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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विमलाचल ने गढ़ गिरनार, आबु उपर ऋषभ जुहार - सकल तीर्थ सूत्र - श्री जीवविजयजी ख्यातोअष्टापद पर्वतो गजपदः सम्मेत शैलामिधः। श्रीमान् रैवतकः प्रसिद्ध महिमा शत्रुजयो मण्डपः। - श्री हेमचन्द्राचार्य विरचित सकलार्हत सूत्र सम्मेताचल शत्रुजय तोलई, सीमंधर जिनवर एम बोलई एह वयण नवि डोलई - पं. जयविजय गणी विरचित तीर्थमाल अधिको ए गिरि गिरूअड़ो, शत्रुजयथी जाणियेजी । . श्री विजयसागरजी सम्मेतशिखर पुण्डरिक - आबु - अष्टापद - प्रमुख पंच तीरथ - श्री जिनहर्ष सूरि कृत वीस स्थानक पूजा भवन - व्यंतर - ज्योतिषिक - वैमानिक - नन्दीश्वर मन्दर कुलाचलाष्टापद सम्मेत शैल शिखर शत्रुजयोज्जयंतादि सर्वलोक स्थित श्री सिद्धसेनसूरि विरचित प्रवचन सारोद्धार सम्मेतशिखर सोहाभणो, शत्रुजय भणी रे। गिरनारे नेमीनाथ ॥नमो भवी तीर्थ ने रे॥ - श्री राजेन्द्र सूरि विरचित सर्व तीर्थ स्तवन ऋषभ थया अष्टापद सिद्धि, चंपा वासुपूज्य परमानंदी। उज्जित पावा नेमी वीरजी, सिद्धा सुम्मेत शिखर वीश सिद्धानंदी॥ पाँच क्रोड सुं पुण्डरीक गणधर शत्रुजय सिद्धानंदी - आचार्य धनचन्द्रसूरि विरचित सिद्ध पद पूजा इसके उपरान्त षडदर्शन समुच्चय, संबोध सत्तरी सिरिवाल कहा- दिनशुद्धि दीपिका आदि उत्कृष्ट ग्रंथों के प्रणेता एवम् बादशाह फिरोजशाह तुगलक प्रतिबोधक चौदहवीं शताब्दी के परम गीतार्थ महान् आचार्य श्री रत्नशेखर सूरि ने इस तीर्थराज की स्तवना में सोलह हजार श्लोक प्रमाण संस्कृत श्री सम्मेतशिखर महारास का निर्माण किया है। श्री जसकीर्ति महाराज ने भी एक सम्मेतशिखर रास चार खण्डों ३६ For Private And Personal
SR No.020622
Book TitleSammetshikhar Jain Maha Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1994
Total Pages71
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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