SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री ऋषभदेव स्वामी ने नमः श्री राजेन्द्रसूरीश्वरेभ्यो नमः -------------------------------------- बोटिक : दिगम्बर : मत उत्पत्ति दिग्दर्शन - -- - - - -- चौबीसवें तीर्थकर श्री महावीर परमात्मा के निर्वाण से ६०९ वर्ष बाद बोटिक : दिगम्बर : मत की उत्पत्ति हुई, वह इस प्रकार है___ रथवीपुर नगर के बहार दीपक नाम का एक बड़ा उद्यान है। एकदा नवकल्पी विहारानुक्रम से पू. आचार्य देव श्री आर्यकृष्णाचार्य म.सा.शिष्य परिवार के साथ विचरते-विचरते वहीं उद्यान में पधारे, योग्य निर्जीव भू-पटशाला में विराजमान रहे। उस समय उसी नगर में एक शिवभूति नामका युवा पुरुष नगर के राजा के पास कार्यार्थ आया। तब राजा ने कहा कि आपके साहस एवं पराक्रम की परीक्षा करने के बाद राज्य की सेवा के कार्य में लगाएंगे। ___ अश्विन माह की कृष्ण चतुर्दशी दिन राजसभा में शिवभूति को बुलाकर राजा ने फरमाया कि आज रात को श्मशान भूमि में जाकर मध्य रात्रि के समय मातृ तर्पण करना है। इस कार्य के लिए मद्य एवं मोदक वगैरह सामग्री ले जाना। शिवभूति ने कहा :- जैसी आपकी आज्ञा ‘ऐसा कहकर शिवभूति तर्पण सामग्री लेकर अपने आवास पर गया स्नानादि कार्य करके शुद्ध पवित्र होकर संध्या समय तर्पण सामग्री लेकर श्मशान की ओर चल दिया। चलते-चलते श्मशान भूमि में पहुंचा चारों ओर अंधेरा छा गया था, अर्द्ध दग्घ चिताए चल रही थी। वनचर प्राणियों का भयानक आवाज सुनाई दे रही थी। एक ओर नदी का पानी ध्वनि के साथ बहता जा रहा था। भूत पिशाच अट्टाहास करते हुए अत्र-तत्र, घूमते-फिरते, आते-जाते थे, चारों ओर भयजनक वातावरण था, उस समय साहसिक शिवभूति एक वर्तुलाकार लकीर खींचकर मंडल में सावधानी से बैठ गया एवं मातृ तर्पण विधि प्रारंभ की। इस तरफ राजा ने भी गुप्तचर पुरुषों को शिवभूति की चर्या देखने के लिए भेजा था, वे गुप्त पुरुषों ने शिवभूति की कर्तव्य निष्ठा एवं धैर्य - साहसिकता प्रत्यक्ष देखकर राजा को सर्व वृत्तान्त निवेदित किया। For Private And Personal
SR No.020622
Book TitleSammetshikhar Jain Maha Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1994
Total Pages71
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy