेताम्बर आचार्य भट्टारक श्री श्री श्री १००८ श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज ने अद्वितीय ग्रंथराज अभिधान राजेन्द्र महाकोष की रचना कर साहित्य क्षेत्र में महान कार्य किया है । आज तक ऐसा महानकार्य किसी भी विद्वान ने नहीं किया है। इस प्रकार महान जैनाचार्य उपाध्याय मुनिवरों ने इतना कार्य किया है कि उसे पढ़ भी ले तो बहुत है । प्रशान्त मूर्ति उपाध्याय श्री मोहनविजयजी महाराज, महान तार्कि साहित्य चुामणी श्रीमद् विजय धनचंद्रसूरीश्वरजी महाराज, साहित्यविशारद For Private And Personal
SR No.020622
Book TitleSammetshikhar Jain Maha Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1994
Total Pages71
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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